साँसों का इकतारा

साँसों का इकतारा

साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा

(19)
बहुत चले हैं बिना शिकायत हम मंजिल के आश्‍वासन पर
लेकिन हर मंजिल को पीछे छोड़ रहे हैं चरण तुम्हारे
तपे बहुत तपती लूओं से रहें नीड़ में मन करता है
पर पौ फटते ही प्राची में खींच रहे तुम प्राण हमारे॥

देख रहे दिन में भी सपने बुनते जाते अभिनव चाहें
सदा दिखाते ही रहते हो हमें देव! अनजानी राहें
खोली हाट शांति की जब से ग्राहक बढ़ते ही जाते हैं
समझ लिया सबने इस जग के झूठे सब रिश्ते-नाते हैं
जुटे हुए हम बिना शिकायत हर सपना साकार बनाने
फिर भी तोष नहीं धरती से तोड़ रहे अम्बर के तारे॥

बचपन से ले अब तक कितने ग्रंथों को हमने अवगाहा
अपनी नाजुक अंगुलियों से जब-तब कुछ लिखना भी चाहा
समय-समय पर बाँधा मन के भावों को वाणी में हमने
नहीं कहा विश्राम करो कुछ एक बार भी अब तक तुमने
बहुत पढ़े हम बिना शिकायत मन ही मन घबराते तुमसे
कब होंगे उत्तीर्ण तुम्हारी नजरों में पढ़-लिखकर हारे॥

नव्य दिव्य भावों को बाँधा मधुर नाद में हे संगायक!
मन की प्रत्यंचा पर सचमुच चढ़ा दिया संयम का सायक
हर मानव की पीड़ा हर कर तुमने उसको सुधा पिलाई
मुरझाते जीवन-उपवन की मासूसी भी दूर भगाई
बहुत जगे हम बिना शिकायत छोटी-बड़ी सभी रातों में
बिना जगे कुछ सो लेने दो अब तो धरती के उजियारे॥

कदम-कदम पर चौराहे हैं लक्ष्य हुआ ओझल आँखों से
देख विपुल विस्तार गगन का शक्‍ति लुप्त-सी है पाँखों से
जूझ रही है हर खतरे से विवश जिंदगी यह मानव की
कुछ अजीब-सी अकुलाहट भी हुई देख छाया दानव की
डटे हुए हम बिना शिकायत जीवन के हर समरांगण में
किंतु कहोगे कब तुम हमको खड़ी पास में विजय तुम्हारे॥

(20)
प्रेरणा की साँस भरते ही रहो तुम
कदम मंजिल से नहीं अब रूठ पाए
सींचते रहना नई हर पौध को तुम
किसी मौसम में नहीं वह सूख पाए॥

तोड़ सपनों को मुझे दो सत्य का सुख
अनकही मन की तुम्हें है ज्ञात सारी
स्वाति बनकर बूँद को मोती बना दो
जानते हम आर्यवर! क्षमता तुम्हारी
चाँद-सूरज से अधिक आलोक लेकर
तुम धरा पर बन फरिश्ते उतर आए॥

लग रहा मेला धरा पर आज यह क्यों
मुस्कुराते क्यों गगन में नखत-तारे
मूर्ति मनहारी गढ़ी किसने यहाँ पर
ज्योति-किरणों ने बिछाई क्यों बहारें
मुग्ध होते प्राण इस अनुपम छटा पर
मौन मन की धड़कनें भी गुनगुनाए॥

रत्न संयम का मिला कालूगणी से
तुम हुए निश्‍चिंत गुरु की शरण पाकर।
बन गए उनकी कृपा से तुम समय पर
गण-गगन में चमकते निरुपम सुधाकर।
पुण्य चरणों का उपासक जगत सारा
दीप ये विश्‍वास के तुमने जलाए॥
(क्रमश:)