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आचार्य महाप्रज्ञ

आज्ञावाद

भगवान् प्राह
(1) आज्ञायां मामको धर्म, आज्ञायां मामकं तप:।
आज्ञामूढा न पश्यन्ति, तत्त्वं मिथ्याग्रहोद्धता:॥

भगवान् ने कहामेरा धर्म आज्ञा में है, मेरा तप आज्ञा में है। जो मिथ्या आग्रह से उद्धत हैं और आज्ञा का मर्म समझने में मूढ़ हैं, वे तत्त्व को नहीं देख सकते।

आज्ञा शब्द का व्युत्पत्ति-लभ्य अर्थ है‘आ-समन्तात् जानाति’ विषय को पूर्णरूप से जानना। साधारणतया उसका प्रयोग आदेश देने के अर्थ में होता है। विषय का ज्ञान दो प्रकार से किया जाता हैआत्म-साक्षात्कार से और श्रुत से। दूसरे शब्दों में ज्ञान दो प्रकार का होता हैप्रत्यक्ष और परोक्ष। प्रत्यक्ष ज्ञान अतीन्द्रिय और परोक्ष ज्ञान इंद्रिय, मन और शास्त्रजन्य है। प्रत्यक्ष ज्ञान के अभाव में अवलंबन शास्त्र-आगम हैं। परोक्ष का स्वरूप-निरूपण आगम से होता है। बंधन और मुक्‍ति का विवेक भी वह देता है।
आगम शास्ता की वाणी है। शास्ता वे होते हैं जो वीतराग हैं। राग-द्वेष-युक्‍त व्यक्‍ति की वाणी प्रमाण नहीं होती। उसमें पूर्वापर की संगति नहीं मिलती। शास्ता की वाणी में अविरोध होता है। वे सब जीवों के कल्याण के लिए प्रवचन करते हैं। वे प्रवचन आगम का रूप ले लेते हैं। शास्ता के अभाव में वे ही मार्ग-दर्शक होते हैं। इसलिए उनकी वाणी आज्ञा है। वह आज्ञा यह है
सबको समान समझो। किसी का हनन, उत्पीड़न मत करो।
राग-द्वेष पर विजय करो।
कषायों का उपशमन और क्षय करो।
इंद्रिय और मन पर अनुशासन करो।
संयम का विकास करो।
अहिंसा की परिधि में रहो।
आत्मा के विशुद्ध स्वरूप का चिंतन करो।
भेद-द‍ृष्टि से शास्ता और शास्त्र दो हैं और अभेदद‍ृष्टि से एक। आज्ञा का अनुसरण वीतराग का अनुसरण है और वीतराग का अनुसरण आज्ञा का अनुसरण है। ‘मामेकं शरणं व्रज’एक मेरी शरण में आगीता के इस वाक्य की भी यही ध्वनि है। भगवान् कहते हैंआज्ञा की कसौटी पर खरा उतरने वाला ही मेरा धर्म है और मेरा तप है। यह अभेदोपचार है।
आग्रह के दो रूप हैंसत्य और मिथ्या। मिथ्या आग्रह बौद्धिक जड़ता है। मिथ्या आग्रही अपनी मान्यता के घेरे से मुक्‍त नहीं हो सकता। ‘मेरा धर्म है वही सत्य है’मिथ्या आग्रही व्यक्‍ति में इसकी अधिकता होती है। वह अपना ही राग आलापता है। सत्याग्रही में यह नहीं होता। वह नम्र होता है, सरल होता है, सत्य को देखता है, सुनता है, मस्तिष्क से तोलता है और सत्य को स्वीकार करता है। आत्मा का सान्‍निध्य उसे प्राप्त होता है। वह आग्रही नहीं होता। उसका घोष होता हैजो सत्य है वह मेरा है।
(क्रमश:)