देवता भी वंदन करते हैं साधु को : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

देवता भी वंदन करते हैं साधु को : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 15 सितंबर, 2021
तेरापंथ धर्मसंघ के धर्माधिशास्ता दीक्षा-संयम प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी द्वारा आज छ: समणीजी का श्रेणी आरोहण एवं एक मुमुक्षुश्री एवं छ: मुमुक्षु बहनों को संयम पथ पर स्थापित किया। भगवान महावीर ने संसार में चार बातें दुर्लभ बताई हैंमनुष्य जन्म, श्रुति, श्रद्धा और संयम में पराक्रम।
दीक्षा संस्कार प्रदान करने से पहले मुमुक्षुओं से व उनके पारिवारिकजनों से मौखिक स्वीकृति ली। समणियों व मुमुक्षु बहनों व भाई से साधु जीवन की चर्या-पालन की स्वीकृति ली। नमस्कार महामंत्र का स्मरण कर, नमोत्थुणं से भगवान महावीर एवं पूर्वाचार्यों का स्मरण किया। सामायिक पाठ से सर्व सावद्य का तीन करण-तीन योग से जीवन पर्यन्त का त्याग करवाया।
पूज्यप्रवर के मंगल मंत्रोच्चार से दीक्षा समारोह प्रारंभ हुआ। दीक्षा कार्यक्रम में सर्वप्रथम पूज्यप्रवर ने अतीत की आलोचना करवाई। केश लोच संस्कार मुनिजी का पूज्यप्रवर ने किया एवं साध्वियों का केश लोचन साध्वीप्रमुखाश्री जी ने किया। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि केश लूंचन की प्राचीन परंपरा रही है। केश लूंचन करने से शिष्य की चोटी गुरु के हाथ में आ जाती है। यह एक अनुशासन की परंपरा है। यह साधु जीवन बड़ा प्राग-संयम का स्वीकरण होता है। साधु राजा-महाराजाओं के लिए भी वंदनीय हो जाता है। साधु देवों द्वारा भी वंदनीय होते हैं। यह इतना ऊँचा स्थान त्याग-संयम का है। भोग से योग की दिशा में आगे बढ़ना होता है। जैन तेरापंथ में तो दीक्षा से पहले शिक्षा-परीक्षा होती है।
एक साधु वो जितना सुख प्राप्त कर सकता है, त्याग से जो सुख मिलता है, वो भोग से नहीं मिल सकता। राग के समान दु:ख नहीं, त्याग के समान सुख नहीं। त्याग एक आंतरिक सुख का उपाय है। भोग का सुख अल्पकालिक होता है। त्याग का सुख शाश्‍वत रूप में रह सकता है।
हमारे धर्मसंघ में संतों में बाल दीक्षाएँ बहुत होती आई हैं। रजोहरण भी अहिंसा का एक माध्यम है। पूज्यप्रवर ने नव दीक्षित मुनि को रजोहरण प्रदान करवाया। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने नव दीक्षित साध्वियों को रजोहरण आर्षवाणी के साथ प्रदान करवाया। नामकरण संस्कार पूज्यप्रवर द्वारा किया गया। नवदीक्षितों को नए नाम प्रदान करवाए, जो अलग से दिए गए हैं। पूज्यप्रवर ने गृहस्थों से नव दीक्षितों को वंदना करने का निर्देश प्रदान करवाया। नव दीक्षितों को प्रेरणा प्रदान करवाई। नवदीक्षितों को अनुशासन का आहार प्रवास स्थल पर जाकर दिलाने का निर्देश प्रदान करवाया। नव दीक्षित साध्वियों को साध्वीप्रमुखाश्री जी की देखरेख में व नवदीक्षित मुनि को मुनि दिनेश कुमार जी की निश्रा में आगे बढ़ने व शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त करने का निर्देश प्रदान करवाया।
पूज्यप्रवर द्वारा सामायिक चारित्र ग्रहण कराने से पहले मुमुक्षु दीक्षा एवं मुमुक्षु संजना ने दीक्षार्थियों का परिचय दिया। पारमार्थिक शिक्षण संस्था के संयोजक बजरंग जैन ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। पारिवारिक जनों द्वारा आज्ञा पत्र श्रीचरणों में अर्पित किया।
श्रेणी आरोहण करने वाली समणियों का परिचय समणी मंजुलप्रज्ञा जी ने दिया।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने दीक्षा संस्कार से पूर्व कहा कि आज विकास महोत्सव के ऐतिहासिक दिन पर परम पूज्य आचार्यप्रवर द्वारा आध्यात्मिक अनुष्ठान का समायोजन दीक्षा संस्कार होने वाला है। भारतीय संस्कृति में दीक्षा का अपना महत्त्व है। जैन धर्म की दीक्षा विशेष रूप से महत्त्व रखती है। जैन धर्म के अनुसार दीक्षा है, अपने आपको जानने की परंपरा, जागरूकता की यात्रा, आध्यात्मिक आरोहण की यात्रा।
साध्वीप्रमुखाश्री जी द्वारा कविताओं का संग्रह पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में समर्पित किया गया। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।