सम्यक्त्व की निर्मलता के लिए कषाय मंदता आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सम्यक्त्व की निर्मलता के लिए कषाय मंदता आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 10 सितंबर, 2021
ध्यान-योग के साधक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पर्युषण पर्व के सातवें दिवसध्यान दिवस पर परम श्रद्धास्पद भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का प्रसंग का विवेचन किया।
एक बार पोतनपुर में हमारे ग्यारहवें तीर्थंकर भगवान श्रेयांसनाथ का पदार्पण होता है। अचल और त्रिपृष्ठ ने प्रवचन सुना। महापुरुषों की संगती भी कल्याण का निमित्त हेतु बन सकती है। प्रवचन सुनने से त्रिपृष्ठ को सम्यक्त्व की प्राप्ति हो गई। क्षयोपशम सम्यक्त्व ऐसी चीज है, जो आ जाती है, चली जाती है। ये ढीली-ढाली सी सम्यक्त्व होती है।
क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त हो जाए, फिर मानो निश्‍चिंत है। वापस करने वाली नहीं है। क्षायोपशमिक सम्यक्त्व भी मजबूत और निर्मल बने। सम्यक्त्व की निर्मलता के लिए ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यथार्थ के प्रति निष्ठा जितनी मजबूत होती है, सम्यक्त्व को पुष्टि प्राप्त हो सकती है। वही सत्य है, वह सत्य ही है, निशंक है, जो जिनेश्‍वर भगवानों ने प्रवेदित किया है। यह सम्यक्त्व को पुष्ट और निर्मल बनाने का आलंबन है। सम्यक्त्व की निर्मलता के लिए दूसरी बात है हमारे कषाय मंदता को प्राप्त हो। तीसरी बात हैतत्त्व-बोध का प्रयास। दीक्षा लेनी है, तो पहले नव तत्त्वों को समझना आवश्यक है। नव तत्त्व जो जैन तत्त्व प्रवेश में समझाए गए हैं, वो याद रहें। उसके तीन द्वार समझना आवश्यक है। त्रिपृष्ठ के भी क्षयोपशम सम्यक्त्व आया था वो कुछ समय बाद विलीन हो गया।
सिद्धांत है कि सम्यक्त्व की अवस्था में आयुष्य का बंध होता है तो नरक गति का बंध नहीं हो सकता। तिर्यंच गति का बंध हो सकता। मनुष्य है, तो आगे वैमानिक देवगति में पैदा होगा। सम्यक्त्व है, तो कितनी ऊँचाई आ जाती है। नरक में जाना है तो सम्यक्त्व से मुक्‍त होना पड़ेगा। सम्यक्त्वविहीन त्रिपृष्ठ का प्रसंग समझाया कि वे कितने क्रूर रहे उस भव से और नरक गति का बंध किया। वासुदेव के लिए कहा गया है कि राजेश्‍वरी नरकेश्‍वरी। आयुष्य पूर्ण कर सातवें नरक में प्रभु की आत्मा उत्पन्‍न होती है।
उसके आगे बीसवें भव में तिर्यंच योनी में शेर की योनि में उत्पन्‍न होते हैं। शेर हिंसक प्राणी और पुन: चौथी नरक में पैदा होते हैं। वहाँ से उद्वर्तन कर बावीसवें भव में मनुष्य के रूप में, राजकुमार विमल के रूप में पैदा हुआ। उस भव का प्रसंग समझाया। भव में अहिंसा का संदेश दिया। अंत में चारित्र ग्रहण कर 23वें भव में महाविदेह में चक्रवर्ती बनते हैं। बाद मुनि दीक्षा ग्रहण कर आयुष्य पूर्ण कर सातवें देवलोक में उत्पन्‍न होते हैं।
25वें भव में राजकुमार नंदन के रूप में पैदा हुए। नंदन भी साधु बन गया और एक लाख वर्ष का संयम पर्याय। अंगों का अध्ययन कर कठोर तपस्वी बन गए। वर्तमान के परिप्रेक्ष्य कई साधु-साध्वियाँ अनाहार की लंबी साधना कर रहे हैं।
तेरापंथ की तपस्वी चारित्रात्माओं का हमारे धर्मसंघ में संकलन हो। गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ के युग की तपस्वी चारित्रात्माओं का विवरण आ जाए तो प्रेरणा मिल सकती है। सभी आचार्यों के युग का तपस्वी चारित्रात्माओं का विवरण आ जाए तो और अच्छी बात है। 26वाँ भव दूसरे देवलोक का है। प्रभु महावीर सत्ताइसवें भव में अब से 2700 वर्ष पहले वे हमारी इस दुनिया में जन्म लेते हैं। कल हमारा पर्युषण का शिखर दिवस पर्वाधिराज संवत्सरी है। संवत्सरी का दिन वर्ष में एक बार आने वाला होता है। कल प्रतिक्रमण में सर्वोत्कृष्ट 40 लोगस्स का ध्यान होगा।
प्रतिक्रमण में एक ध्यान तो अतिचारों का होता है, जो शुद्धि कराने वाला होता है। एक ध्यान लोगस्स का होता है जो भक्‍ति कराने वाला होता है। लोगस्स में 24 तीर्थंकरों की तीर्थयात्रा हो जाती है। यह वर्ष में एक बार ही होता है। सामान्य भाषा में देखें तो यह बड़े लोगों को नजराना भेंट करने के समान है।  संवत्सरी के दिन चारित्रात्माएँ तो चौविहार उपवास ही करते हैं। बाल साधु-साध्वियों को संवत्सरी के दिन करणीय कार्य की प्रेरणा फरमायी। श्रावक-श्राविकाओं को भी उपवास-पौषण करने की प्रेरणा फरमायी। संवत्सरी पर्व अच्छी तरह मनाने का प्रयास करें। ध्यान दिवस पर ध्यान का प्रयोग करवाया। साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आरोग्यवान, मजबूत संहनन के साथ विनम्र व्यक्‍ति ध्यान की दिशा में आगे बढ़ सकता है। कार्यक्रम में मुख्य मुनिश्री ने ब्रह्मचर्य धर्म पर गीत की प्रस्तुति दी। साध्वीवर्या जी ने शील की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि शील व्रत का पालन करने वाले को देवता भी नमस्कार करते हैं। मुख्य नियोजिका विश्रुत विभा जी ने ध्यान दिवस पर विषय प्रस्तुति देते हुए कहा कि ध्यान के समान दूसरी तपस्या नहीं है, ध्यान के समान कोई अन्य यज्ञ नहीं है। साधक को ध्यान के प्रयोग करते रहने चाहिए। साध्वी चरित्रयशा जी द्वारा ध्यान दिवस पर गीत की प्रस्तुति दी। संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।