क्षमापना का दिन वार्षिक महोत्सव का स्वरूप है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

क्षमापना का दिन वार्षिक महोत्सव का स्वरूप है : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 12 सितंबर, 2021
पर्युषण पर्व का समापना दिवस-क्षमा याचना दिवस या खमतखामणा दिवस। भगवान महावीर ने फरमाया है‘क्षमा वीरस्य भूषणं’। क्षमा वीरों का भूषण है। वर्ष भर में किसी भी आत्मा के साथ राग-द्वेष या वैर-विरोध से बंधी गाँठें
प्राय: आज के दिन खुल जाती हैं। हम भी इन गाँठों को खोलकर मैत्री भाव से सभी जीवों से खमतखामणा कर पावन बन जाएँ।
क्षमामूर्ति, करुणा के सागर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने क्षमा पर्व पर मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आर्षवाणी हैखामेमि सव्वे जीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे। मेत्ति में सव्वे भूएसु, वैरं मज्झ न केणई॥ यह श्‍लोक क्षमा का सागर है। इस श्‍लोक से जितनी बूँदें ग्रहण कर सकें, ये अमृत की बूँदें हैं। शब्द तो शरीर है, उसके भाव उसकी आत्मा है।
इस श्‍लोक की आत्मा क्षमा का सागर है। मैं सब जीवों को क्षमा देता हूँ और सब जीव मुझे क्षमा करें। यह क्षमा का आदान-प्रदान है। सब जीवों के प्रति मेरी मैत्री है। किसी के भी साथ मेरा वैर भाव नहीं है। यह श्‍लोक यदा-कदा भावों के साथ स्वाधीत हो जाए। आत्मा की चेतना को पुष्टि प्राप्त हो सकती है।
हमने अष्टाह्निक पर्युषण पर्वाधिराज महापर्व की आराधना की। कल का दिन संवत्सरी शिखर दिवस था। यह संवत्सरी महापर्व क्षमा से, तपस्या से, साधना से जुड़ा हुआ है। अध्यात्म की द‍ृष्टि से यह वार्षिक महोत्सव का दिन है। सर्वाधिक महत्त्व का दिवस है। अष्टाह्निक पर्व का समापन दिवस है।
क्षमा महान धर्म का पर्व है और सशक्‍त होने पर भी क्षमा रख लेना बड़ी बात है। हम अभी छद्मस्थ हैं। व्यवहार में कहा-सुनी हो सकती है। अप्रियता का प्रसंग आ सकता है। यह क्षमा का पर्व महास्नान का पर्व है। क्षमा की साबुन से अप्रियता की गंदगी दूर हो जाए। यह वांछनीय है। व्यवहार में कटुता आ जाए तो प्रक्षालन हो जाए। पक्खी आदि भी प्रक्षालन के समय है।
क्षमा का प्रयोग मूल तो भाव से होना चाहिए। व्यवहारिक रूप में भी ले कि अब हमारी बात संपन्‍न हो गई। मेरा भी काम चारित्रात्माओं से, समण श्रेणी से, श्रावक श्रेणी से पड़ता रहता है। मेरा भावात्मक रूप में तो क्षमा का प्रयोग हो भी गया होगा, व्यावहारिक रूप में भी सबसे खमतखामणा हो जाए ताकि निश्‍चय और व्यवहार में क्षमा का प्रयोग हो सके।
मेरा ज्यादा काम साध्वीप्रमुखाजी से पड़ता है, जो 550 साध्वियों में सर्वोच्च स्थान पर हैं, लगभग पिछले 50 वर्षों से साध्वीप्रमुखा का दायित्व निभा रहे हैं। स्वयं भी उस स्थान पर शोभायमान हो रहे हैं। व्यवस्थागत व सिद्धांतों को लेकर गोष्ठियाँ होती रहती हैं। वाचन का क्रम भी चलता है। अनेक संदर्भों में चिंतन-मंथन करने का मौका पड़ता रहता है। आपने तो तीन पीढ़ियों की सेवा का अवसर प्राप्त किया है, वर्तमान में कर रही हैं। आचार्यों को साध्वीप्रमुखा का भी सहयोग अपेक्षित हो जाता है, मिलता रहता है। आप नवमें दशक में प्रवेश कर चुकी हैं, आपके स्वास्थ्य की अनुकूलता बनी रहे। संवत्सरी के संबंध में कोई हमारे से व्यवहार में आसातना हो गई, अप्रियता आ गई हो, निर्णय करने में असातना हो गई हो तो आपसे बारंबार खमतखामणा। आपकी सेवा निरंतर मिलती रहे।
मुख्य नियोजिका जी, साध्वीवर्या जी, मुख्य मुनिजी एवं सभी साधु-साध्वी समाज से खमतखामणा पूज्यप्रवर ने किया। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि सबका स्वास्थ्य स्वस्थ रहे, अच्छी साधना चलती रहे। समणीवृंद से भी खमतखामणा किया। बहिर्विहारी साधु-साध्वियों, समणियों से खमतखामणा की। सबके प्रति मंगलकामना व्यक्‍त की। सभी के स्वास्थ्य की अनुकूलता रहे, अच्छे कार्य, साधना करते रहें। मुमुक्षु भाई और बहनों श्रावक-श्राविका समाज, बहुश्रुत परिषद के संयोजक मुनि महेंद्र कुमार जी व बहुश्रुत परिषद के सदस्य साध्वी राजीमती जी एवं साध्वी कनकश्री जी, उपासक श्रेणी हमारे धर्मसंघ से जुड़ी हुई कितनी केंद्रीय संस्थाओं के पदाधिकारियों, तेरापंथ विकास परिषद, कल्याण परिषद व्यवस्था समिति के सदस्यों से भी खमतखामणा करता हूँ।
जैन शासन के आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक आदि सभी साधु-साध्वियों, जैनेत्तर धर्मगुरुओं-संन्यासियों, धर्मसंघ से मुक्‍त व्यक्‍तियों, गुरुकुलवास के कर्मचारियों एवं राजनीति से जुड़े नेताओं एवं शेष-अशेष को खमतखामणा किया।
वर्षभर के लिए सामुहिक आलोयणा ग्रहण करवाई। साधु-साध्वियों ने आपस में सभी से संवत्सरी संबंधी खमतखामणा की। आध्यात्मिक जीवन की मंगलकामना की।