सामायिक में आध्यात्मिक साधना एवं स्वाध्याय करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सामायिक में आध्यात्मिक साधना एवं स्वाध्याय करें : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 6 सितंबर, 2021
समता के सागर, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पर्युषण पर्व के तीसरे दिवस पर मंगल देषणा प्रदान करते हुए फरमाया कि परम वंदनीय भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा का प्रसंग विस्तारपूर्वक फरमाया। पूज्यप्रवर ने आगे फरमाया कि सम्यक् दर्शन, सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए दर्शन मोहनीय का विलय भी अपेक्षित है। क्षयोपशम, क्षय का उपशम हो। इतना ही नहीं साथ में चारित्र मोहनीय का विषय भी अपेक्षित होता है। अनंतानुबंधी चतुष्क की विलय भी साथ में अपेक्षित है। इसमें एक निष्कर्ष यह निकलता है कि सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए केवल दर्शन मोहनीय के विलय की ही अपेक्षा नहीं, चारित्र मोहनीय के विलय की भी अपेक्षा है।
सम्यक्त्व के लिए चारित्र निर्मलता भी आवश्यक है। सम्यक्त्व प्राप्ति के लिए सात प्रवृत्तियों का क्षय, उपशम, क्षयोपशम चाहिए। दर्शन सप्तक विलय को प्राप्त हो तब सम्यक्त्व की निष्पत्ति, उपलब्धि होती है। नयसार ने सम्यक्त्व प्राप्त किया मानो नयसार का जीवन धन्य हो गया। एक समय अस्थिर जीवन अवसान को प्राप्त होता है।
हमारी दुनिया की ऐसी व्यवस्था है कि कोई भी प्राणी हो, जन्म लिया है, तो अवसान होगा ही होगा। मृत्यु का होना तो निश्‍चित है, कब होना, यह सामान्य रूपेण प्राय: अनिश्‍चित होता है। आदमी को ध्यान रहे कि वह जागरूक रहे। ‘समयं गोयम मा पमायए’ यह हमारे लिए आदर्श उपदेश है। उत्तराध्ययन आगम का दसवाँ अध्ययन बड़ा प्रेरक है। जो वास्तव में अच्छी प्रेरणा देने वाला सिद्ध हो सकता है।
आत्मा अमर है तो आत्मा आगे भी चली जाती है। नयसार की आत्मा दूसरे भव में सौधर्म देवलोक की होती है। एक दिन हर गति का आयुष्य संपन्‍न होता है। नयसार का देवगति का आयुष्य भी संपन्‍न होता है। तीसरे भव में भगवान महावीर की आत्मा मनुष्य के रूप में जन्म लेती है।
सुकुल में जन्म लेने वाले के धर्माराधना में आनुकूल्य हो सकता है। तीसरे भव में चक्रवर्ती भरत का पुत्र, भगवान ॠषभ का पौत्र नयसार का जीव बनता है। नाम रखा मरिचि कुमार। भगवान ॠषभ का अयोध्या में पदार्पण होता है। मरिचि को संपर्क का मौका मिला। भगवान ॠषभ की देषणा का श्रवण भी किया। प्रवचन से भी कितनों का कल्याण हो सकता है।
मरिचि का भगवान ॠषभ की देषणा से चित्त भावित हो गया, वैराग्य उत्पन्‍न हो गया। इच्छा हुई साधु बन जाऊँ। साधु ध्यान दें उनके नातिलों में भी भव्य आत्माएँ हो सकती हैं। दूसरों को तैयार करना अच्छा उपकार है, सेवा का काम हो सकता है। मरिचि दीक्षित होकर साधु बन गया। आगमाध्ययन शुरू किया। साधु जीवन में आगम का अध्ययन एक संपोषण है, खुराक है। अर्थ के साथ पुनरावर्तन करना बहुत बढ़िया है। हम आगम का स्वाध्याय करते रहें, यह काम्य है।
पर्युषण महापर्व की आराधना के अंतर्गत आज सामायिक दिवस है। सामायिक एक सुंदर साधना है। ‘धर्म है, समता-विषमता पाप का अधार है---त्याग कर सावद्य-चर्या सुखद सामायिक करूँ। लीन अपने आपमें हो, मैं भवोदधि को तरूँ। समता धर्म है, सामायिक में समता की साधना है। राग-द्वेष, सावद्य वृत्ति का त्याग है। शनिवार की 7 से 8 बजे शाम की सामायिक साधना कहीं भी कर सकते हैं।
सामायिक में अशुभ योग की प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिए। सामायिक में समाचार पत्र न पढ़ें। आध्यात्मिक अनुष्ठान
चले। मोबाइल को छूना ही नहीं चाहिए। बीच में कभी घंटी भी बंद करनी पड़े तो उसका भी प्रायश्‍चित लेना चाहिए। सामायिक में जो स्थिति है, समता रहे। आध्यात्मिक स्वाध्याय-साधना चले। सामायिक का समय धार्मिक कार्यों में बीतना चाहिए।
सामायिक संवर की साधना है। सामायिक मूलत: शुभ योग नहीं होता है। सामायिक में शुभ योग हो सकता है। सामायिक अपने आपमें शुभ योग नहीं है, संवर है। साधु-साध्वियों में व गृहस्थों में अपने ढंग की साधना कर सकते हैं। सामायिक में लगभग सूर्यास्त के बाद 20 मिनट बीते उसके बाद और सूर्योदय से 20 मिनट अवशेष रहे, उससे पहले का समय अछाया काल है। खुले आकाश में नहीं बैठना होता है।
कार, ट्रेन, प्लेन, नौका, टेम्पो में भी सामायिक नहीं करनी चाहिए। सामायिक तो एक जगह स्थित होकर करनी चाहिए। यात्रा में सामायिक नहीं। सापेक्ष संवर
कुछ समय का भले कर ले। स्टेशन पर बैठकर सामायिक की जा सकती है। आज पक्खी है। पर्युषण पक्खी का प्रतिक्रमण आज है।
पूज्यप्रवर ने हाजरी का वाचन किया।
मुनि पारसकुमार जी की 48 की तपस्या संपन्‍न
मुनि पारस जी पूज्यप्रवर की सन्‍निधि में उपस्थित हुए। इन्होंने 47 की लड़ी संपन्‍न कर दी है। आज 48 की लड़ी संपन्‍न पूज्यप्रवर की सन्‍निधि में हो रही है। वैराग्य काल में 51 की तपस्या की थी। पारस कुमार जी ने तीन पचरंगी, तीन धर्मचक्र सहित अनेक तपस्याएँ की हैं। पूज्यप्रवर ने 48 की तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। मुनि पारसकुमार जी को अग्रणी की वंदना करवाई।
पूज्यप्रवर ने अन्य तपस्याओं के प्रत्याख्यान करवाए।
प्रवचन में मुख्यमुनि मुनि महावीर कुमार जी ने गीत का संगान किया। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने आर्जव-मार्दव धर्म पर प्रकाश डाला। मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभा जी ने देश व्रत सामायिक पर अपनी भावाभिव्यक्‍ति दी। साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने अपने वक्‍तव्य में कहा कि समता की साधना धर्म-ध्यान का उत्कृष्ट रूप है। साध्वी कौशलप्रभा जी ने सामायिक दिवस गीत का संगान किया। पूज्यप्रवर ने तपस्याओं के प्रत्याख्यान करवाए। संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।