जीवन की असली संपदा है श्रावक के बारह व्रत

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जीवन की असली संपदा है श्रावक के बारह व्रत

राजलदेसर
डॉ0 साध्वी परमयशा जी ने बारह व्रत की कार्यशाला में कहा कि श्रावक वह होता है जो श्रद्धाशील, विवेकशील और कर्मशील होता है। श्रावक को श्रमणोपासक कहते हैं, क्योंकि वह श्रमणों समुपासना करता है। बारह व्रत जीवन की असली संपदा है। जीवन में राग-द्वेष की गाँठें ना रहें। व्रतों के पालन का उद्देश्य हैआत्मा का कल्याण, कर्मों की निर्जरा।
इस अवसर पर डॉ0 परमयशा जी, साध्वी धर्मयशा जी, साध्वी विनम्रयशा जी, साध्वी मुक्‍ताप्रभा जी ने गीत का संगान करते हुए राग-द्वेष रहित तनावमुक्‍त जीवन का आह्वान किया। श्रावक संबोध के आधार पर बारह व्रतों को अध्यात्म जगत की महान संपदा बताया। तेयुप के अध्यक्ष मुकेश श्रीमाल ने श्रावक दीक्षा पुस्तक का वितरण किया एवं श्रावक व्रत धारण करने वालों को फार्म भरने के बारे में बताया।