आत्म निर्जरा का विशिष्ट साधन है जप : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आत्म निर्जरा का विशिष्ट साधन है जप : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 9 सितंबर, 2021
जिन शासन के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवान महावीर के पूर्व भवों का विवेचन करते हुए फरमाया कि परम पावन भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा नयासर जो भगवान महावीर के 27 भवों में पहले भव में हुए। नयसार छठे भव में पुष्पमित नाम का ब्राह्मण हुआ। वहाँ से वह सौधर्म देवलोक में उत्पन्‍न हुआ।
आठवें भव में अग्निहोत्र ब्राह्मण बना। जीवन के अंतिम भाग में परिव्राजक बन गया। नौवें भव में ईशान देवलोक में देव बना। दसवें भव में अग्निभूत ब्राह्मण बना और आगे अंत समय में परिव्राजक बन गया। ग्यारहवें भव में तीसरे देवलोक में देव बना। बारहवें भव में फिर मनुष्य गति में उत्पन्‍न हुआ। तेरहवें भव में माहेंद्र चौथे देवलोक में वह देव बना। चौदहवें भव में स्थावर नामक ब्राह्मण बना। पंद्रहवें भव में पंचम देवलोक में देव बना।
सोलहवें भव में विश्‍वभूति नामक मनुष्य रूप में पैदा हुआ। चरित्र भी ग्रहण किया। परंतु साथ में निदान भी कर लिया। निदान कर लेना एक अपनी साधना को मानो कि थोड़े में बेच देना सा हो सकता है। जो साधु शीलव्रत व महान फल देने वाले होते हैं, उनको नष्ट कर जो धृति से दुर्बल है, वो एक कांकिणी को खरीदता है। इसमें से हम दो बातों को प्रेरणा के रूप में ग्रहण कर सकते हैं। जो साधुपन को भोगों के लिए छोड़कर चला जाता है या इच्छा करता है, वह मानो करोड़ की संपति में से छोटी सी कांकणी मानो कोड़ी को लेना चाहता है।
जो साधु निदान कर लेता है कि मेरी तपस्या-संयम की साधना का फल हो, मैं प्रबल बलशाली बन जाऊँ। वह भी थोड़े में बहुत खोने जैसी बात हो जाती है। निदान करके प्रायश्‍चित न करे तो घाटे का सौदा हो जाता है। सतरहवें भव में सातवें देवलोक में नयसार का जीव देव रूप में उत्पन्‍न होता है। वहाँ से च्युत होकर वापस मनुष्य बनता है।
अट्ठारहवें भव में नयसार का जीव एक राजघराने में पैदा होता है। त्रिपृष्ठ वासुदेव के जीवन वर्णन को विस्तार से समझाया। इस भव में इस अवसर्पिणी काल में प्रथम बलदेव, प्रथम वासुदेव व प्रथम प्रतिवासुदेव उत्पन्‍न होते हैं। आगम में 54 उत्तम पुरुष बताए गए हैं24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलदेव, 9 वासुदेव कुल 54 । वहाँ प्रतिवासुदेव का नाम आगम में नहीं आया है। वैसे 63 श्‍लाकापुरुष बताए गए हैं, उनमें प्रतिवासुदेव की गिनती आ जाती है।
प्रतिवासुदेव तो मारे जाने वाले हैं। उत्तम पुरुष हो और मारे जाएँ तो वो उत्तम पुरुष नहीं हो सकते। ऐसा कारण हो सकता है। नयसार के जीव ने सोलहवें भव में निदान किया था और अठारहवें भव में इतना बलशाली बना कि उसने शेर को भी मार दिया तथा प्रतिवासुदेव को भी मारकर वासुदेव के रूप में त्रिखंडाधिपति बन गया।
पूज्यप्रवर ने जप दिवस पर प्रेरणा देते हुए फरमाया कि जप आत्म शुद्धि के लिए किया जाना चाहिए। जप आत्म निर्जरा का एक बहुत बड़ा साधन है। मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि त्याग धर्म की चेतना हर व्यक्‍ति के भीतर होनी चाहिए। भोग से त्याग की ओर कदम बढ़ाकर सुख की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने कहा कि मंत्र की शक्‍ति आत्म शक्‍ति का जागरण करके चेतना को उर्ध्वमुखी बनाती है। नमस्कार महामंत्र सब पापों का नाश करने वाला है। कार्यक्रम में मुनि मार्दव कुमार जी एवं साध्वी विवेकश्री जी ने अपनी भावाभिव्यक्‍ति दी।
पूज्यप्रवर ने साधु-साध्वियों से तत्त्व संबंधी प्रश्‍न पूछे स्वयं जप का प्रयोग करवाया। तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।