प्रतिसेवना का दोष लगे तो उसकी शुद्धि कर लेनी चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

प्रतिसेवना का दोष लगे तो उसकी शुद्धि कर लेनी चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 2 सितंबर, 2021
जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि ठाणं आगम के दसवें अध्याय के 69वें सूत्र में बताया गया है कि एक शब्द हैप्रतिसेवणा। यह एक दोष-सेवन का कार्य होता है। प्रतिसेवन यानी प्रतिकूल सेवन। साधु को जो करणीय है, जो सेवन करना है, उसके प्रतिकूल चला जाना। वो प्रति सेवना है। प्रति सेवन के भी दस प्रकार बताए गए हैंदर्प प्रतिसेवणा, प्रमाद प्रतिसेवणा, अनाभोग प्रतिसेवणा, आतुर प्रतिसेवणा, आप्रत प्रतिसेवणा, शंकित प्रतिसेवणा, सहसा करण प्रतिसेवणा, भय प्रतिसेवणा, प्रदोष प्रतिसेवणा, विमर्श प्रतिसेवणा। दोष-सेवन के भी अनेक स्तर हो सकते हैं। भिन्‍न-भिन्‍न परिस्थितियों में दोष का सेवन किया जा सकता है।
हम साधु संस्था के संदर्भ में ध्यान दें कि दर्प प्रतिसेवणा। एक साधु उद्दंड भाव से हिंसा आदि का काम कर लेता है, वह एक खराब-बड़े स्तर का दोष हो जाता है। प्रमाद-प्रतिसेवणा। जैसे कोई विकथा में
लग गया। अनाभोग प्रतिसेवणा यानी
भूल से हो गया। चौथा प्रकार-आतुर प्रतिसेवणा कोई भूख-प्यास आदि से आतुर होकर कोई दोष का सेवन कर लिया। पाँचवाँआप्रत-प्रतिसेवणा कोई आपदा की स्थिति आ जाने पर दोष का सेवन करना पड़ जाए। आपदा चार प्रकार की होती हैद्रव्यत: क्षेत्रत: कालत: और भावत: आपद।
छठा हैशंकित प्रतिसेवणाशंका होने पर दोष का सेवन हो जाना। सहसाकरण प्रतिसेवणा अकस्मात् होने वाला प्राणातिपात आदि दोष का आसेवन। आठवाँ हैभय प्रतिसेवणाभय के कारण से दोष लग जाना। नौवाँ हैप्रदोष प्रतिसेवणाक्रोध आदि से किया जाने वाला प्राणातिपात
दोष सेवन। दसवाँ हैविमर्श प्रतिसेवणा कभी-कभी गुरु शिष्यों की परीक्षा के लिए सचित भूमि आदि पर चलने लग जाते हैं। शिष्यों की प्रतिक्रिया जानने के लिए दोष का सेवन करना।
साधु जीवन में अनेक रूपों में प्रतिसेवणा हो सकती है। प्रतिसेवणा के संक्षेप में दो प्रकार भी हैदर्पिका और कल्पिका। दर्पिका यानी उद्यत-अहंकार आदि के कारण व कल्पिका यानी परिस्थिति के कारण दोष का सेवन हो जाना। परिस्थिति के अनुसार ही दंड की मात्रा ज्यादा कम व सामने वाले के स्वास्थ्य की स्थिति देखकर दंड देना पड़ता है।
प्रयास करें कि साधु के प्रतिसेवना का दोष लगे ही नहीं, अगर लग जाए तो उसकी शुद्धि कर लेनी चाहिए। छठे गुणस्थान में भी साधु-साधु में पूनम के चंद्रमा के समान चारित्र वाला है, तो कोई चौथ या दूज के समान चारित्र वाला हो सकता है, निर्मलता में अंतर हो सकता है।
दोष लग गया है, तो भावना अच्छी रहे कि कहीं मैं विराधक न हो जाऊँ। मेरी शुद्धि हो जाए। गलती हो जाए तो शोधन हो जाए। यह काम्य है।
पर्युषण का समय अब सामने आ रहा है। पर्युषण का अच्छा क्रम हमारा चले, अच्छी धर्माराधना चले। आध्यात्मिक उत्साह बना रहे। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। पूज्यप्रवर ने सम्यक्त्व दीक्षा ग्रहण करवाई।
प्रवचन से पूर्व स्थानीय न्यायाधीशों एवं एडवोकेट का समूह पूज्यप्रवर की सन्‍निधि में पहुँचा। पूज्यप्रवर ने उनकी जिज्ञासाओं का समाधान किया। प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आप लोगों के जीवन में सच्चाई, कर्तव्यपालन और अहिंसा की भावना बनी रहे। कर्म के साथ धर्म को जोड़ना चाहिए।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि हम अध्यात्म में प्रवेश नहीं करेंगे, तो इससे अच्छा अवसर मिलने वाला नहीं है। जीवन में उतार-चढ़ाव के अनेक पड़ाव आते हैं। उतार चढ़ाव की और चढ़ाव उतार की प्रेरणा देता है।
मुनि संबोध कुमार जी एवं साध्वी कमनीयप्रभा जी ने सुमधुर गीत की प्रस्तुति दी।
राकेश मांडोत, चेन्‍नई ने अमृत वाणी में ओम अर्हम् गीत संकलन का तीसरा भाग श्रीचरणों में अर्पित किया। प्रमिला गोखरू, सुमन भलावत ने अपनी भावना श्रीचरणों में अर्पित की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।