सभी को यथायोग्य सेवा करने का प्रयास करना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सभी को यथायोग्य सेवा करने का प्रयास करना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 30 अगस्त, 2021
जन-जन को आर्षवाणी का आलोक बाँटने वाले आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्रकार ने वैयावृत्य पर प्रकाश डाला है। वैयावृत्य का अर्थ हैसेवा करना। सेवा करना या उपकार के लिए कार्य करना वैयावृत्य हो जाता है।
जो सैव्य है, उनकी सेवा करनी चाहिए। सैव्य के आधार पर वैयावृत्य के दस प्रकार हो जाते हैं(1) आचार्य का वैयावृत्य, (2) उपाध्याय का वैयावृत्य, (3) स्थविर का वैयावृत्य, (4) तपस्वी का वैयावृत्य, (5) ग्लान का वैयावृत्य, (6) शैक्ष का वैयावृत्य, (7) कुल का वैयावृत्य, (8) गण का वैयावृत्य, (9) संघ का वैयावृत्य, (10) साधर्मिक का वैयावृत्य।
साधु संस्था में विभिन्‍न प्रकार के व्यक्‍तित्व हो सकते हैं। सेवा बीमार की भी की जाती है। कोई बीमार नहीं है, उसकी भी सेवा करनी अपेक्षित हो सकती है। तरुणावस्था में आचार्य है, तो भी वे वैयावृत्य के अधिकारी हो सकते हैं। सेवा लेने के अधिकारी हो सकते हैं। उनके प्रति वैयावृत्य स्तुत्य है। सम्मान का भाव है।
आचार्य के आहार की व्यवस्था हो जाए और भी जो आवश्यक हो उसकी व्यवस्था की जाए। उपाध्याय का भी वैयावृत्य हो जाए तो ज्ञान-ध्यान में अच्छा समय निकाल सकते हैं। तेरापंथ के इतिहास में वैसे किसी साधु को उपाध्याय का पद नहीं दिया गया है। हमारे संघ में आचार्य में ही उपाध्यात्व समाविष्ट हो जाता है। उपाध्याय का कार्य है, अध्यापन कराना, ज्ञान देना।
स्थविर है, तपस्वी है, ग्लान है, उनका भी वैयावृत्य हो। उनकी सेवा की जाए, अच्छी बात है। आदमी स्वावलंबी रहे तो अच्छी बात है। छोटे साधु-साध्वी उनको भी सेवा-संभाल मिले। इसी तरह बाकी को भी जब-जब अपेक्षा हो उपयोगी सेवा मिले। पदस्थों की सेवा होती रहे। इससे संघ का व्यवस्थापन अच्छा रहता है। कोई असहाय महसूस न करे। वैयावृत्य कर्ता है, उसके तीर्थंकर नाम गौत्र का बंध भी हो जाए।
सेवा करने में बड़ा लाभ होता है। सेवा से मेवा मिलता है। सेवा करो, सफल बनो। सेवा करो, लाभ कमाओ। हम प्रेरणा लेते रहें, हमारे में सेवा की भावना बनी रहे, हम यथायोग्य सेवा करने का प्रयास करते रहें, यह काम्य है।
माणक महिमा की व्याख्या करते हुए फरमाया कि अंतरिम काल शुरू हो गया है। मुनि मगनलाल जी और मुनि कालू जी (छापर) ने अंतरिम व्यवस्था का भार झेल लिया। दीक्षा वृद्ध साधु को आलोयणा आदि का भार दे दिया गया। चतुर्मास पूर्ण हो रहा है। लाडनूं पधार जाते हैं। वहीं बहिर्विहारी संत वहाँ एकत्रित हो रहे हैं। मुनि कालूजी रेलमगरा को आगे की व्यवस्था का निर्णय सौंप दिया गया।
पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। जैन विश्‍व भारती द्वारा प्रकाशित ‘आर्षवाणी का आलोक’ श्रीचरणों में अर्पित किया गया। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि हम आगम को आर्षवाणी के रूप में स्वीकार कर लें। आगमों में अनेक सूक्‍त हैं। जैसे आत्मा का दमन करने वाला सुखी होता है, इस लोक में भी और परलोक में भी। डॉ0 साध्वी सरलयशा जी स्वाध्याय के द्वारा जितना आगम सिंधु में निम्मज्जन करने का प्रयास करें। सेवा की भावना रहे। अच्छी साधना चले, खूब प्रगति करे। पुस्तक प्रेरणादायी बने।
जैन विश्‍व भारती द्वारा जैन विद्या परीक्षा के बैनर का अनावरण श्रीचरणों में किया गया।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि जो साधक लाघवता की साधना करता है, वह व्यक्‍ति हर पल आनंद का अनुभव करता है। जो साधक सम्यक् दर्शन की साधना करता है, सम्यक् दर्शन को अपने जीवन में पुष्ट बना लेता है, वह भी आनंद की अनुभूति कर लेता है। उसका द‍ृष्टिकोण-सोच सही बन जाती है।
साध्वीवर्या जी ने कहा कि हमारा जीवन हमारे हाथ में है। हमें कैसा जीवन जीना है, परतंत्र या स्वतंत्र। स्वतंत्र जीवन जीने के लिए जरूरी है, प्रतिक्रिया-विरति की साधना।
डॉ0 साध्वी सरलयशा जी ने अपनी पुस्तक के लोकार्पण पर अपनी भावना अभिव्यक्‍त की।
पुखराज बड़ौला ने जैन विद्या परीक्षा के बारे में जानकारी दी। भीलवाड़ा के कवि योगेंद्र शर्मा ने सुमधुर कविता का संगान किया। अभिषेक चौधरी एनएसयू ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। वे अशोक गहलोत मुख्यमंत्री राजस्थान के स्वास्थ्य की कामना हेतु पूज्यप्रवर का मंगलपाठ सुनने आए थे।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से हमारा संबंध भी है। चित्त समाधि बनी रहे। इसके निमित्त मंगलपाठ प्रदान करवाया। पूज्यप्रवर ने आध्यात्मिक मंगलकामना व्यक्‍त की।
कवि-लेखक नरेश शांडिल्य, राजेश चेतन ने अपनी भावना पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में अभिव्यक्‍त की।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।