संसार में नित्यता और अनित्यता दोनों विद्यमान है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संसार में नित्यता और अनित्यता दोनों विद्यमान है : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 31 अगस्त, 2021
अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में नित्यानित्य का क्रम चलता है। दुनिया में नित्यता भी है और अनित्यता भी है। ध्रोव्य है, तो उत्पाद और व्यय भी है। दुनिया में सब कुछ स्थिर हो जाता है तो दुनिया फिर अलग ढंग की हो जाती है। दुनिया में सब कुछ अस्थिर हो जाता है तो भी दुनिया कोई अलग ढंग की हो सकती है।
परंतु हमारी दुनिया में स्थायित्व भी है और अस्थायी चीजें भी चलती हैं। स्थायित्व के बिना अस्थायित्व नहीं और अस्थायी की युक्‍तता के बिना स्थायित्व भी नहीं। द्रव्य कभी पर्याय से रहित नहीं हो सकता और पर्याय है, वह द्रव्य के आश्रय के बिना नहीं हो सकता। स्थिरता के बिना परिवर्तनशीलता नहीं।
परिवर्तन और स्थिरता दोनों का अपना महत्त्व है। सृष्टि की ऐसी व्यवस्था है कि धर्मास्तिकाय भी है और अधर्मास्तिकाय भी। परिवर्तनशीलता के लिए एक शब्द हैपरिणाम, एक स्थिति से दूसरी स्थिति में चला जाना। यह परिणमन जीव में भी होता है और अजीव में भी होता है।
जैन दर्शन में भाव की बात आती है। भावा-स्वरूपं जीवस्थ। भाव जीव का स्वरूप है। इन भावों से परिवर्तनशीलता भी आती है। कर्मों के उदय से जीव में परिणामांतर हो जाता है। शास्त्रकार ने जीव परिणाम के दस प्रकार बताए हैं।
पहला हैगतिपरिणाम जीव अलग-अलग गतियों में जा सकता है। चार गति हैं। अव्यवहार राशि के जीवों का परिणामांतर कम हो रहा है। एक गति में भी जन्म-मरण का चक्र चलता है। दूसराइंद्रिय परिणाम। अलग-अलग इंद्रियों वाले जीव संसार में हैं। पाँच इंद्रियाँ हैं। मनुष्य संज्ञी-असंज्ञी होते हैं। केवलज्ञानी नो-संज्ञी-नो असंज्ञी होते हैं। केवलज्ञानी में द्रव्य इंद्रियाँ तो हैं, पर भाव इंद्रियाँ नहीं। भाव इंद्रियाँ क्षयोपशम भाव है। केवली तो क्षयोपशम भाव से ऊपर उठ गया। चारों घाती कर्म खत्म हो गए।
संज्ञीत्व भी छोटी चीज है, वो तो क्षयोपशम भाव है। क्षायिक भाव संज्ञीत्व से ऊपर की भूमिका हो गया। इसलिए नो संज्ञी-नो असंज्ञी। तीसरा कषाय परिणाम। अवीतराग है, उनमें कषाय भी है। चार कषाय हैं। कषाय परिणमन मन में तो होता रहता है। लेश्या परिणाम भी जीव में होता है। साधु बन जाने के बाद भी भगवान महावीर में छ: लेश्या थी। चौदहवाँ गुणस्थान अलेश्यी है। पाँचवाँ हैयोग परिणाम। लेश्या और योग की सहचरता है।
छठीउपयोग परिणाम। उपयोग तो जीव का लक्षण है। सिद्धों में भी उपयोग है। उपयोग में भी स्थिरता नहीं। आकार-साकार उपयोग चलता रहता है। ज्ञान परिणाम, दर्शन परिणाम भी जीव में भी होते हैं। चारित्र का परिणाम भी आता है। केवली नौवें गुणस्थान में ही अवेदी बन जाता है।
ये परिणाम जीवाश्रित है। ये जो परिणाम है, कई तो आदरणीय है, जैसे चारित्र परिणाम, सम्यक् दर्शन परिणमन, केवल ज्ञान, केवल दर्शन के रूप में ज्ञान और दर्शन बढ़िया उपयोग अच्छा है, शुभ योग है, वो भी ठीक है। बाकी परिणाम हेय हैं, त्याज्य हैं। लेश्या और शुभ योग से छोड़े बिना मुक्‍ति नहीं मिलेगी। अस्विर जाकर इंद्रियों की स्थिति से भी ऊपर उठना पड़ेगा। केवलज्ञान सर्वोत्कृष्ट ज्ञान है। चार ज्ञान क्षयोपशम भाव है। ज्यादा बढ़िया चीज दिखाई दे तो कम बढ़िया चीज छोड़ने लायक है।
वर्तमान जीवन के संदर्भ में देखें तो चारित्र परिणाम बढ़िया है। यह और उन्‍नत होता रहे। क्षयोपशम सम्यक्त्व से क्षायिक सम्यक्त्व की ओर बढ़ें। ज्ञान हमारा और ज्यादा विकसित करने का प्रयास करें। इन दस परिणामों में ग्राह्य का ग्रहण और त्याज्य का त्याग करें। यह काम्य है।
पूज्यप्रवर ने माणक-महिमा का विवेचन करते हुए फरमाया कि अब एक ही अपेक्षा है कि संघ को आचार्य कैसे मिले। प्रयास चल रहा है। मुनि कालूजी रेलमगरा वरिष्ठ मुनि थे। उन्होंने घोषणा की कि अपने सातवें आचार्य मुनि डालचंद जी हैं। सबके मन में खुशियाँ छा जाती हैं। अच्छा माहौल हो जाता है। संघ सनाथ हो गया। प्रकृति को जो मंजूर होता है, वही होता है। माणक महिमा अच्छा व्याख्यान है। माणक गणी के जीवन से हमें प्रेरणा मिलती रहे।
पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। उपासक सुरेश बोरदिया ने 25 की तपस्या के प्रत्याख्यान लिए।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि सम्यक् द‍ृष्टि या सम्यक् दर्शन जिसे प्राप्त होता है, वह मोक्ष पाने का अधिकारी हो सकता है। सम्यक्त्व के दूषणों के बारे में समझाया। जब व्यक्‍ति की गुरु के प्रति असीम श्रद्धा होती है, वह श्रद्धा हमारी बहुत सारी समस्याओं का समाधान दे देती है, बीमारियों से मुक्‍त कर देती है।
साध्वी चारित्रयशा जी ने सुमधुर गीतिका की प्रस्तुति दी। साध्वी युगप्रभा जी ने भी सुमधुर गीत की प्रस्तुति दी।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में चंद्रा बाबेल, दर्श चोरड़िया, सुरेश बोरदिया ने अपने-अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि एक अगस्त से शुरू नमस्कार मंत्र का सवा कोटि जप सवाया पूरा हो रहा है।