कृत दोषों की आलोचना शुद्ध मन से करनी चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कृत दोषों की आलोचना शुद्ध मन से करनी चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 3 सितंबर, 2021
अध्यात्म के सुमेरू आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि साधु से प्रतिसेवणा हो जाती है, दोष समाचरण हो जाता है, फिर उसकी शुद्धि का उपाय हैआलोचना करना।
आलोचना के भी दस दोष बताए गए हैं। ठीक विधि से आलोचना नहीं होती है, तो वह आलोचना का दोष होता है। उनमें पहला दोष है कि आचार्य की इस द‍ृष्टि से विशेष सेवा आदि करना, ताकि वे मृदुतापूर्ण प्रायश्‍चित दे। दंड कम दे। दूसरा दोष हैअनुमान्य। आलोचना करना है, साथ में यह कह देना कि आचार्यप्रवर मैं बड़ा दुर्बल हूँ। मुझे हल्का ही प्रायश्‍चित देना, यों मुँह से कहते रहना। ये भी दोष है। तीसरा दोष हैजो दोष आचार्य आदि ने देख-जान लिया है, उस दोष की तो आलोचना कर लेना, बाकि जिस दोष के बारे में आचार्य को पता नहीं है, उसको छिपा लेना। उसकी आलोचना नहीं करना। चौथा आलोचना का दोष-बाधक। केवल बड़े-बड़े दोषों को तो बता देना बाकि छोटी-छोटी बातों को छिपा लेना। पाँचवाँ दोष हैसूक्ष्म। केवल छोटे दोषों की आलोचना करना, बड़े दोषों को छिपा लेना। छठा दोष हैछन्‍न। थोड़ा गुप्त रूप में करना। इतना धीरे बोला कि दोष को आचार्यजी सुन ही ना पाएँ। बात को छिपा लेना। सातवाँशब्दाकु। जोर-जोर से बोल देना या जहाँ शोरगुल हो वहाँ बोल देना।  आठवाँ दोष हैबहुजन। एक के पास आलोचना कर फिर उसकी दूसरे के पास आलोचना करना। नौवाँ हैअव्यक्‍त। जो अधिकृत है, उनके पास आलोचना करो, हर किसी के पास नहीं। दसवाँ प्रकार हैतत् सेवी। प्रायश्‍चित देने वाले अनेक व्यक्‍ति हैं। ऐसे व्यक्‍ति के पास जाऊँ, जो गलती मैंने की है, वो उन्होंने भी की है। फिर वे शर्मिंदा होकर मुझे थोड़े में ही कम प्रायश्‍चित देंगे। ये दस आलोचना के दोष हैं। इनसे आलोचना बढ़िया तरीके से नहीं होती।
साधु से गलती हो सकती है। चलने वाले से गिरने की स्थिति उसमें आ सकती है। चलेगा ही नहीं तो गिरेगा कैसे। चलो, सावधानी का प्रयास करो। चलोगे तो मंजिल निकट आएगी। गिरे हुए को संभालना बड़ी बात है। गिरने के बाद ठीक हो जाना भी अच्छी बात है। गिर गए, संभल गए तो थोड़ा नुकसान हुआ, पर आगे का जीवन तो अच्छा रह सकता है। सुबह का भूला, शाम को भी घर आ जाए तो भी ठीक है। बढ़िया तो है, आदमी गिरे ही नहीं।
यह साधु जीवन है, अंतिम श्‍वास अच्छी साधना में आ जाए, बढ़िया बात है। अखंड कपड़ा बढ़िया है, कोई फट गया है, तो टाँका लगाकर जोड़ लो। साधु जीवन की इस प्रकार सुरक्षा रहे। जो गलतियाँ, प्रमाद, प्रतिसेवणा हो जाए, इन दस दोषों से बचकर के साधु को अपने अधिकृत प्रायश्‍चित दाता के पास सरल हृदय से आलोचना करनी चाहिए ताकि अच्छी शुद्धि होने की संभावना बन सकती है। कल से पर्युषण पर्व का प्रारंभ होने जा रहा है। यह प्रतिष्ठित धर्माराधना का समय है। गुरुकुलवास में इसकी महाशिविर के रूप में आयोजना होती है। इसको पर्वाधिराज कहा गया है। मोक्ष मार्ग की विशेष आराधना का पर्व, मन की ग्रंथियों को खोलने का पर्व है। प्रवचन कार्यक्रम के बारे में विस्तृत जानकारी फरमायी। तपस्या की प्रेरणा दी। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। साध्वी हेमलता जी एवं साध्वी अर्चनाश्री जी पूज्यप्रवर की सन्‍निधि में पहुँची। पूज्यप्रवर ने उन्हें प्रेरणा प्रदान करवाई। मुख्य नियोजिका जी ने सम्यक्त्व को सुरक्षित रखने के उपायों के बारे में बताया। साध्वीवर्या जी ने कहा कि आत्मा को कोई परमात्मा नहीं बना सकता स्वयं प्रयास करना पड़ता है। मुनि प्रसन्‍न कुमार जी ने तपस्या के बारे में जानकारी दी। साध्वी हेमलता जी ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। साध्वी चारूलता जी ने सुमधुर गीत की प्रस्तुति दी। महामंत्री निर्मल गोखरू ने जप के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।