तप-स्वाध्याय से अपनी आत्मा को जीतने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

तप-स्वाध्याय से अपनी आत्मा को जीतने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण

रतलाम, 23 जून, 2021
रतलाम में त्रिदिवसीय प्रवासरत जिनशासन प्रभावक महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्रकार ने युद्ध की बात बताई है। युद्ध हिंसापूर्ण भी हो सकता है और युद्ध अध्यात्म से जुड़ा हुआ भी हो सकता है।
एक संदर्भ में जो शास्त्र में युद्ध की बात आई है, उसे धर्म-युद्ध भी कहा जा सकता है कि लड़ो। दूसरे मनुष्यों से लड़ने वाला मूढ़ हो सकता है और स्वयं से लड़ने वाला बुद्ध हो सकता है। वीतराग और केवलज्ञानी बन सकता है। दूसरों से लड़ना बाहर का युद्ध है स्वयं से युद्ध लड़ना भीतर का युद्ध होता है।
शास्त्रकार ने कहा है कि तुम्हें बाहर के युद्ध से क्या मतलब है। अपने आपसे लड़कर, अपने आपको जीतकर आदमी सुख प्राप्त कर लेता है। आत्म युद्ध की अपेक्षा है। अपने आपसे कैसे लड़ें? आत्मा से आत्मा लड़े। भाव आत्मा से युद्ध करें। कषाय आत्मा, अशुभयोग आत्मा से, मिथ्यादर्शन आत्मा से लड़ने की बात है।
हमें जिसे परास्त करना है, वो कषाय आत्मा है। परास्त करने वाली चारित्र शुभ योग आत्मा, सम्यक् दर्शन आत्मा और उपयोग आत्मा है। इनसे हम कषाय आत्मा को परास्त कर सकते हैं। चारित्र आत्मा से कषाय आत्मा पर प्रहार हो। मोहनीय कर्म का औदायिक भाव है, उसको कषाय आत्मा का मुख्य तत्त्व मान लें। चारित्र आत्मा, शुभ योग आत्मा का मुख्य तत्त्व है, मोहनीय कर्म का क्षयोपशम भाव या क्षायिक भाव, वो मूल प्रहार करने वाला है। मोहनीय का विलय तत्त्व मूल है।
आत्म सुखों की प्राप्ति में कषाय ही बाधक तत्त्व है। साधु के लिए सर्वसावद्य योग का तीन करण-तीन योग से यावज्जीवन त्याग होता है। ये साधु की विराटता है। गृहस्थ सामायिक में छ: कोटि या 8 कोटि तक के त्याग करते हैं। नौ कोटि की भी हो सकती है। तीनों मान्य हैं। ये सापेक्ष है। तात्कालिक रूप में हो सकती है। प्रत्यक्ष रूप में न हो पर परोक्ष रूप में श्रावक के सावद्य क्रिया कई कारणों से चलती है।
साधु का त्याग निर्पेक्ष, निरागार है। ये साधना कषाय आत्मा पर एक तरह से प्रहार है। पर साधु भी छद्मस्थ है, कभी योगों में आ जाए तो योग सावद्य बन सकता है। प्रमाद आ जाए तो आलोचन-शुद्धि होनी चाहिए। योग में कषाय नहीं आता है तो योग निर्मल है।
पाप कर्म का मूल जिम्मेवार कषाय है। योग को तो जैसी हवा मिलती है, वैसा हो जाता है। तेरहवें गुणस्थान में योग तो है, पर कषाय नहीं है तो कर्म बंधता है, तुरंत झड़ जाता है। चारित्र आत्माएँ ध्यान दें कि मेरी कषाय-मान्यता रहे। प्रशांत चित्त वाले हो। क्रोध-मान, माया, लोभ वाले हो। गुस्से में तेजी न आए, मंदता रहे। न्यारा में भी कषाय मंदता रहे तो सिंघाड़े की शोभा रहती है। अनासक्‍त भाव रहे।
आसक्‍ति वाला उपभोग न करें। अच्छी कषाय मंदता की साधना करें। स्वाध्याय जप आदि-आदि के द्वारा भी हम आत्म युद्ध में सफलता पाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। ये आत्म-युद्ध का संदेश उत्तराध्ययन आगम में दिया गया है। हम साधु-साध्वियाँ आत्म-युद्ध की साधना में पुरुषार्थ यथोचित्य करते रहें, यह काम्य है।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि यथासंभवतया 6 जुलाई को जावद में पहुँचने का भाव है। जावद में 2 रात प्रवास करने का भाव है। यथासंभव साध्वीप्रमुखाश्री जी से हमारा आध्यात्मिक मिलन 5 जुलाई को नीमच या आसपास हो जाना चाहिए। मुनि वर्धमान कल बहिर्विहार में जा रहे हैं। मुनि वर्धमानकुमार जी ने अपनी भावना व्यक्‍त की। मुनि वर्धमानजी को अग्रणी की वंदना करवाई।

जेसराज शेखाणी को ‘समाज भूषण’ अलंकरण
जेसराज शेखाणी आज प्रात: दर्शनार्थ आए थे। 97 वर्ष के हो गए हैं। अमृतवाणी जो आज हो रही है। इनका ही योगदान रहा है। श्रद्धा-भाव अच्छे हैं। इस उम्र में इतनी दूर आए हैं। मुनि कुमारश्रमण जी ने उनके बारे में बातें बताई। गुरु वाणी, घर-घर पहुँचाणी, जेसराज शेखाणी ऐसे संत बात करते थे। मुनि कीर्तिकुमार जी ने भी उनके विषय में जानकारी दी। अमृतवाणी धर्मसंघ की संपत्ति है। उनको गुरुओं की कृपा द‍ृष्टि प्राप्त है। मुनि विश्रुत कुमार जी ने भी उनके कार्यों की प्रशंसा की। तीनों गुरुओं का आशीष उन्हें प्राप्त हुआ है। मुनि योगेश कुमार जी ने कहा कि जेसराज शेखाणी इस शताब्दी के विशेष श्रावक हैं, जिन्होंने धर्मसंघ की अपूर्व सेवा की है। उनका श्रावकत्व अग्रिम पंक्‍ति का रहा है। मुनि उदित कुमार जी ने कहा कि वह श्रावक धन्य होता है, जिसे गुरु की कृपा प्राप्त होती है। मुनि रजनीश कुमार जी ने कहा कि किसी श्रावक का जन्म दिवस गुरु सन्‍निधि में मनाया जाना विशेष बात है। मुनि जिनेंद्र कुमार जी ने कहा कि हमने आनंद श्रमणोपासक को देखा नहीं है, पर शेखाणीजी आचार्यश्री महाश्रमण जी के वैसे ही श्रावक हैं। मुनि कोमलकुमार जी भगवान महावीर के श्रावकों के समान जेसराज शेखाणी को बताया। मुनि दिनेश कुमार जी ने कहा कि ये गुरुदेव तुलसी की राग-रागिणियों की रिकॉर्डिंग करते थे। ये शम, सम और संवेग की प्रतिमूर्ति हैं।
साध्वीवर्याजी ने बताया कि मैं श्रावक जेसराज शेखाणी को देखती हूँ तो मुझे गुरुदेव तुलसी के श्रावक संबोध की पंक्‍तियाँ याद आ जाती हैं‘श्रावक है विमल विश्‍वासी---।’ गुरुओं के प्रति गुरु श्रद्धा विरल है।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि कुछ व्यक्‍ति श्रद्धा संपन्‍न होते हैं, कुछ व्यक्‍ति साधना संपन्‍न होते हैं। जेसराज शेखाणी दोनों बातों से संपन्‍न हैं। श्रद्धा और साधना से शेखाणीजी का जीवन तेजस्वी बना है। शेखाणी जी ने अब तक का जो जीवन जीया है, उससे और अधिक श्रेष्ठ जीवन जीएँ।
मुख्य मुनिप्रवर ने कहा कि श्रावक शेखाणीजी के मन में अहंकार का भाव नहीं है। मन में निष्ठा है। रग-रग में संस्कार है कि मैं धर्मसंघ की ओर सेवा कर सकूँ। इन पर गुरुओं की महान कृपा रही है। ऐसे जागरूक, साधक श्रावक जेसराज शेखाणी 100 साल बाद भी धर्मसंघ की सेवा करते रहें और साधना में भी गतिमान रहें।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि साधना में हमें आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। श्रावकों में भी कई-कई विशेष साधना करने वाले श्रावक हैं। साथ में संघ निष्ठा भी है। आत्मनिष्ठा और साधना निष्ठा भी है। जहाँ कहीं अच्छी बात मिले हमें लेनी चाहिए। खाद्य संयम है, साधना है, कषायमंदता है, अर्हतवाणी के प्रति श्रद्धा-भक्‍ति है। जेसराज शेखाणी की खूब अच्छी साधना बढ़ती रहे। उनके जीवन में अध्यात्म का उपक्रम चलता रहे।
महासभा की ओर से भी अशोक बरमेचा ने घोषणा की कि जेसराज शेखाणी बीदासर को सन् 2020 के बीदासर मर्यादा महोत्सव के अवसर पर जैन शासन तेरापंथ के सर्वोच्च अलंकरण ‘समाज भूषण’ से अलंकृत किया जाएगा।
मुनि सिद्धप्रज्ञजी ने भी शेखाणी के प्रति मंगलभावना अभिव्यक्‍त की। ये साधक होने के साथ ज्ञानी और योग साधक हैं।
रतलाम की ओर से पूज्यप्रवर के स्वागत अभिवंदना में शिक्षा कोठारी ने गीत ज्योति पीपाड़ा, तेयुप अध्यक्ष हेमंत दक, किशोर मंडल, अंगूरबाला मांडोत, ललित दक, मोना बरलोटा, पायल बरलोटा, कन्या मंडल ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।
मुनि सत्यकुमार जी जेा लगभग 12 वर्षों तक रतलाम में रहे हैं, पूज्यप्रवर के स्वागत में अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी। गुरुदेव मैं इंगितागार संपन्‍न बन सकूँ ऐसा आशीर्वाद प्रदान कराएँ।
सन् 2021 में रतलाम में चातुर्मास करने वाली साध्वी प्रबलयशा जी ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।
मुनि योगेश कुमार जी ने रतलामवासियों की ओर से गुरुदेव से 2024 के चतुर्मास के लिए अपनी बातें रखी। रतलाम वासी पूज्यप्रवर के चतुर्मास के लिए हर तरह से तैयार हैं।
रतलामवासियों ने पूरे जोर और जोश के साथ गुरुदेव से 2024 का चतुर्मास रतलाम फरमाने की विनती की।
‘तेरापंथ के राम, चतुर्मास दो रतलाम’
तेरापंथ युवक परिषद ने गीत के माध्यम से चतुर्मास की अर्ज की।
पूज्यप्रवर ने इस अवसर पर फरमाया कि सन् 2024 के हमारे चतुर्मास के लिए अनुरोध किया जा रहा है। काफी व्यवस्थित तरीके से आवेदन किया जा रहा है रतलाम के लोगों में जोश भी प्रतीत हो रहा है। इस तरह से आवेदन करना भी अपने आपमें अच्छी बात है। योगक्षेम वर्ष कब मनाना है, अभी तय नहीं किया है। वो निर्णय हुए बिना अगले चतुर्मासों की बात कैसे की जाए।
2024 का चतुर्मास कहाँ करना है, अभी संगत नहीं है। यहाँ चतुर्मास हुए लंबा काल हो गया है। मालवा को भी चतुर्मास क्यों नहीं मिलना चाहिए। मालवा में ऐसे भी क्षेत्र हैं, जहाँ तेरापंथ के आचार्यों का चतुर्मास हुआ ही नहीं है। ऐसे क्षेत्र को भी विचार में लेना चाहिए। रतलाम की भावना अभी आई है। कन्या मंडल की प्रस्तुति बहुत अच्छी थी। इनकी शिक्षा का अच्छा उपयोग हो। स्थान की उपलब्धता भी आई है। अभी तो तीन वर्ष से साधिक समय 2024 के चतुर्मास में शेष है। पर यह जोश आपका छूट न जाए। इसको आप समय-समय पर जितना अनुकूल हो जारी रखें। संपर्क भी बनाए रखें।
कार्यक्रम का संचालन भी मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।