जैन धर्म में दीक्षा का विशेष महत्त्व है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जैन धर्म में दीक्षा का विशेष महत्त्व है : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 26 अगस्त, 2021
विनम्रता की पराकाष्ठा, परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि ठाणं आगम में शास्त्रकार ने प्रव्रज्या के दस प्रकार बताए हैं। प्रवज्या करना-गति करना। प्रव्रज्या यानी विशेष रूप से जाना। संसार में इधर-उधर जाना, सामान्य जाना हो गया। अध्यात्म की ओर जाएँ, वह प्रव्रंज्या-विशेष प्रविष्ट गति हो सकती है। वह विशेष गति है, साधुपन ले लेना।
प्रव्रज्या यानी दीक्षा के दस प्रकार बताए हैं। प्रव्रज्या ली जाती है, उसकी पृष्ठभूमि में क्या-क्या कारण हो सकते हैं? अपने-अपने कारण हो सकते हैं। वैराग्य आ गया और दीक्षा ले ली। यहाँ शास्त्रकार ने दीक्षा लेने में जो कारण बनते हैं, उनको दस प्रकारों में बाँटा है। और भी कारण हो सकते हैं।
प्रथम कारणछंदा, इच्छा से यानी अपनी या दूसरों की इच्छा से ली जाने वाली। यह एक प्रसंग से समझाया। जैन दर्शन-मनन और मीमांसाआचार्य महाप्रज्ञ पुस्तक पढ़ने से जैन दर्शन का अच्छा ज्ञान हो सकता है और भी अनेक ग्रंथ हैं। दूसरा हैरोषा-गुस्सा आने से दीक्षा ले लेना। यह भी एक प्रसंग से समझाया।
तीसरा कारणपरिद्यूना-दरिद्रता के कारण दीक्षा ले लेना। गरीबी दीक्षा लेने में निमित्त बन जाए। यह भी एक प्रसंग से समझाया। सात कारण और भी हैं, जिनके निमित्त से दीक्षा ली जा सकती है। इन तीन कारणों का भी विवेचन किया गया है, आगे और हो सकेगा।
माणक महिमा की विवेचना करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि माणक गणी के स्वास्थ्य में गड़बड़-गिरावट हो रही है। संत विवेचन कर रहे हैं। माणक गणी ने फरमाया कि पत्र लिखकर फाड़ देना मुझे ठीक नहीं लगता है। मैं ठीक हो जाऊँगा। सारे संत निराश होकर आ गए। माणक गणी के मन में दो बातें थीं। एक तो जन्म कुंडली के आधार पर उनकी 62 वर्ष की उम्र होगी ऐसा अनुमान था। दूसरी बात उनको विश्‍वास था कि मैं ठीक हो जाऊँगा। जन्म कुंडली की कई बातें मिल गई थीं, इसलिए उन्हें जन्म कुंडली पर बहुत विश्‍वास था। इन दो कारणों से उत्तराधिकारी की नियुक्‍ति नहीं करनी यह निर्णय लिया गया था, न कोई इंगित किया।
आयुष्य का जन्म-कुंडली पर विश्‍वास नहीं करना चाहिए। कार्तिक बदी-3 को गुरुदेव को दस्त लगे और निढाल हो गए। शरणे सुनाए जा रहे हैं। दिनभर बेहोशी रही। बालचंद बैंगानी ने नाड़ देखकर संतों को बताया। रात ग्यारह बजे गुरुदेव को तीन हिचकी आई और श्‍वास शरीर से निकल गया। मुनियों के मुख से सहज आवाज निकली कि ओहो! अब म्हांरो के होगी। संघ अनाथ हो गया। संघ में सन्‍नाटा छा गया। रात्रि के बाद सूर्योदय भी नहीं है।पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। समता जैन ने 11 की तपस्या के प्रत्याख्यान किए।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि समाज संबंधों की एक शृंखला है। उसकी एक ईकाई हैपरिवार। मनुष्य जन्म से लेकर जीवन भर परिवार में रहता है, संबंधों को निभाता है। हमारा मन भी उन्मत्त हाथी की तरह सब जगह परिभ्रमण करता है। हमें ज्ञान धर्म अंकुश से मन को वश में करना चाहिए। मधुर व्यवहार से परिवार को सुखी बनाएँ। हम रिश्तों को मधुर बनाएँ।
साध्वी मंजुलयशा जी ने सुमधुर गीत की प्रस्तुति दी।
उपासक प्र्रेक्षा प्रशिक्षक ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। विदित चोरड़िया, विद्या डागा, संजय बोरदिया, चंद्रा बाबेल ने भी अपनी भावना अभिव्यक्‍त की।
इन्कम टेक्स असिस्टेंट कमिश्‍नर दीपक पारीख श्रीचरणों में उपस्थित हुए और अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।