अहिंसा की साधना के लिए संयम की साधना जरूरी : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अहिंसा की साधना के लिए संयम की साधना जरूरी : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 22 अगस्त, 2021
श्रावण की पूर्णिमा-रक्षाबंधन। भाई-बहन के रिश्ते का पावन त्योहार। हम ज्ञान-दर्शन, चारित्र और तप की राखी बाँधकर स्वयं की आत्मा की रक्षा करें। पंचाचार के अखंड आराधक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि ठाणं आगम में कहा गया हैशास्त्रकार ने दस प्रकार के संयम बताए हैं।
दस प्रकारों में नौ प्रकार तो जीवों से संबंधित हैं। एक अंतिम प्रकार अजीव से संबंधित है। अध्यात्म की साधना में संयम का बड़ा महत्त्व है। अहिंसा की साधना के लिए भी संयम की साधना अपेक्षित होती है। अहिंसा परम धर्म है, पर तब तक अहिंसा सधती नहीं है, जब तक व्यक्‍ति में संयम की साधना नहीं आ जाती है। संयम के अभाव में आदमी हिंसा में प्रवृत्त हो जाता है।
प्राणियों के प्रति संयम प्राणियों की अहिंसा के प्रति प्रवृत्त करता है। दस प्रकारों में पहला प्रकार हैपृथ्वी कायिक संयम। जैन दर्शन में जीवों के बारे में कुछ सुंदर और विस्तृत विवेचन प्राप्त होता है। जीवों के अनेक प्रकार बताए गए हैं। जिनका जीवत्व प्रकट नहीं दिखाई देता है, पर शास्त्र के आधार पर जिन्हें जीव बताया गया है, उनके प्रति संयम रखना विशेष बात है। अनावश्यक हिंसा न हो।
संयम एक ऐसा तत्त्व है, जो प्रासंगिक रूप में पर्यावरण सुरक्षा संबंधी बात हो जाए। साधु तो छ: काय के जीवों के त्राता कहे गए हैं। सचित मिट्टी का तो संस्पर्श ही न हो। गृहस्थ भी खनन आदि में संयम रखे तो पृथ्वी कायिक संयम हो सकता है।
दूसरा हैअप्कायिक संयम। जल के प्रति संयम। जल हमारे जीवन से कितना गहराई से जुड़ा हुआ है। जल है, तो मानो अमृत है। जल है, तो जीवन है। सजीव जल का उपयोग करने से जल की हिंसा का प्रसंग जुड़ता है। एक बूँद जल में असंख्य जीव होते हैं। अचित पानी के प्रति संयम का भाव हो। अनावश्यक उपयोग न करें। गृहस्थ भी ध्यान दें, पानी का अनावश्यक व्यय न हो।
तीसरातेजस्कायिक संयम। अग्नि का भी गृहस्थों में अनावश्यक उपयोग न हो। चौथावायुकायिक संयम। हवा के प्रति भी संयम। अनावश्यक उपयोग न हो। पाँचवाँवनस्पतिकायिक संयम। वनस्पति का हमारे जीवन में बहुत उपयोग है। आयारो आगम में तो वनस्पति और मनुष्य की समानता का सुंदर चित्रण किया गया है। अनावश्यक वनस्पतिकाय की हिंसा न हो।
द्विन्द्रिय, त्रिन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय, पंचेंद्रिय, जीव हैं, इनके प्रति भी संयम हो, अनावश्यक हिंसा इन जीवों की न हो। शास्त्रकार ने अजीवकाय संयम भी बता दिया है। निर्जीव चीजें हैं, उनके प्रति भी संयम हो। अजीव का अच्छा ध्यान रखो तो अच्छा उपयोग हो सकता है। बोलचाल भाषा में कहा गया है कि कपड़ा कहता है, तुम मेरी आब रखोगे, मैं तुम्हारी आब रखूँगा। हम संयम की साधना में आगे बढ़ें, यह काम्य है।
आज श्रावणी पूर्णिमा है। एक पर्व का दिन रक्षा बंधन के रूप में भी यह प्रतिष्ठित है। संसार में भाई-बहन का भी संबंध होता है। बहन भाई की कलाई पर राखी बाँधती है। राखी के निमित्त से मिलने का अवसर मिल जाता है। रक्षा भी एक बड़ा कार्य होता है। राजतंत्र और लोकतंत्र दो प्रणाली हैं, पर दोनों में रक्षा का दायित्व होता है। अपना-अपना दायित्व होता है।
अध्यात्म की द‍ृष्टि से देखें, तो आत्मा की रक्षा पापों से करें। संवर का बंधन लगा दें। आत्मा की रक्षा हो सकती है। पूज्यप्रवर ने संस्कृत भाषा में आगमों के बारे में फरमाया। तेरापंथ धर्मसंघ में भी संस्कृत भाषा का महत्त्व है। भगवद् गीता के प्रसंग को समझाया। जैसे भागवत् गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को संबोध प्रदान करते हैं, वैसे आचार्य महाप्रज्ञ जी द्वारा रचित संबोधि ग्रंथ में भगवान महावीर मुनि मेघ को संबोध प्रदान करते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ जी तो संस्कृत भाषा के आशु कवि थे।
साध्वीप्रमुखाश्री जी भी संस्कृत के अच्छे जानकार हैं। हमारे धर्मसंघ में कई चारित्रात्माएँ संस्कृत भाषा के जानकार हैं। मुनि नथमल जी को संस्कृत का उच्च स्तर का ज्ञान था। मुनि बुद्धमल जी स्वामी भी संस्कृत के अच्छे वेत्ता थे। पूज्य मघवागणी, कालूगणी के समय में भी संस्कृत का अच्छा विकास हुआ था।
हमारे धर्मसंघ में संस्कृत के अनेक ग्रंथ प्रकाशित हैं। मुमुक्षु बहनें भी संस्कृत का अध्ययन करती हैं। हमारी समणियाँ भी संस्कृत भाषा की जानकार हैं। आज प्रात: मुनि ध्रुवकुमार जी ने संस्कृत दिवस पर संस्कृत में बोला था। मुनि सुखलाल जी स्वामी व मुनि राकेश कुमार जी स्वामी भी संस्कृत के अच्छे वेत्ता थे। कालुकौमुदि संस्कृत का अच्छा ग्रंथ है। जिनको रुचि हो संस्कृत भाषा का विकास करें। साध्वीवर्या जी भी संस्कृत भाषा सीखने का प्रयास करें। मैंने संस्कृत भाषा के संदर्भ में थोड़ा बताया है। संस्कृत भाषा सीखने से आगमों की व्याख्या करना सरल हो सकता है।
भारत में संस्कृत के ग्रंथ एक निधि के रूप में हैं। जैनागमों के अध्ययन में वांङ्मय में संस्कृत भाषा सहयोगी बन सकती है। संस्कृत भाषा का अध्ययन करने वाला प्राकृत भाषा का भी अध्ययन ग्रहण कर सकता है। प्रयास करने से संस्कृत का अध्ययन हो सकता है। राकेशमणी त्रिपाठी भी संस्कृत के अच्छे जानकार हैं।
पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने कहा कि आज रक्षा बंधन का त्योहार है। यह त्योहार कब शुरू हुआ इस संदर्भ में व्यवस्थित इतिहास नहीं मिलता। पर ऐतिहासिक काल और प्राग् ऐतिहासिक काल से जुड़ी हुई अनेक घटनाएँ इस संदर्भ में प्राप्त होती हैं। कई घटना प्रसंग रक्षा बंधन से जुड़े बताए। सूत के धागे से जुड़ा इस पर्व का महत्त्व है।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि मन इधर-उधर भटकता रहता है। मन से ही हमारी इंद्रियाँ चंचल बनती है, यह एक प्रसंग से समझाया।
संस्कृत वेत्ता प्राध्यापक राकेशमणी त्रिपाठी जो पारमार्थिक शिक्षक संस्था में संस्कृत भाषा का अध्यापन कराते हैं। केंद्र में भी चारित्रात्माओं को संस्कृत भाषा का अध्यापन करवाते हैं। उन्होंने बताया कि संस्कृत भाषा कठिन नहीं है, सरल है, संस्कृत भाषा काव्य भाषा है, इसका अपना वैशिष्टय है। संस्कृत वैज्ञानिक भाषा है। संस्कृत भाषा बहुत उपयोगी है। एक अक्षर से श्‍लोक की रचना हो सकती है। तेरापंथ धर्मसंघ में अनेक साधु-साध्वियाँ, समणी व मुमुक्षु बहनें संस्कृत भाषा का सम्यक् प्रकार से अध्ययन करती हैं।
मुनि ध्रुवकुमार जी ने संस्कृत भाषा में अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। बाल मुनि जयेश कुमार जी ने भी संस्कृत भाषा में अपनी अभिव्यक्‍ति दी।
गौतम बोहरा-केलवा ने 32 की तपस्या के प्रत्याख्यान पूज्यप्रवर से लिए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।