साध्वी गुणश्री जी के प्रति काव्यांजलियाँ

साध्वी गुणश्री जी के प्रति काव्यांजलियाँ

अर्हम्

साध्वी जिनप्रभा 

साध्वी गुणश्री जी गुणवान-2
इकहत्तर बरसां री है संयम पर्याय महान॥

शहर लाडनूं जनम्या चौरड़िया कुल में अवतरिया।
माणकचंदजी पिता और मोहन माता गुणदरिया॥

संस्कारी परिवार मिल्यो जीवन बगिया सरसाई।
संयम लेवण हृदय उम्हायो जागी जबर पुण्याई॥

हिसार नगर हरियाणै बाजी दीक्षा री शहनाई।
गुरु तुलसी करकमलां संयम रत्न मिल्यो वरदाई॥

न्यातीला सतियाँ रो जोग मिल्यो गुरुवर किरपा स्यूं।
संयम जीवन उजलो जीयो सात्त्विक संस्कारां स्यूं॥

हस्तकला में निपुण और ही लिपिकला भी सुंदर।
लिख्या चार सौ पानां लगभग स्वच्छ सुघड़ हा अक्षर॥

गती काम री ही धीमी पर रखता हा चतराई।
पात्र रंगाई जाल बनाणो करता भले सिलाई॥

सहज सरल अर सौम्य वदन हो हँसमुख रहतो चेहरो।
कोउ घणो हो समय-समय पर नया काम सीखण रो॥

सेवा भाव विलक्षण हो देखण वाला ही जाणै
गुरु तुलसी उल्लेख कराता जब तल आणै टाणै॥

ओज भरी ही वाणी मनडो हलको हो तन भारी।
जन भी अवसर मिलतो रखता भाषण री तैयारी॥

साल छियाली स्यूं स्थिरवासों बीदासर सुखकारी।
महाश्रमण गुरुचरण शरण में नैया पार उतारी॥

लय : म्हानै चाकर राखोजी