राष्ट्र के भौतिक विकास के साथ अध्यात्मिक विकास भी जरूरी : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

राष्ट्र के भौतिक विकास के साथ अध्यात्मिक विकास भी जरूरी : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 15 अगस्त, 2021
15 अगस्त का पावन दिन स्वतंत्रता दिवस। आज भारत देश का 75वाँ स्वतंत्रता दिवस पूरा राष्ट्र मना रहा है। आज से 74 वर्ष पहले हमारा देश अंग्रेजों से आजाद हुआ था। हमारा देश निरंतर प्रगति करते हुए पूरे विश्‍व में अपना परचम फहराए, यही मंगलकामना।
आत्मा की आजादी की ओर अग्रसर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देषणा प्रदान करते हुए फरमाया कि वज्र ॠषभ नाराच संहनन वाले तथा सम चतुर संस्थान वाले पुरुषादानीय अर्हत् पार्श्‍व की ऊँचाई नौ रत्नि की थी।
इस एक वाक्य में सार काफी ग्रहण किया जा सकता है। प्रभु पार्श्‍व जो 23वें तीर्थंकर इस भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी में हुए थे, उनकी ऊँचाई नौ रत्नि की थी। रत्नि यानी बंध मुट्ठी हाथ की लंबाई कोहनी तक।
आत्मा का घर शरीर है। इस सूत्र में चार विश्‍लेषण भगवान पार्श्‍व के बताए गए हैंपहला हैवज्र ॠषभ नाराच संहनन वाले। उनका शरीर कितना मजबूत था। महत्त्वपूर्ण छ: संहननों में ये सर्वाधिक मजबूत संहनन कहा जा सकता है।
दूसरा विश्‍लेषण बताया गया हैप्रभु पार्श्‍व के शरीर का संस्थान सम-चतुरस्त्र था। छ: संस्थानों में ये पहला बहुत बढ़िया संस्थान होता है। तीसरा विश्‍लेषण हैपुरुषादानीय थे, पुरुषों के द्वारा ग्रहणीय और अनुकरणीय थे। आज भी भगवान पार्श्‍व बहुत लोकप्रिय हैं। संभवत: दुनिया में जितने मंदिर भगवान पार्श्‍व के मिलेंगे, शेष 23 तीर्थंकरों में से किसी के नहीं मिलेंगे।
स्तुति और मंत्र भी जितने भगवान पार्श्‍व के बारे में मिलेंगे, संभवत: अन्य 23 तीर्थंकरों के बारे में नहीं मिलेंगे। कल्याण मंदिर, उवसग्गहर स्त्रोत आदि कितने-कितने स्तुतियाँ-यंत्र आदि हैं। भगवान पार्श्‍व की जितनी आराधना की जाती है, शायद अन्य तीर्थंकरों की जाती है या नहीं। इससे यह लग सकता है कि 24 तीर्थंकरों में से भगवान पार्श्‍व सबसे लोकप्रिय तीर्थंकर है।
हो सकता है विघ्न-बाधा या भौतिक आकांक्षा भगवान पार्श्‍व के साथ जुड़ी है। चौथा विश्‍लेषण हैअर्हत् वीतरागता केवलज्ञान, केवलदर्शन है। मैं छोटे से इस सूत्र से यह ग्रहण कर सकता हूँ कि संहनन की मजबूती। यानी ऊँची साधना के लिए शरीर की भी मजबूती चाहिए। तीर्थंकरत्व पाना है तो साथ में शरीर भी ऐसा मजबूत होता है। वज्र ॠषभ नाराच शरीर की मजबूती का और समचतुरस्त्र शरीर की सुंदरता का द्योतक है।
लोकप्रिय वह होता है, जो दूसरों के लिए कुछ विशेष करता है। अर्हत यानी वीतरागता, शक्‍ति-संपन्‍नता। हमारे शरीर में शरीर की सक्षमता और शरीर की सुंदरता को इस सूत्र से ग्रहण कर सकते हैं। मैं ज्यादा महत्त्व शरीर की सक्षमता को देना चाहता हूँ। सुंदरता नंबर दो पर है। सक्षमता नहीं है तो सुंदरता क्या काम आएगी?
दूसरों पर उपकार करने के लिए तुम कितना समय लगाते हो, कितना श्रम करते हो, यह देखो। सामुदायिक चेतना हो। लोकप्रियता का एक कारण है, दूसरों के लिए कुछ करना। साधु-साध्वियाँ सोचें कि मेरी राग-द्वेष मुक्‍ति की साधना कैसी है? कषायमंदता कैसी है? छलना-वंचना व्यवहार में तो नहीं है। कथनी-करणी में विषमवादिता नहीं है न। लोभ-लालच न हो। संग्रह भी कम हो। साधु अपोवही रहे।
भगवान पार्श्‍व आगे बढ़ सकते हैं, तो हम क्यों नहीं बढ़ सकते? प्रयास करते रहें। व्यवहार अच्छा-शांत रहे। जो आत्मा वीतराग है, अभय है, वो आत्मा कितनी सुखी है। सुंदरता हमारे शरीर में नहीं, हमारी कार्य प्रणाली में भी रहे। हमारे भीतर भावों में सुंदरता रहे। हम सक्षमता, सुंदरता, लोकप्रियता और वीतरागता के विषय में भगवान पार्श्‍व का अनुगमन करने का प्रयास करें।
आज पंद्रह अगस्त है। भारत की आजादी का यह पचहत्तरवाँ स्वतंत्रता दिवस है। भारत के लिए इस दिन का बहुत महत्त्व है। स्वतंत्रता बाह्य द‍ृष्टि से और देश की द‍ृष्टि से महत्त्वपूर्ण हो सकती है। भारत एक अच्छा देश है। भारत एक अध्यात्म युक्‍त राष्ट्र है। यहाँ कितने तपस्वी, महर्षि, संत हुए हैं। जिन्होंने उच्चतम साधना की थी।
भारत के पास ज्ञान का खजाना बहुत है। भारत में धार्मिक संगठन भी कितने हैं। भारत के पास ग्रंथ संपदा, संत संपदा और पंथ संपदा है। यह महत्त्वपूर्ण चीज है। गुरुदेव तुलसी ने भारत की आजादी के बाद अणुव्रत चलाया। संत पुरुष कोई बात कहते हैं तो उनकी बात का सम्मान भी कुछ अंशों में भारत में मिलता है। इससे लोगों को सत्पथ पर चलने की प्रेरणा मिल जाती है।
पंथ के साथ जुड़ने से नियंत्रण हो सकता है। ये भारत के उज्ज्वल पक्ष की बातें हैं। राष्ट्र को भौतिक विकास चाहिए। साथ में आर्थिक विकास भी चाहिए साथ में नैतिकता, आध्यात्मिकता और शिक्षा भारत के लिए अपेक्षित है। तो भारत देश और अच्छाई की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
स्वतंत्रता का एक उच्च कोटि का संदर्भ हैस्व-अनुशासन। अपने पर अपना अनुशासन। व्यक्‍ति-व्यक्‍ति आत्मानुशासन वाले बनें। राग-द्वेष के वशीभूत होना परतंत्रता है। निज पर शासन फिर अनुशासन हो। स्वतंत्रता दिवस गौरव के साथ प्रेरणा ग्रहण करने का दिन है। जिस दिन हमें पूर्ण आत्मतंत्रता मिलेगी वो दिन हमारे लिए सहज उत्तम होगा।
अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान देश को आंतरिक स्वतंत्रता दिलाने में सहयोगी बन सकते हैं। भारत में खूब शांति रहे। हमारी अभय की चेतना, संयम की चेतना पुष्ट रहे। हम कल्याण की दिशा में आगे बढ़ते रहें। यह काम्य है।
चतुर्मास के पश्‍चात की यात्रा की घोषणा
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि चतुर्मास के बाद विहार करना है। 25 नवंबर से 6 जुलाई तक का यात्रा-पथ पूज्यप्रवर ने घोषित किया। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आवश्यकता अनुसार इस यात्रा में परिवर्तन किया जा सकता है। अहिंसा यात्रा की परिपूर्णता की घोषणा दिल्ली में करने का विचार है।
पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने कहा कि भारत देश ॠषियों की भूमि है। विश्‍व में जितने देश हैं, भारत का नाम गौरव से लिया जाता है। यहाँ महावीर और बुद्ध की वाणी गूँजती रही है। वेदों की ॠचाएँ गूँजती रही है। अमृत स्वरूपा गंगा नदी है। भारत को अनेक प्रकार के संघर्ष देखने पड़े हैं।
मुख्यनियोजिका जी ने कहा कि आज के दिन हिंदुस्तान पराधीनता की बेड़ियों से मुक्‍त हुआ था। स्वतंत्रता के वातावरण में उसने प्रवेश किया था। हर व्यक्‍ति स्वतंत्र होना चाहता है।
साध्वीवर्या जी ने कहा कि व्यवहार जगत में देख रहें हैं कि आदमी तो भ्रम में जी रहा है। हम अंग्रेजों की गुलामी से तो मुक्‍त हो गए पर इंद्रिय विषय, कषाय वृत्तियों के हम अभी भी गुलाम बने हुए हैं।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में निर्मल सुतरिया, गरिमा कोठारी, वर्षा बाफना, निकिता वागरेचा, ज्योति-आकांक्षा नाहर ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।