आचार्य भिक्षु का 296वाँ जन्म दिवस

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आचार्य भिक्षु का 296वाँ जन्म दिवस

रोहिणी, दिल्ली
तेरापंथ भवन में आचार्य भिक्षु के 296वाँ जन्म दिवस एवं 264वाँ बोधि दिवस के उपलक्ष्य में शासनश्री साध्वी रतनश्री जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु का जन्म एक छोटे से गाँव कंटालिया में हुआ पर वे अपनी प्रांजल प्रज्ञा से विख्यात हो गए। उन्होंने अपनी सधी हुई लेखनी से आगमों के आधार पर 38 हजार पद्य लिखे।
वे एक क्रांतिकारी आचार्य थे। उनका जीवन कष्टों की कहानी है। पहला प्रवास श्मशान की छतरियों में एक पहला चातुर्मास केलवा की अंधेरी औरी में किया। जीवन की प्राथमिक आवश्यकता उनको सुलभ नहीं थी। वस्त्र भोजन एवं आवास आदि पर वे घबराए नहीं। राजनगर में उनको बोधि प्राप्त हुई। गुरु से पृथक् हुए और तेरापंथ का शिलान्यास किया।
शासनश्री साध्वी सुव्रताजी ने कहा कि उनके मष्तिष्क में बुद्धि की प्रखरता थी वाणी में सत्य की स्वर लहरी थी। भुजाओं में पुरुषार्थ की झलक थी। जन्मजात उनके हाथ में कुछ विलक्षण निशान थे।
साध्वी चिन्तनप्रभा जी ने कहा कि वे एक शक्‍तिशाली आचार्य थे, वे ज्ञान आचार्य, दर्शन आचार और चारित्र से युक्‍त आचार्य थे। उनका ज्ञान अथाह था। संस्कृत प्राकृत आदि बिना पढ़े आगमों का दोहन करके रत्न निकाले।
रोहिणी सभा के अध्यक्ष मदनलाल जैन, दिल्ली सभा के मंत्री सुरेंद्र नाहटा, महिला मंडल की ओर से सुशीला एवं ज्ञानशाला की ओर से एक छोटी बालिका ने भिक्षु चरणों में अभिवंदना प्रस्तुत की।
तेरापंथी सभा, रोहिणी के महामंत्री राजेश बैंगानी ने संचालन किया।