जाएँ हम बलिहारी

जाएँ हम बलिहारी

साध्वी मंगलप्रभा

जाएँ हम बलिहारी।
गजब तुम्हारी समता देखी, जो सबसे थी न्यारी।।

बोकड़िया कुल में जन्म लिया, रत्न दिया था नाम,
माँ सीरू की संतानों में, श्रेष्ठ किया था काम।
धन्य बना परिकर पा तुमको, लगती थी मनहारी।।

गुरु तुलसी रो संयम पाकर, धन्य बना था जीवन,
शासन गौरव कस्तूरांजी की, मिली सन्निधि पावन।
प्रतिभा कौशल से खिल पाई, जीवन की फुलवारी।।

दूर-दूर प्रांतों की तुमने, यात्रा की सुखकारी,
धर्मसंघ की ख्यात बढ़ाने, मेहनत की थी भारी।
ध्यान साधना लगती अच्छी, खिलती मन की क्यारी।।

अंत समय में अनशन करके, मन मजबूती धारी,
गौरव मुझको होता, पाई तुम जैसी मौसी प्यारी।
महाश्रमण शासन में तुमने, जीवन नैय्या तारी।।

लय: संयममय जीवन---