सहज सरल व्यवहार

सहज सरल व्यवहार

शासनश्री साध्वी रतनश्री जी के प्रति

मुनि मुकुल कुमार

पचखा संथारा, मन मजबूती धार,
करने नैया पार।

श्री तुलसी की करुणा बरसी,
जीवन की फुलवारी सरसी।
बनी प्रवर अणगार।।

गुण रत्नों की पहनी माला,
वाणी ज्यों अमृत का प्याला।
रही सदा इकसार।।

चेहरे पर था ओज टपकता,
बच्चों की सी थी निश्छलता।
सहज सरल व्यवहार।।

शुभ अनशन को ग्रहण किया है,
सार्थक पंडित मरण किया है।
मुख-मुख जय-जयकार।।

सहगामी सतियाँ सुखकारी,
सेवाभावी साताकारी।
विनय रूप साकार।।

लय: तोता उड़ जाना---