विद्या के साथ विनय होने से विद्या शोभित होती है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

विद्या के साथ विनय होने से विद्या शोभित होती है: आचार्यश्री महाश्रमण

जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा 13वें दीक्षांत समारोह का आयोजन

मुख्य मुनि महावीर कुमार जी सहित 86 अध्ययनकर्ताओं को मिली डॉक्टरेट की उपाधि

दीक्षांत शिक्षा का अंत नहीं बल्कि शुरुआत है: कलराज मिश्र (राज्यपाल, राजस्थान)

लाडनूं, 12 नवंबर, 2022
लाडनूं प्रवास के द्वितीय दिन जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय संस्थान द्वारा पूज्यप्रवर की सन्निधि में दीक्षांत समारोह का आयोजन हुआ। कुलाधिपति अर्जुनराम मेघवाल ने समारोह आयोजन करने की अनुमति दी। रमेश मेहता, समणीजी प्रो0 ऋजुप्रभा जी ने उपाधि प्राप्तकर्ताओं को आमंत्रित किया। इस अवसर पर साधना के श्लाका पुरुष, महाज्ञानी, आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि उपाधि को प्राप्त करना भी जीवन की एक उपलब्धि होती है। ज्ञान जीवन का एक पवित्र तत्त्व होता है।
आज दुनिया में कितने-कितने विद्या संस्थान हैं, जहाँ विद्या का आदान-प्रदान होता है। विद्या के साथ संस्कार की बात भी रहे। संस्कार युक्त शिक्षा होती है, तो विद्यार्थी और ज्यादा उपयोगी और सक्षम बन सकते हैं। जीवन में विद्या के साथ विनय भी होना चाहिए। विनय से विद्या शोभित हो जाती है। जैन विश्व भारती संस्थान जिसके प्रथम अनुशास्ता पूज्य गुरुदेव तुलसी व द्वितीय अनुशास्ता पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी थे। उनका इसको आशीर्वचन और संरक्षण प्राप्त हुआ था। इस संस्थान में ज्ञान के साथ संस्कारों का भी विकास हो, इस पर सलक्ष्य प्रयास होता रहे। विद्यार्थियों में सेवा की भावना रहे कि ये देश, धरती और अच्छी बन जाए। स्वर्ग बनाने का प्रयास करें।
मैं आज उपाधि प्राप्त विद्यार्थियों को शिखा पदं के द्वारा अनुशासन प्रदान करने का प्रयास करने जा रहा हूँ, जो मूल पाठ आगम आदि का मैं उच्चारण करूँ और हिंदी का उच्चारण विद्यार्थी भी करें। पूज्यप्रवर ने शिखा पदं के उच्चारण करवाए। पदों से प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। शुभकामना भी प्रदान कराई कि वे जीवन में और ज्ञान का विकास करें, साथ में आचार और संस्कार पुष्ट रहें।
समारोह के मुख्य अतिथि राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र व कुलाधिपति अर्जुन राम मेघवाल ने सर्वप्रथम मुख्य मुनि महावीर कुमार जी को डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की। बाद में अन्य उपाधि प्राप्तकर्ताओं को उपाधियाँ प्रदान की गई। उपकुलपति बच्छराज दुगड़ ने संस्थान की जानकारी दी। अर्जुनराम मेघवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि आचार्य तुलसी ने अणुव्रत के माध्यम से संसार को बदलने का प्रयास किया था। उन्होंने शिक्षा का महत्त्व बताते हुए उपाधि प्राप्तकर्ताओं के प्रति व जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के प्रति मंगलभावना अभिव्यक्त की। उन्होंने कहा कि नैतिक शिक्षा का प्रशिक्षण पूरे विश्व में सिर्फ जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय ही दे सकता है।
मुख्य अतिथि कलराज मिश्र ने कहा कि दीक्षांत शिक्षा का अंत नहीं बल्कि शुरुआत है। विद्यार्थी अपने भावी जीवन और समाज व राष्ट्र के कल्याण के लिए सीखे हुए ज्ञान का उपयोग करें। ज्ञान का सार आचार है, यह सूत्र बहुत महत्त्व का है। शिक्षा के अंतर्गत पुस्तकों के पठन-पाठन पर ध्यान दिया जाता है। पुस्तकों के साथ संस्कारों का भी शिक्षण प्राप्त करें। सीखना ही शिक्षा का विज्ञान है। जैविभा संस्थान ज्ञान का महान केंद्र बने। मैंने संविधान वाटिका की शुरुआत की है। यह विश्वविद्यालय यदि संविधान वाटिका को शुरू करता है, तो सोने में सुहागा जैसा होगा। छोटे से गाँव में आचार्य तुलसी की दृष्टि से ये विशाल संस्थान स्थापित किया है। यह संस्थान जीवन मूल्यों की शिक्षा देता है।