साहित्य से ज्ञान की सुगंध फेलाती रहे जैन विश्व भारती: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

साहित्य से ज्ञान की सुगंध फेलाती रहे जैन विश्व भारती: आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ की राजधानी में हुआ तेरापंथ के महामहिम का पदार्पण

लाडनूं, 11 नवंबर, 2022
तेरापंथ की राजधानी लाडनूं स्थित जैन विश्व भारती में तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान सरताज आचार्यश्री महाश्रमण जी संपूर्ण धवल सेना के साथ पधारे। 12 किलोमीटर के विहार में आचार्यप्रवर के स्वागत के लिए तेरापंथ समाज एवं अन्य समाज के लोग भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। जन-जन में लोकप्रिय जैन विश्व भारती के प्रांगण से आचार्यश्री तुलसी के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल पावन पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि एक महत्त्वपूर्ण चिंतन प्रस्तुत किया गया है, जो अध्यात्म से संबंधित चिंतन है। चिंतन यह है कि यह संसार अध्रुव है। अशाश्वत है, सदा स्थायी नहीं है। एक जीवन है, आदमी को जो अपने आप में अधु्रव है, अशाश्वत है।
संसार की कई स्थितियाँ भी अशाश्वत होती हैं। ये अधु्रव संसार दुःख प्रचुर है। अनेक दुःख इस संसार में आ जाते हैं। ऐसा कौन सा कर्म-आचरण है कि मैं इस दुःख बहुल संसार से आगे दुर्गति में न जाऊँ। इसका उपाय क्या है कि यहाँ भी दुःख न हो और आगे भी दुःख न हो। वह आचरण समता, राग-द्वेष मुक्ति की साधना है, अध्यात्म की आराधना है। आत्मस्थ होने की प्रक्रिया है, वो हमें प्राप्त हो जाती है, तो संभव है, आगे दुर्गति से बचाव हो सके। धर्म और अध्यात्म ऐसा तत्त्व है, जो प्राणी को दुर्गति से त्राण देने वाला होता है। अच्छे स्थान में जो स्थापित कर दे वो धर्म होता है। धर्म अपने आपमें हमारे लिए त्राण और शरण है।
आज हम जैन विश्व भारती, लाडनूं में आए हैं। यह धर्म से जुड़ा हुआ स्थान है। प्राचीनतम सेवा केंद्र तीर्थ के रूप में है। तखतमल फूलफगर का स्थान, ऋषभद्वार में सभा भवन ऐतिहासिक स्थान है। जैविभा तो कितना धर्म से जुड़ा हुआ है। अनेक सेवाग्राही-सेवादायी संत हैं। समणियाँ व मुमुक्षु बाईयाँ भी हैं। मान्य विश्वविद्यालय भी है। अनेक प्रवृत्तियाँ यहाँ चलती हैं। गुरुदेव तुलसी का जन्म स्थान लाडनूं है। कितनी चारित्रात्माएँ लाडनूं से धर्मसंघ को प्राप्त हुई हैं। पूज्य डालगणी का तो मनोनयन, पट्टोत्सव व महाप्रयाण भी लाडनूं में ही हुआ था। साध्वीप्रमुखाश्री लाडांजी, साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी और साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी भी लाडनूं से हुए हैं। सेवा दी है।
साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने तो तीन-तीन आचार्यों की सेवा की है। उनका अमृत महोत्सव भी यहीं मनाया था। हमने शासनमाता के रूप में उनको स्वीकार किया था। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी की तो समणी दीक्षा व साध्वी दीक्षा भी लाडनूं में हुई थी। ये भी हमारे धर्मसंघ की खूब सेवा देती रहंे, यह मंगलकामना है। जैन विश्व भारती में आना हुआ है। सन् 2026 का चातुर्मास व 2027 का मर्यादा महोत्सव जो योगक्षेम वर्ष के रूप में है, यहाँ के लिए घोषित किया है। यहाँ भी खूब विकास होता रहे। मुमुक्षुओं की भी संख्या बढ़ती रहे। शिक्षा-साधना का अच्छा विकास होता रहे। जैविभा ज्ञान की सुगंध फैलाते हुए साहित्य को सामने लाने का प्रयास करती है।
मैं आचार्य भिक्षु एवं आचार्य तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का स्मरण करता हूँ। हमारी आगे की यात्रा धर्मोद्योत करते हुए अनुकूलता रहे। मैं अपने लिए व साधु-साध्वियों के लिए मंगलकामना करता हूँ। पूज्यप्रवर ने महती कृपा करते हुए मुमुक्षु शुभम सांखला को मुनि दीक्षा 8 दिसंबर को सिरियारी में देने का फरमाया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आचार्यप्रवर ने साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी को यहाँ ‘शासनमाता’ घोषित किया था। ऐसे गुरु अलौकिक होते हैं। जैविभा में आचार्यप्रवर का पधारना मंगल मानती हूँ। यह तपोमय प्रांगण है। लाडनूं पर हमारे आचार्यों की सदैव कृपा रही है।
आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की कृति ‘एक शब्द एक चित्र’ जैन विश्व भारती द्वारा पूज्यप्रवर के करकमलों में लोकार्पित की गई। पूज्यप्रवर ने मंगलभावना पुस्तक के संदर्भ में अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने जैन विश्व भारती के प्रबंधकों को महाप्रज्ञ इंटरनेशनल स्कूल के संदर्भ में मंगलपाठ सुनवाया। पूज्यप्रवर के स्वागत-अभिवंदना में तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मंडल, सभाध्यक्ष प्रकाश बैद, नगरपालिका चेयरमैन रावत खाँ, जोधराज बैद, मोदी परिवार की बहनें एवं जैविभा के अध्यक्ष अमरचंद लुंकड़ ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। मुमुक्षु शुभम ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।