प्रतिक्रमण कार्यशाला एवं वृहद मुंबई उपासक संगोष्ठी

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प्रतिक्रमण कार्यशाला एवं वृहद मुंबई उपासक संगोष्ठी

ठाणे।
शासनश्री जिनरेखा जी के सान्निध्य में तेरापंथ सभा भवन में प्रतिक्रमण कार्यशाला का आयोजन तेरापंथ सभा द्वारा किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत साध्वीश्री जी द्वारा नमस्कार महामंत्र से की गई। उपासिका बहनों ने उपासक गीत द्वारा मंगलाचरण किया। साध्वी जिनरेखा जी ने कहा कि प्रतिक्रमण से व्रत के छेद रुक जाते हैं, व्रत के छेद रुकने से आश्रव द्वारा बंद हो जाता है। व्यक्ति विभाव से स्वभाव में आता है। मुक्ति मार्ग को अपने निकट कर लेता है।
उपासक संयोजक सूर्यप्रकाश शामसुखा ने आत्म-विकास की पहली भूमिका समत्व और उसके आगे की भूमिका महाव्रत और देश व्रत को समझाते हुए बताया कि छद्मस्ता की अवस्था में ग्रहण किए हुए व्रतों में दोष लगने की संभावना रहती है, जिससे जीवन विराधक बन जाता है पर प्रतिक्रमण से दोष शुद्धि होती है। जीव पुनः आराधक बन जाता है। ठाणे के सभी जागरूक श्रावक-श्राविकाएँ, आसपास के क्षेत्र मुलुंड, भांडुप, वाशी, एरोली आदि के भाई-बहनों की सहभागिता रही।
तेरापंथी सभा के अध्यक्ष रमेश सोनी ने शामसुखा का स्वागत व सम्मान किया। उपासिका प्रतिभा चोपड़ा ने उपासक संयोजक सूर्य प्रकाश का परिचय दिया। उपासिका सरला भुतोड़िया ने स्वरचित गीतिका का संगान किया। भिक्षु महाप्रज्ञ ट्रस्ट के अध्यक्ष निर्मल श्रीश्रीमाल ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन साध्वी मार्दवयशा जी ने किया। दूसरे चरण में आयोजित ‘वृहद मुंबई स्तरीय उपासक संगोष्ठी’ में 50 के लगभग उपासक-उपासिकाएँ शामिल हुए। संयोजक एसपी सामसुखा ने गुरुदेव तुलसी व आचार्य महाश्रमण जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए उपासक श्रेणी का इतिहास संक्षेप में बताया। उपासकों द्वारा की गई जिज्ञासाओं का समुचित समाधान दिया गया।