पर्युषण है आत्मा के निकट रहने का पर्व

संस्थाएं

पर्युषण है आत्मा के निकट रहने का पर्व

सरदारपुरा, जोधपुर।
साध्वी जिनबाला जी के सान्निध्य में पर्युषण महापर्व का प्रारंभ हुआ। प्रथम दिवस खाद्य संयम दिवस पर मंगलाचरण तेरापंथ समाज सरदारपुरा के वरिष्ठ श्रावकों द्वारा गीत के संगान से किया। साध्वी जिनबाला जी ने कहा कि पर्युषण पर्व का आज से प्रारंभ हो रहा है। पर्युषण पर्व व्यक्ति की चेतना को झंकृत कर उपयोग अध्यात्ममुखी बनने वाला होता है। पर्युषण में हम अपनी आत्मा के निकट रहने का प्रयत्न करें। खाद्य संयम दिवस रसनेंद्रिय पर विजय की प्रेरणा देने वाला है। स्वास्थ्य को गौण कर स्वाद के लिए खाना अज्ञानता है।
साध्वी करुणाप्रभा जी ने भगवान महावीर के जीवन पर प्रकाश डालते हुए भगवान महावीर के 27 भवों का वर्णन प्रारंभ किया। कल्पसूत्र में व्याख्यातीत भवों का विवेचन करते हुए नयसर और मरीचि के भव का वर्णन किया। साध्वी भव्यप्रभा जी ने प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कराया। साध्वी महकप्रभा जी ने गीतिका की प्रस्तुति दी। स्वाध्याय दिवस पर साध्वी भव्यप्रभा जी द्वारा प्रेक्षाध्यान के प्रयोग से कार्यक्रम का शुभारंभ किया। साध्वीश्री ने देव, मनुष्य, तिर्यंच और नरक गति बंधन के कारण बताए। तेममं, सरदारपुरा द्वारा गीत से मंगलाचरण किया गया। साध्वी महकप्रभा जी ने गीत द्वारा स्वाध्याय दिवस का महत्त्व बताया। साध्वी करुणाप्रभा जी ने भगवान महावीर के तीसरे भव मरीचि के भव से अपना वक्तव्य प्रारंभ किया।
साध्वी जिनबाला जी ने कहा कि आज सभी धर्मावलंबी स्वाध्याय दिवस की आराधना कर रहे हैं। स्वाध्याय का केवल जैन धर्म में नहीं अपितु समस्त मानव जाति के लिए महत्त्व है। आत्म उत्थान और जीवन के उद्धार के लिए स्वाध्याय जरूरी है। कार्यक्रम का संचालन महिला मंडल अध्यक्षा सरिता कांकरिया ने किया। वाणी संयम दिवस पर कन्या मंडल की कन्याओं ने मंगलाचरण किया। साध्वी जिनबाला जी ने कहा कि महान दार्शनिक आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी कहते थे कि वाणी का अनावश्यक प्रयोग हमारी शक्ति को क्षीण करता है। बोलते समय एक सूत्र को स्मृति में रखा जाए तो बोलना उपयोगी हो सकता है, वह सूत्र है-‘क्लेश हो वैसा मत बोलो’।
साध्वी करुणाप्रभा जी ने तीर्थंकर महावीर की जीवनी के अंतर्गत भगवान महावीर के पूर्व भवों का वर्णन किया। साध्वी महकप्रभा जी ने गीतिका द्वारा मौन करने की प्रेरणा दी। साध्वी भव्यप्रभा जी ने प्रेक्षाध्यान के प्रयोग करवाए। कार्यक्रम का संचालन कनिका बाफना और याना सुराणा ने किया।
अणुव्रत चेतना दिवस का सरदारपुरा ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी बच्चों द्वारा मनमोहक प्रस्तुति से कार्यक्रम का मंगलाचरण किया। दिल्ली से समागत संगायिका अभिलाषा बांठिया ने गीतिका का संगान किया। साध्वी जिनबाला जी ने अणुव्रतों के महत्त्व पर कहा कि हमें अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करना चाहिए। अनंत इच्छाएँ सुखमय-शांतिमय जीवन का अंत करने वाली होती हैं। अणुव्रत के नियम व्यक्ति की आवश्यकता पर नियंत्रण करने वाले नहीं, किंतु विलासपूर्ण जीवन पर नियंत्रण करने की प्रेरणा देता है। साध्वी करुणाप्रभा जी ने भगवान महावीर के पूर्व भवों का वर्णन किया। साध्वी महकप्रभा जी ने गीत का संगान किया। साध्वी भव्यप्रभा जी ने प्रेक्षाध्यान और महाप्राण ध्वनि के प्रयोग करवाए। कार्यक्रम का संचालन ज्ञानशाला से दीक्षा कोठारी और लब्धि बांठिया ने किया।
साध्वीश्री जी के सान्निध्य में जप दिवस का कार्यक्रम किशोर मंडल द्वारा मंगलाचरण से प्रारंभ हुआ। साध्वी जिनबाला जी ने कहा कि जप में किसी न किसी मंत्र का आलंबन लिया जाता है अर्थात् मनन करने पर जो त्राण देता है, वह मंत्र है। जप से विघ्न-बाधाएँ दूर होती हैं। साध्वी करुणाप्रभा जी ने भगवान महावीर के गर्भकाल, जन्मोत्सव, देवों द्वारा जलाभिषेक का तात्त्विक विवेचन प्रस्तुत किया। साध्वी महकप्रभा जी ने गीतिका का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन ऋषभ लुंकड़ ने किया।
ध्यान दिवस पर तेयुप ने गीतिका का संगान कर कार्यक्रम का मंगलाचरण किया। साध्वीश्री जी ने कहा कि वर्तमान में आवेश, आवेग, उत्तेजना की जो समस्या है उसे बाह्य प्रभाव से नियंत्रण नहीं किया जा सकता। ध्यान के प्रयोगों द्वारा इन समस्याओं का चिर स्थायी परिवर्तन संभव है। साध्वी करुणाप्रभा जी ने उद्गार व्यक्त किए। साध्वी महकप्रभा जी ने गीत का संगान किया। इस अवसर पर साध्वी करुणाप्रभा जी ने बताया कि श्रावकों द्वारा 3 पंचरंगी हुई है। जिसमें 45 व्यक्तियों ने उपवास से लेकर पाँच की तपस्या की। इसके अलावा काफी अठाई तप की तपस्या हुई। तेयुप से निरंजन तातेड़ और नरेंद्र सेठिया ने कार्यक्रम का संचालन किया।
पर्युषण महापर्व का अंतिम दिवस संवत्सरी पर्व पर तेयुप, किशोर मंडल ने गीतिका की संयुक्त प्रस्तुति से कार्यक्रम का मंगलाचरण किया। कन्या मंडल की बहनों ने गीतिका का संगान किया तथा नाटिका प्रस्तुत की। साध्वीश्री जी ने कहा कि भगवान महावीर ने लगभग बारह वर्षों की ध्यान और तपस्यामय साधना के बाद चार घाती कर्मों का क्षय कर केवलज्ञान का वरण किया और अनंतज्ञान के चक्षु खोल दिए। सायंकालीन सत्र में सामूहिक सांवत्सरिक प्रतिक्रमण की आराधना हुई। श्रावक-श्राविका समाज ने पौषध की आराधना की।