पूज्य कालूगणी हमारे गुरुओं के गुरु रहे हैं: आचार्यश्री महाश्रमण

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पूज्य कालूगणी हमारे गुरुओं के गुरु रहे हैं: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 23 अक्टूबर, 2022
कार्तिक कृष्णा तेरस-परम पावन परम प्रभु भगवान ने आज ही के दिन अंतिम अनशन किया था। कालू अभिवंदना सप्ताह का भी अंतिम दिवस। परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने कालू महाश्रमण समवसरण में मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आज हमारा विकास है कि हम ग्रंथ लेकर बाँच रहे हैं। आज से 80 वर्ष पहले जब कालूगणी प्रवचन फरमाते थे तो उनके हाथ में ऐसे ग्रंथ रहे थे या नहीं? पहले तो हरी पटड़ी-पाना हाथ में रखते थे। विकास के मूल को तो हम भिक्षु स्वामी को ही मान लें। नए पंथ की स्थापना कर उसे रास्ते पर ला देना बहुत बड़ी बात होती है। बना-बनाया राजपथ मिल जाए तो उस पर चलना तो आसान होता है।
भिक्षु स्वामी के उत्तरवर्ती आचार्यों ने अपने ढंग से प्रगति की है। जयाचार्यप्रवर ने कितना विकास किया था। ऋषि रायप्रवर ने एक सूत्र जयाचार्य को दे दिया था कि चोटी तेरे हाथ में है। आचार्य भिक्षु के बाद जयाचार्यप्रवर ने और उनके बाद आचार्य तुलसी ने राजस्थानी भाषा में कितने ग्रंथों का सृजन किया था। सात दिनों में ये व्याख्यानमाला सी हो गई, जो पूज्य कालूगणी के जीवन को उजागर करने वाली है। कालूगणी की जन्म शताब्दी 2033 में मनाई गई थी तब ऐसा माहौल बना था। सात दिनों में सांगोपांग विवेचना की गई है। हमारे धर्मसंघ में विकास हुआ है। साध्वियों-समणियों व साधुओं में अंग्रेजी का विकास हुआ है। कईयों के डॉक्टर व एमबीए आदि की उपाधियाँ लगी हैं।
विकास में आगे भी बढ़ना और सिंहावलोकन भी करना, कभी विहंगावलोकन भी करना। कालूगणी ने ही साध्वियों की शिक्षा विकास का निर्देश फरमाया था। कालूगणी के युग में तुलसी-महाप्रज्ञ जैसे कितने संतों का विकास हुआ था। आज तो साध्वी समुदाय भी बहुत आगे बढ़ा है। विकास के प्रति जागरूक रहना है कि और विकास कहाँ हो सकता है। जहाँ नहीं हो रहा है और होना चाहिए, हम उस पर भी ध्यान दें। बढ़ो, रुको, पीछे की समीक्षा भी करो। पूज्य कालूगणी के जन्म स्थान पर सात दिनों की व्याख्यानमाला पूज्य कालूगणी हमारे गुरुओं के गुरु रहे हैं। मैं कालूगणी के प्रति श्रद्धा-सम्मान का भाव अर्पण करता हूँ। उनसे हमें प्रेरणा मिलती रहे। हम सद्विकास की दिशा में आगे बढ़ते रहें।
आज धनतेरस भी है। गृहस्थ के लिए पैसा धन है। दो धन और हैं-स्वाध्याय का धन और संतोष धन। जब आए संतोष धन, सबधन धूलि समान। साथ ज्ञान-साधना का धन भी बढ़ता रहे। आज से तेले भी शुरू हुए होंगे। कल दिवाली है। आतिशबाजी में संयम रखें। परसों दीपावली है। ‘लोगुत्तमे समणे णायपुते’ का जप करें। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा जी ने कहा कि पूज्य कालूगणी का अपना कर्तृत्व-व्यक्तित्व था। मुझे कालूगणी विकास के पुरोधा के रूप में दिखाई देते हैं। उनके शासनकाल में संघ का अभूतपूर्व विकास हुआ था। नए सिंघाड़े साधु-साध्वियों ने बनाए और जनपद विहार करवाया। दीक्षा लेने वालों की संख्या में भी श्रीवृद्धि हुई। उन्होंने क्षेत्रों का भी विकास किया। वे पुस्तक भंडार के विकास में भी जागरूक थे। समृद्ध भी बनाया। वे कलात्मक भी थे।
मुनि ध्रुवकुमार जी ने गीत, साध्वी प्रबुद्धयशा जी, साध्वी केवलयशा जी, साध्वी प्रभाजी, समणी सत्यप्रज्ञा जी ने अपनी श्रद्धा भावना अर्पित की। मुमुक्षु बहनों ने गीत, व्यवस्था समिति अध्यक्ष माणकचंद नाहटा, सूरजमल नाहटा, ज्ञानशाला प्रस्तुति, सुमेरमल सुराणा, मालू परिवार, प्रिया दुधोड़िया, संतोष भंसाली, सज्जनदेवी पारख एवं अलका बैद ने भी अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।