पर्युषण महापर्व का कार्यक्रम

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पर्युषण महापर्व का कार्यक्रम

असाड़ा।
साध्वी रतिप्रभा जी के सान्निध्य में पर्युषण महापर्व का अष्टांगिन कार्यक्रम आयोजित हुआ। साध्वी रतिप्रभा जी ने प्रथम दिवस ‘खाद्य संयम दिवस’ पर कहा कि जितना शरीर के लिए खाना आवश्यक है, उतना ही नहीं खाना भी स्वास्थ्य एवं आत्मा के लिए आवश्यक है। मिताहार एवं हितकर आहार का प्रयोग करना चाहिए। साध्वी मनोज्ञयशा जी ने इंगाल दोष, अंगार दोष, धूम दोष, संयोजना दोष, प्रमाणातिक दोष इसके बारे में विस्तार से चर्चा की। साध्वी पावनयशा जी ने सुमधुर गीत का संगान किया। साध्वी रतिप्रभा जी ने राजा कोणक के जीवन पर प्रकाश डालते हुए पर्युषण पर्व की महत्ता बताई।
दूसरा दिन ‘स्वाध्याय दिवस’ के रूप में आयोजित हुआ। साध्वी रतिप्रभा जी ने कहा कि स्वाध्याय ऐसा रसायन है जिसे प्राप्त कर आदमी अपनी ओजस्वी बनाता है और नई-नई जानकारी से ज्ञानवृद्धि करता है। स्वाध्याय तेज लाइट है जिसमें अपना किया हुआ भला-बुरा सब दिखाई देता है। साध्वी कलाप्रभा जी ने भगवान महावीर के पूर्व भव नयसार का वर्णन करते हुए सम्यक्त्व धर्म की नींव बताया। साध्वी मनोज्ञयशा जी ने कहा कि स्वाध्याय अपने घर में झाड़ू लगाने जैसा है। रात्रि में साध्वी पावनयशा जी ने प्रतिक्रमण क्यों, कैसे, विधि, आदि पर विस्तृत जानकारी दी।
‘सामयिक दिवस’ पर साध्वी मनोज्ञयशा जी ने त्रिपदी वंदना का प्रयोग तथा साध्वी रतिप्रभा जी ने अभिनव सामायिक का प्रयोग करवाया। साध्वीश्री जी ने आगे कहा कि सामायिक संवर तथा शोधन दोनों की संयुक्त प्रक्रिया है। अंतगढ़ सूत्र में नाग गाथापति के जीवन-वृत्त पर प्रकाश डाला। साध्वी कलाप्रभा जी ने मरीचि कुमार के जीवन पर प्रकाश डाला। रात्रि में साध्वी रतिप्रभा जी एवं साध्वी मनोज्ञयशा जी ने ऐतिहासिक घटनाओं का क्रम चलाया।
‘वाणी संयम दिवस’ पर साध्वी रतिप्रभा जी ने कहा कि वाणी से हमारा व्यवहार चलता है। मधुर वाणी हमारा ऐसा शंृगार है, जिससे हमारी कांति कभी फीकी नहीं पड़ती। साध्वी कलाप्रभा जी ने वाणी संयम पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वाणी का विवेक ही वाणी का संयम है। साध्वी मनोज्ञयशा जी एवं साध्वी पावनयशा जी ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन साध्वी मनोज्ञयशा जी ने किया। ‘अणुव्रत दिवस’ पर साध्वी रतिप्रभा जी ने श्रावक के 12 व्रतों के लिए प्रेरणा देते हुए कहा कि श्रावक का महत्त्वपूर्ण स्थान है। साधु बड़ी रत्नों की माला तो श्रावक छोटी रत्नों की माला है। श्रावकत्व का जागरूक से पालन हो तो हिंसा से बचा जा सकता है। साध्वी कलाप्रभा जी ने अणुव्रत पर कविता का संगान किया।
‘जप दिवस’ पर साध्वी रतिप्रभा जी ने कहा कि मंत्र का जाप व्यक्ति को संसार से विमुख न करके संसार के प्रति, संसार के कर्तव्यों के प्रति जागरूक करता है। बिखरी चित्त शक्तियों को एकाग्र करता है। साध्वी कलाप्रभा जी ने मंत्रों का राजा महामंत्र नमस्कार मंत्र की महत्ता पर प्रकाश डाला। रात्रि में कन्या मंडल एवं महिला मंडल के पर्युषण पर्व का महत्त्व कैसे इस पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। संचालन साध्वी मनोज्ञयशा जी ने किया। ‘ध्यान दिवस’ पर साध्वी रतिप्रभा जी ने कहा कि ध्यान हमारे कर्म का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। जो कार्य करें उसमें तल्लीन बनें तो हमारा ध्यान बन जाता है। साध्वी कलाप्रभा जी ने भगवान महावीर के पूर्व भवों का वर्णन किया। रात्रि में भगवान मल्लिनाथ के जीवन पर प्रकाश डाला।
संवत्सरी महापर्व के कार्यक्रम का शुभारंभ गीत के साथ हुआ। साध्वी मनोज्ञयशा जी ने सर्वप्रथम बताया यह पर्व आत्मावलोकन का पर्व है। अपने आपको जानने का पर्व है। अपनी भूलों के लिए प्रायश्चित का पर्व है। साध्वी कलाप्रभा जी ने भगवान महावीर के बाल्यकाल, यौवन एवं अभिनिष्क्रमण तक वर्णन सुनाया। साध्वी रतिप्रभा जी ने कालचक्र के बारे में विस्तार से जानकारी दी तथा पर्युषण पर्व का महत्त्व कैसे इस पर भी प्रकाश डाला। साध्वी मनोज्ञयशा जी ने भगवान महावीर और गौशालक के साथ हुए चातुर्मास का वर्णन किया।
साध्वी रतिप्रभा जी ने चंदनबाला के विषय में बताया। इसके पश्चात गणधरवाद, जम्बू स्वामी, प्रभावक आचार्य और अंत में पट्टावली का वाचन किया। ‘क्षमा दिवस’ पर साध्वी रतिप्रभा जी ने कहा कि जहाँ क्षमा है वहीं अहिंसा, समता और सहिष्णुता हो सकती है। क्षमा करना बहुत बड़ी वीरता है। क्षमा करना औरों की भलाई नहीं अपनी भलाई है। सर्वप्रथम अपने आराध्य आचार्यश्री महाश्रमण जी से फिर साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी, मुख्य मुनि महावीर कुमार जी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी से क्षमायाचना की तथा साध्वियों से क्षमायाचना करने के बाद श्रावक- श्राविकाओं से क्षमायाचना की। साध्वीवृंद ने क्षमायाचना की एवं इस अवसर पर विशिष्ट श्रावक मांगीलाल भंसाली ने भी अपने विचार रखे तथा क्षमा पर गीत की प्रस्तुति दी।