पर्वाधिराज पर्युषण आत्म मंथन का पर्व है

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पर्वाधिराज पर्युषण आत्म मंथन का पर्व है

कोटा।
साध्वी अणिमाश्री जी के सान्निध्य में गुमानपुरा स्थित अणुव्रत भवन में पर्युषण महापर्व का प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस के रूप में आयोजित हुआ। साध्वी अणिमाश्री जी ने कहा कि आज जैन समाज का कुंभ मेला प्रारंभ हुआ है। आठ दिन तक चलने वाले इस कुंभ मेले में जप, तप, त्याग, सामायिक, स्वाध्याय, ध्यान, प्रतिक्रमण के द्वारा अपनी आत्मा को उज्ज्वल, पावन व पवित्र बनाएँ। साध्वी कर्णिकाश्री जी ने कहा कि यह प्रमाद को छोड़कर अप्रमाद की त्रिपथगा में अवगाहन करने का समय है। साध्वी डॉ0 सुधाप्रभा जी ने कहा कि भोजन ऊर्जा है, भोजन शक्ति है, भोजन गति है, भोजन के बिना व्यक्ति ऊर्जा संपन्न एवं शक्तिशाली नहीं बन सकता। जीवन के लिए भोजन जरूरी है पर खाने का संयम होना चाहिए। खाद्य संयम के विशेष प्रयोग करें।
साध्वी मैत्रीप्रभा जी ने मंच संचालन किया। साध्वी समत्वयशा जी ने महावीर वाणी का रसपान कराया। सभा अध्यक्ष संजय बोथरा, मंत्री धर्मचंद जैन, महावीर हीरावत ने मंगल संगान किया। कमलेश जैन ने जप अनुष्ठान के बारे में सूचित किया। स्वाध्याय दिवस पर साध्वी अणिमाश्री जी ने कहा कि दिमाग को दुरुस्त बनाए रखने वाला महत्त्वपूर्ण टॉनिक है-स्वाध्याय मस्तिष्क को सक्रिय बनाए रखने वाली रामबाण दवा है-स्वाध्याय आत्मारूपी दीपक की बाती है-स्वाध्याय जीवनरूपी पोथी के गूढ़ रहस्यों को स्वाध्याय के द्वारा ही जाना जा सकता है।
साध्वी कर्णिकाश्री जी ने अपने विचार प्रस्तुत किए। साध्वी डॉ0 सुधाप्रभा जी ने कविता की मंत्रमुग्ध प्रस्तुति दी। साध्वी मैत्रीप्रभा जी ने संचालन किया। साध्वी समत्वयशा जी ने आगमवाणी का वाचन करवाया। महिला मंडल ने गीत का संगान किया। रचना सेठिया, कमलेश जैन ने जप की जानकारी दी। धर्मचंद जैन ने पोरवाल समाज को आगे बढ़ने का आह्वान किया।
वाणी संयम दिवस पर साध्वी अणिमाश्री जी ने कहा कि वाणी संयम का एक रूप मौन भी है। मौन अपने आपमें शक्ति का भंडार है। मौन से प्राण शक्ति पुष्ट बनती है। नई ताजगी व नई स्फूर्ति का दर्शन होता है। वाणी संयम का दूसरा रूप है-विवेकपूर्वक बोलना। जो व्यक्ति कम बोलता है, सोचकर बोलता है, मधुर बोलता है, वह सबके दिलों में अपना स्थान बना लेता है। साध्वी समत्वयशा जी ने वाणी संयम दिवस पर गीत का संगान किया। तेयुप साथियों ने मधुर स्वर में मंगल संगान किया। कोलकाता से समागत अभिषेक गोयल ने अपने उद्गार व्यक्त किए।
साध्वीश्री जी ने कहा कि समाज भूषण बिशन दयाल गोयल का परिवार संस्कारी परिवार है। कल्याण मित्र की स्व0 कैलाश गोयल, राज गोयल व पुत्र अभिषेक गोयल बडे़ श्रद्धाशील व उनकी पत्नी निधि एवं पुत्री कास्वी भी इस रंग में रंग रही हैं। विले पार्ले में इनको निरंतर सय्यातर का लाभ प्राप्त होता है। सभा अध्यक्ष संजय बोथरा, धर्मचंद जैन, तेयुप अध्यक्ष आनंद दुगड़ और अणुव्रत समिति के अध्यक्ष अशोक दुगड़ ने अभिषेक गोयल का सम्मान किया। महिला मंडल अध्यक्ष उषा बाफना व तेयुप मंत्री कमलेश जैन ने जप की जानकारी दी।
अणुव्रत चेतना दिवस पर साध्वीश्री जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ के नवम् अधिशास्ता आचार्य तुलसी ने एक मानव धर्म की कल्पना की। उन्होंने देश की आजादी की घोषणा के साथ ही एक घोष दिया था-‘असली आजादी अपनाओ’ उन्होंने अपनी दूरदर्शी सोच के साथ एक ऐसे आंदोलन की शुरुआत की, जो मानव को मानवता से जोड़ने का शंखनाद था। वो अणुव्रत आंदोलन के नाम से विख्यात हुआ। साध्वी डॉ0 सुधाप्रभा जी ने कहा कि आचार्य तुलसी जानते थे प्राचीन भारत चरित्र संपन्न राष्ट्र था। चरित्र संपन्नता व नीति-निष्ठा की बात अतीत का पृष्ठ बनकर न रह जाए। वर्तमान में भी निति-निष्ठा जीवंत होनी चाहिए। कन्या मंडल ने गीत का संगान किया। साध्वी समत्वयशा जी ने आगमवाणी का रसपान करवाया। साध्वी मैत्रीप्रभा जी ने संचालन किया।
जप दिवस पर साध्वी अणिमाश्री जी ने कहा कि जप आत्म अनुभव को जागृत करने का अमोध साधन है। कहा जा सकता है कि अध्यात्म की शक्ति से रूबरू होने का सरलतम उपाय है-जप। जप अनुष्ठान से व्यक्ति के भीतर के केंद्र सक्रिय हो जाते हैं। अपने आराध्य के प्रति सर्वात्मना समर्पित बनकर पवित्र भावों से जप करना चाहिए।
साध्वी डॉ0 सुधाप्रभा जी ने कहा कि पर्युषण का यह समय प्रभुमय बनने का समय है। साध्वी समत्वयशा जी ने जप दिवस पर गीत की प्रस्तुति दी। साध्वी मैत्रीप्रभा जी ने संचालन किया। ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने मंगल संगान की प्रस्तुति दी। साध्वी कर्णिकाश्री जी ने भावों की प्रस्तुति दी। इस अवसर पर वृहद संख्या में तेरापंथ श्रावक समाज उपस्थित हुआ।
संवत्सरी महापर्व पर साध्वीश्री जी ने कहा कि संवत्सरी महापर्व जैनों का प्राणपर्व है। यह आत्मावलोकन एवं आत्ममंथन का महापर्व है। यह ऋजुता एवं मृदुता का महापर्व है। संवत्सरी महापर्व क्षमा व समता के सुमनों से जीवन बगिया को हल्का सुवासित करने का पर्व है। राग-द्वेष की गाँठों को खोलकर आत्मा को हल्का बनाने का महापर्व है। साध्वीश्री जी ने कहा कि हर व्यक्ति आज के दिन यह संकल्प करे कि मैं अपने हृदय को राग-द्वेष की गाँठों से गठीला नहीं बनाऊँगा। साध्वीश्री जी ने कहा कि मिच्छामि दुक्कडं बोलना ही वास्तविक क्षमापना नहीं है। जिनके साथ गत वर्ष में हमारा मन-मुटाव हुआ है, ऊँचे शब्दों में बातचीत हुई हो, उनसे दिल खोलकर, शुद्ध भावों से, सरल हृदय से खमतखामणा करना ही वास्तविक खमतखामणा है। यही आज के दिन की सार्थकता है।
साध्वी चंदनबाला के रोचक इतिवृत्त को व्याख्यायित किया। साध्वी समत्वयशा जी ने उत्तराध्ययन के सूत्रों की विवेचना की। संवत्सरी महापर्व गीत का संगान किया। साध्वी कर्णिकाश्री जी ने तीर्थंकर परंपरा का विश्लेषण किया। साध्वी सुधाप्रभा जी ने जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों की प्रस्तुति दी। सभा अध्यक्ष संजय बोथरा ने बताया कि साध्वीश्री के सान्निध्य में समाज के 7 वर्ष के बच्चों से लेकर 80 वर्ष से ऊपर के श्रावकों ने उपवास, जप, तप, त्याग एवं तपस्या द्वारा आत्मा को भावित किया।