आत्म दर्शन का महान पर्व - पर्युषण

संस्थाएं

आत्म दर्शन का महान पर्व - पर्युषण

अमराईवाड़ी-ओढव।
शासनश्री साध्वी सरस्वती जी के सान्निध्य में सिंघवी भवन में महापर्व पर्युषण का कार्यक्रम आयोजित किया गया। खाद्य संयम दिवस का कार्यक्रम साध्वीश्री जी के मंत्रोच्चार से प्रारंभ हुआ। साध्वीश्री जी ने कहा कि यह पर्व अनूठा प्रकाश लेकर आया है। यह पर्व तप, त्याग, संयम और उपासना का प्रेरक पर्व है। आत्मशुद्धि और आत्मसिद्धि का पर्व है। खाद्य संयम दिवस पर साध्वी नंदिताश्री जी ने अपनी प्रस्तुति दी। इस दिवस पर सैकड़ों भाई-बहनों ने उपवास, एकासन आदि करके खाद्य संयम दिवस मनाया।रात्रिकालीन कार्यक्रम में साध्वी सम्यक्प्रभा जी ने प्रस्तुति दी।
स्वाध्याय दिवस पर शासनश्री साध्वी सरस्वती जी ने कहा कि व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व को सँवारने में पुस्तकों का बड़ा योगदान है। स्वाध्याय प्रकाश की यात्रा है। जीवन की टूटती जिंदगी को सँवारता है-स्वाध्याय। आचार्य भारमलजी उत्तराध्ययन सूत्र का खड़े-खड़े स्वाध्याय करते थे। मुनि जीवराज जी, मुनि कपूरचंद जी जिन्हें 60000 श्लोक कंठस्थ थे। साध्वी संवेगप्रभा जी ने दिवस के महत्त्व को उजागर करते हुए स्वाध्याय को अध्यात्म का प्रवेश द्वार बताया। रात्रिकालीन कार्यक्रम में श्रावक समाज द्वारा प्रश्न पूछे गए, साध्वी संवेगप्रभा जी ने जिज्ञासाओं को शांत किया तथा भगवान शांतिनाथ का जीवन प्रस्तुत किया। सामायिक दिवस पर साध्वीश्री जी ने कहा कि सामायिक के बिना आत्मा मोक्ष नहीं जा सकती। सामायिक का अर्थ समता में रहना ही नहीं, बल्कि सही अर्थ आत्मा के समीप जाना है। साध्वी नंदिताश्री जी ने अभिनव सामायिक करवाई।
रात्रिकालीन कार्यक्रम में साध्वी नंदिताश्री जी ने तपस्वी कोदरजी स्वामी के जीवनवृत्त को प्रस्तुत किया। सामायिक दिवस पर तीन सामायिक की पचरंगी हुई। दिन-भर में लगभग 600 सामायिक संपन्न हुई।
वाणी संयम दिवस पर शासनश्री साध्वीश्री ने कहा कि हमारा वास्तविक धन क्या है?-संयम और साँसें। आपने कहा कि वाणी और पानी दोनों स्वस्थ होने चाहिए। आदमी की जुबान एक दुकान है, खोलने पर पता चलता है कि दुकान सोने की है या कोयले की। हमारे शब्द कंकर हैं या मोती। वाणी बाण न बने वीणा बने। साध्वी संवेगप्रभा जी ने कहा कि भाषा व्यक्तित्व का आइना है। रात्रिकालीन कार्यक्रम में साध्वी नंदिताश्री जी ने तेरापंथ के इतिहास की घटनाओं की प्रस्तुति दी।
अणुव्रत चेतना दिवस पर साध्वीश्री जी ने आचार्य तुलसी द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत आंदोलन का महत्त्व बताया। आपने कहा कि मलीन विचारधारा से व्यक्ति कहाँ पहुँच जाता है। साध्वी तरुणप्रभा जी ने अणुव्रत के नियमों को विस्तार से बताते हुए बारहव्रती श्रावक बनने की प्रेरणा दी। रात्रिकालीन कार्यक्रम में साध्वी तरुणप्रभा जी द्वारा कर्मों की सत्ता को विस्तार से बताया। जप दिवस पर साध्वीश्री जी ने 24 तीर्थंकरों के समवसरणों के बारे में प्रकाश डाला। भगवान महावीर और गौतम स्वामी के पूर्व भव के संबंध के बारे में बताया। साध्वी तरुणप्रभा जी ने जप को क्यों, कैसे, किस दिशा में करना चाहिए, आदि बिंदुओं पर प्रकाश डाला।
ध्यान दिवस पर साध्वीश्री जी ने जनमेदिनी के समक्ष देवलोक की 5 सभाओं का विस्तार से वर्णन किया। धर्मरुचि अणगार का जीवन प्रस्तुत किया। इस दिवस की महत्ता पर साध्वी परमार्थप्रभा जी ने प्रकाश डाला। संवत्सरी महापर्व पर शासनश्री साध्वी सरस्वती जी ने कहा कि यह पर्व चेतना के अनावरण का पर्व है। ज्ञान-दर्शन, चरित्र की आराधना का पर्व है। आपने आगे कहा कि तीर्थंकर केवल ज्ञान प्राप्त करते हैं, तब नारकी में भी प्रकाश होता है उस प्रकाश को देख कई नारकी जीव भी सम्यक्त्वी बन जाते हैं। साध्वी संवेगप्रभा जी ने ‘जैन धर्म के प्रभावक आचार्य’ आचार्यश्री पट्टावली में आचार्य जम्मू और स्थुलीभद्र के जीवन चरित्र को प्रस्तुत किया। साध्वी तरुणप्रभा जी ने मंत्र और शरीर पर वर्णन किया। साध्वी नंदिताश्री जी ने तेरापंथ के आचार्य पट्टावली को व्याख्यायित किया। साध्वी परमार्थप्रभा जी ने चौबीसी आदि का संगान किया।
स्थानकवासी समाज ने भी आठों दिन हर कार्यक्रम में सक्रियता से भाग लिया। आठों दिन तक नवकार मंत्र का अखंड जप चला। तपस्या के क्रम में अमराईवाड़ी में एक लहर चल पड़ी, अनेक तपस्या और धर्मध्यान का अपूर्व ठाठ लगा रहा।
शासनश्री साध्वी सरस्वती जी के सान्निध्य में क्षमायाचना (खमतखामणा) का कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस अवसर पर साध्वीश्री जी ने कहा कि खमतखामणा का पर्व प्रतिवर्ष एक नया उल्लास लेकर आता है। यह पर्व निःशल्य होने का, तनावमुक्ति का सुंदरतम अवसर है। मैत्री और करुणा की भावना से भावित होने का है। साध्वीश्री जी ने कहा कि खमतखामणा भी करते रहें और आँखों में लाली रहे तो यह औपचारिक है। वास्तविक खमतखामणा वह है जिनके साथ मन-मुटाव है, बोलचाल बंद है, उनके साथ शुद्ध अंतःकरण से खमतखामणा करके निःशल्य बन जाना। पारस्परिक सौहार्द के धागे में बँध जाना।
साध्वी संवेगप्रभा जी ने गीतिका का संगान किया तथा सभी के प्रति क्षमायाचना की। साध्वी नंदिताश्री जी एवं साध्वी तरुणप्रभा जी ने क्षमायाचना का महत्त्व बताया। गुरुदेव के प्रति, शासनश्री के प्रति, सहवर्ती साध्वीवृंद और समस्त श्रावक समाज से क्षमायाचना की। कार्यक्रम में सभा अध्यक्ष रमेश पगारिया, महिला मंडल मंत्री लक्ष्मी सिसोदिया, तेयुप अध्यक्ष हेमंत पगारिया, कन्या मंडल संयोजिका प्रियांसी हिरण, शशि ओस्तवाल, मुकेश सिंघवी, पुखराज कुकड़ा, शांतिलाल चपलोत, विनोद चलपोत एवं अन्य महानुभावों ने सभी के प्रति क्षमायाचना करते हुए भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन सभा के मंत्री गणपत हिरण ने किया। कार्यक्रम के प्रायोजक शंकरलाल, हेमंत, निलेश, कियांश पगारिया रहे। जिनका सभा द्वारा सम्मान किया गया। कार्यक्रम में लगभग 600 सदस्यों की उपस्थिति रही।