साहित्य के माध्यम से संस्कृति सुरक्षित रह सकती है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

साहित्य के माध्यम से संस्कृति सुरक्षित रह सकती है : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 1 अगस्त, 2021
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि ठाणं आगम में कहा गया हैजैन शासन में वाङ्मय और साहित्य अच्छी मात्रा में है। साहित्य संस्कृति को पारंपरिक बनाए रखने में निमित्त बनता है। किसी विधा-प्रणाली को आगे बढ़ाना होता है, उसमें साहित्य की भी अच्छी भूमिका होती है।
अंधकार है वहाँ जहाँ आदित्य नहीं है। मुर्दा है वह देश, जहाँ साहित्य नहीं है। जिस देश के पास साहित्य नहीं है, ज्ञान खजाना नहीं है, ज्ञान खजाने के बिना देश की जनता का विकास कितना हो सकेगा। संस्कृति-संस्कार नहीं है, तो आदमी जीता हुआ भी कुछ अंशों में मुर्दा बन सकता है।
आदमी के जीवन में साहित्य का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है, राष्ट्र के लिए भी साहित्य का बड़ा महत्त्व है। भारत इस माने में मुर्दा देश नहीं है। भारत के पास बहुत साहित्य है। जैन शासन में भी अच्छा साहित्य है। जैन शासन भी साहित्य संपन्‍न है। हम आगमों को देखें, कुल मिलाकर एक गरिमापूर्ण साहित्य है।
मैं जैन शासन के वाङ्मय में बहुत ज्यादा महत्त्व आगम को देता हूँ। आगम इतना एक मानो कोई महनीय और उच्च कोटि का वाङ्मय है, आर्षवाणी है। प्राच्य साहित्य होना भी एक बात है। एक पूजनीय साहित्य आगम है। जैन श्‍वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ में 32 आगमों की मान्यता है। इनमें भी 11 अंगों का और ज्यादा महत्त्वपूर्ण स्थान है। 11 अंग स्वत: प्रमाण हैं।
हमारे यहाँ आगमों का महत्त्व रहा है। आचार्य भिक्षु ने कितना आगमों का अध्ययन किया होगा। उनके सिद्धांतों का आधार तो आगम ही है।
श्रीमद् जयाचार्य कितने ज्ञानी, महापुरुष थे। उनको लगभग 12 वर्षों तक मुनि हेमराजजी के पास रहने का मौका मिला था। आज हमारे कितने साधु-साध्वियाँ कितने तत्त्वज्ञानी हैं। आगम और अन्य विषयों का ज्ञान है, वे भी अपने ज्ञान को बाँटें। इससे ज्ञान की परंपरा बढ़ सकती है। गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी में कितना ज्ञान था।
हमारे पास उपलब्ध आगमों से स्वाध्याय की जो सुविधा हुई है, उसमें योगदान तो कितनों का है, पर आचार्य महाप्रज्ञ जी का विशेष योगदान रहा है। आज भी आगम संपादन का कार्य चल रहा है। काफी काम हो गया पर पूर्णता अभी तक नहीं हुई है।
अभी सो सूत्र बाँचा गया है। आचारांग सूत्र की बात आई है। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने आचारों का संस्कृत में भाष्य लिखा है। आचारांग का हिंदी और अंग्रेजी में भी भाष्य आया है। ये आयारो और भी विशेषता वाला आगम है। आयारो का अंतिम नौवाँ अध्ययन है, उसमें भगवान महावीर का संक्षेप में जीवनवृत्त है। बाकी आगमों में जैन धर्म का दर्शन-सिद्धांत भरा हुआ है।
भगवान महावीर का जैसा जीवन था वैसे ही सिद्धांत हैं। उन्होंने सिद्धांतों को जीया है। आगम ऐसी चीज है उनका स्वाध्याय हो। आगम का स्वाध्याय पुनीत स्वाध्याय है। साथ में अर्थ का भी बोध होता रहे। मूल तो ताला है, अर्थ चाबी है। अर्थ आने से कितनी प्रेरणा, कितनी निर्मलता बढ़ सकती है।
हम चारित्रात्माएँ जितना समय मिल सके, समय निकालकर स्वाध्याय-चितारना करें। ठाणं में आयारों के 9 अध्ययनों का नाम दिया गया है। स्वाध्याय में यथाशक्य समय नियोजन करें, यह काम्य है।
माणक महिमा का विवेचन करते हुए बालक माणक की दीक्षा का प्रसंग विस्तार से समझाया।
आज से नमस्कार महामंत्र का सवा करोड़ जप का अनुष्ठान शुरू हो रहा है। पूज्यप्रवर ने मंगल आशीर्वाद दिलाते हुए फरमाया कि यह सपाद कोटि जप है। इसमें दोनों तरीके से माला फेरी जा सकती है। पर बढ़िया तरीका है कि पूरे नवकार मंत्र को बोलकर माला फेरी जाए। किसी के कारण हो तो अलग-अलग पद की माला फेरी जा सकती है।
अध्यात्म की द‍ृष्टि से नवकार मंत्र बढ़िया मंत्र है। निर्मलता और वीतरागता इसमें भरी है। यह तो महामंत्र है। इसका संभव हो सके तो रंग और केंद्र पर भी ध्यान दिया जाए तो और अच्छा है। अर्थ का भी चिंतन चलता रहे। पूज्यप्रवर ने नमस्कार महामंत्र का जप का प्रयोग करवाया।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि लोगों के पास संपदा बहुत है, पर वे खुश नहीं रहते। भौतिक सुविधाएँ कितनी भी मिल जाएँ, व्यक्‍ति खुश नहीं रह सकता। खुशी का राज तो उसके भीतर छिपा है। इसलिए अच्छा जीवन जीने के लिए अपने जीवन में सकारात्मकता को विशेष रूप से स्थान देना होगा।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि व्यक्‍ति जब तक अपनी शुद्धि की ओर ध्यान केंद्रित नहीं करेगा, अपने भीतर से वह जब तक स्वस्थ नहीं होगा, वास्तव में वह शुद्धि की दिशा में प्रयास नहीं कर सकता।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में व्यवस्था समिति के महामंत्री निर्मल गोखरू, मंत्री विनीता सुतरिया, ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों ने अपनी प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।