आध्यात्मिकता और भौतिकता का संगम तीर्थंकर पुरुष होते हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आध्यात्मिकता और भौतिकता का संगम तीर्थंकर पुरुष होते हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 6 अगस्त, 2021
श्रावण कृष्णा तेरस, असाधारण साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी का 81वाँ जन्म दिवस। नवमें दशक में प्रवेश। बालिका कला से लेकर महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाश्री जी तक की लंबी दास्तान है। पूज्य गुरुदेव तुलसी द्वारा यह बीजारोपित वृक्ष आज आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी और वर्तमान आचार्यश्री महाश्रमण जी द्वारा सिंचित एक वट वृक्ष रूप में हमारे सामने है। आप दीर्घायु हों, आप स्वस्थ रहें। वर्षों-वर्षों तक धर्मसंघ को अपनी सेवाएँ प्रदान कराती रहें, यही चतुर्विध धर्मसंघ की मंगलकामना है।
शांतिदूत, युवामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि ठाणं आगम में कहा गया हैहमारी सृष्टि में विभिन्‍न प्रकार के प्राणी हैं। उनमें मनुष्य भी है।
मनुष्यों में भी सारे एक समान नहीं होते। गर्भ से जो उत्पन्‍न होने वाले संज्ञी मनुष्य होते हैं। विभिन्‍न प्राणियों में सबसे थोड़े प्राणी, गर्भज मनुष्य होते हैं। अल्पसंख्यक हैं। स्त्रियाँ पुरुषों से 27 गुणी अधिक होती हैं, ऐसा बताया गया है।
मनुष्यों में भी तारतम्य हो सकता है। आध्यात्मिक द‍ृष्टि से तारतम्य होता है और भौतिक संपदा की द‍ृष्टि से भी तारतम्य होता है। स्वास्थ्य की द‍ृष्टि से और बौद्धिकता-ज्ञानात्मकता की द‍ृष्टि से मनुष्यों में तारतम्य होता है। 54 मनुष्य उत्तम पुरुष होते हैं24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 वासुदेव और 9 बलदेव। प्रत्येक अवसर्पिणी काल और उत्सर्पिणी काल में ये उत्तम पुरुष होते हैं।
शास्त्रकार ने यहाँ 54 पुरुषों में से 18 पुरुषों के पिताओं की चर्चा की है। अढ़ाई द्वीप मनुष्य क्षेत्र हैं। हम जम्बू द्वीप के भरत क्षेत्र में रह रहे हैं। कुल 15 कर्म भूमियाँ-मनुष्य क्षेत्र हैं। इसमें प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल में 24-24 तीर्थंकर होते हैं।
प्रश्‍न है कि प्रत्येक काल में तीर्थंकर 24 ही क्यों होते हैं। सृष्टि के कुछ नियम हैं। अपने नियमों से यह सृष्टि चल रही है। काल की ऐसी ही व्यवस्था होगी जो तीर्थंकर 24 ही होते हैं। ऐसे ही चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव की व्यवस्था सृष्टि में है।
आध्यात्मिकता की द‍ृष्टि से तीर्थंकर उत्तम पुरुष होते हैं। भौतिकता का द‍ृष्टि से भी आदमी-आदमी में तारतम्य होता है। कोई चक्रवर्ती होता है, तो कोई गरीब भी होता है।
आध्यात्मिक जगत का शिखर पुरुष, अधिकृत प्रवक्‍ता तीर्थंकर ही होते हैं। तीर्थंकर आध्यात्मिकता की द‍ृष्टि से तो बड़े हैं ही, साथ में भौतिकता भी उनसे जुड़ी है। पुण्य
भी उनके साथ जुड़ा हुआ है। आध्यात्मिकता और भौतिकता का संगम-पुरुष तीर्थंकर होते हैं।चक्रवर्ती को केवल भौतिकता की द‍ृष्टि से देखा जाए तो मनुष्यों में शिखर व्यक्‍ति भौतिकता पर आसीन चक्रवर्ती होते हैं। हम स्वास्थ्य की द‍ृष्टि से देखें तो आदमी आदमी में तारतम्य हो सकता है। आयुष्य की द‍ृष्टि से भी तारतम्य हो सकता है। साध्वी विदामाजी तेरापंथ की प्रथम साध्वी हैं, जिन्होंने शतक पार कर लिया। ज्ञानात्मकता की द‍ृष्टि से भी तारतम्य हो सकता है।
शास्त्रकार ने भौतिक जगत के वासुदेव के बारे में बताया है। वासुदेव चक्रवर्ती की तुलना में भौतिक जगत में आधे होते हैं। बलदेव वासुदेव का भाई होता है। इस अवसर्पिणी काल में नौ बलदेव-वासुदेव हो चुके हैं। शास्त्रकार ने उनके पिता के नाम बताए हैं। प्रजापति, ब्रह्म, रौद्र, सोम, शिव, महासिंह, अग्निसिंह, दशरथ और वसुदेव।
वह पिता भी एक माने में सौभाग्यशाली हो सकते हैं, जिनके पुत्र तेजस्वी होते हैं, विशिष्ट होते हैं। कई-कई संतानें पिता से भी आगे बढ़ जाती है। पर इतिहास आएगा तो यही कहेंगे, ये उसके बेटे थे। यानी पिता का नाम पहले आएगा। घड़े से पैदा हुए अगस्त्य ॠषि पूरे समुद्र का पानी पी गए।
पिता का महत्त्व होता है, तो माँ का भी महत्त्व होता है। शास्त्रकार ने पिताओं का नाम देकर पिताओं का गौरव बढ़ा दिया है।
माणक महिमा का विवेचन करते हुए पूज्यप्रवर ने मघवागणी के सरदारशहर प्रवास के समय के प्रसंग समझाए। मघवागणी की उदयपुर में कवि सांवलदास कविराज की बाड़ी में पधारने व माणकलाल को आगे की व्यवस्था को उपयुक्‍त बताया वो प्रसंग भी विस्तार से समझाया। गत दिवस वार्ता व जयाचार्य के श्रीमुख से निकले वचनों का प्रसंग भी समझाया।
साध्वीप्रमुखाश्री जी ने आज 81वें वर्ष में प्रवेश किया है। साध्वीप्रमुखाश्री जी हमारे धर्मसंघ में 50 वर्षों से साध्वीप्रमुखा के पद को मानो सुशोभित कर रही हैं। साध्वीप्रमुखाश्री जी का स्वास्थ्य खूब स्वस्थ-अच्छा रहे। खूब सेवा की सक्षमता लंबे काल तक बनी रहे। अपनी साधना आदि-आदि क्रम भी अच्छा चलता रहे। खूब-खूब मंगलमय माहौल बना रहे। चित्त में सतत समाधि रहे। खूब धर्मसंघ को सेवा देती रहें। हमारी ओर से खूब-खूब मंगलकामना।
पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। छितरमल मेहता ने 19 की, बाबूलाल देवत ने 33 की तपस्या के प्रत्याख्यान लिए।
मुख्य नियोजिका जी ने तामली तापस के प्रसंग को समझाते हुए कहा कि आदमी पूर्वकृत पुण्य से वर्तमान में सुख भोगता है। आगे भी सुख मिले इसके लिए हमें इस जन्म में ही साधना करनी चाहिए। देवता किस कारण मनुष्य लोक में आते हैं, उन चार कारणों को भी समझाया।
साध्वीवर्या जी ने कहा कि आदमी इस दुनिया में आता है, कुछ दिन रहता है, फिर चला जाता है, यही विश्‍व का इतिहास है। जन्म-मरण की परंपरा चलती रहती है। जन्म-मरण के बीच में हमने कैसा जीवन जीया वह महत्त्वपूर्ण है।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।