उपशम की साधिका साध्वी रतनश्री ‘लाडनूं’

उपशम की साधिका साध्वी रतनश्री ‘लाडनूं’

शासनश्री साध्वी रमावती

तेरापंथ धर्मसंघ हीरों की खान है। आचार्य तुलसी हीरों के पारखी थे। शासनश्री साध्वी रतनश्री जी (लाडनूं) के विक्रम संवत् 2007 में पंजाब के संगरूर क्षेत्र में आचार्य तुलसी के मुखारबिंद से संयम रत्न प्राप्त किया। उस समय बाल दीक्षा का जोर शोर से विरोध हुआ। पत्थर भी बरसाए, मुमुक्षु रत्न के ललाट पर पत्थर की चोट लगी, आज तक उसका निशान था। उस समय आचार्यश्री तुलसी ने कहा कि तुम्हारा तीसरा नेत्र खुल गया है। मुमुक्षु रत्न का भाषण हुआ कि विरोध भी शांत हो गया। साध्वी रतनश्री जी की आचार निष्ठा, संयम निष्ठा और संघ निष्ठा बेजोड़ थी। वे संघपति के प्रति पूर्ण समर्पित थे। आपने संयम स्वीकार करते ही लबभग 25 वर्षों तक सुबह का समय ध्यान, योग, प्राणायाम आदि में लगाते। प्रतिदिन 500 गाथाओं का स्वाध्याय करते। अंतिम समय तक आप चोबीसी का स्वाध्याय करते रहे।
आगम की वाणी है-‘समयं गोयम मा पमायए’ इसी पंक्ति को ध्यान में रखते हुए वर्तमान में 25 माला प्रतिदिन ‘भिक्खु स्याम’ की फेरते। जब वेदना होती उस समय अनुष्ठान प्रारंभ कर देते। वेदना के समय ‘आत्मा भिन्न-शरीर भिन्न’ के चिंतन में लग जाते। आपकी लेखन कला, अध्ययन के साथ-साथ कवियत्री थी। कोलकाता चातुर्मास में विष्णुदयाल जी गोयल कहते-‘आप तो मीरां हैं’ जो दुनिया में आता है वह जाता है आना और जाना बड़ी बात नहीं है, महान वह होता है जो पीछे समय प्रबंधन की सौरभ छोड़कर गए हैं।
साध्वीश्री जी की वाणी में जादू था। आपकी क्षमता, समता, सहिष्णुता बेजोड़ थी। 2021 संवत्सरी के दिन आपने कहा-मैं उपशम की साधना कर रही हूँ। स्वयं तो जागरूक रहे, लेकिन किसी भी परिस्थिति में कोई कुछ भी कहे-”हाँ ठीक है’ कोई बात नहीं जैसे होगा वैसे ही कर लेंगे। अंतिम समय में भिक्खू स्याम जप करते-करते प्राण मुद्रा में समाधि मरण को प्राप्त किया। तीन-तीन आचार्यों के शासनकाल में आपने संयम रत्न को दिपाया। आचार्यश्री महाश्रमण जी की छत्रछाँह में अनुपम ऊर्जा प्राप्त की, पंडित मरण का वरण किया। उपशम की साधिका अपनी लक्षित मंजिल को प्राप्त करें। इसी भावना के साथ।