साध्वी धर्मयशा जी का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया

साध्वी धर्मयशा जी का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया

आत्मा की धुन आत्मा की पहचान।
एक ही उड़ान बनना मुझे महान।।
साध्वी धर्मयशाजी के मन में एक ही भावना हर समय रहतीµमैं भिक्षु शासन में आई हूँ। मुझे अपनी आत्मा का कल्याण करना है। आत्मशुद्धि के लिए तप की पतवार उनकी बेजोड़ थी। भले उनका शरीर कमजोर था पर उनका हौसला मजबूत था। उनका आत्मबल, मनोबल, संकल्पबल, तपोबल जन-जन के लिए प्रेरणास्पद था। वे एक भाग्यशाली साध्वी थी। उन्होंने तीन गुरुओं की कृपादृष्टि प्राप्त की। गुरुदेव उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए चिकित्सा सेवा का पूरा ध्यान रखते। पर उनकी गण गणपति के प्रति आस्था हमारे धर्मसंघ के लिए आदरास्पद थी।
उनके जीवन में बड़ों के प्रति विनय-विवेक के संस्कार थे तो छोटों के प्रति अपनत्व, वात्सल्य का दरिया लहराता मैंने देखा। उनकी क्षमाशीलता की पराकाष्ठा एक उदाहरण है। खमतखामणा करके वे अपनी आत्मा को विशुद्ध बना लेती। यह भी उनकी एक खूबी थी।
उनके रोम-रोम में महावीर स्वामी भिक्षु स्वामी रहते। मंगलपाठ वे बहुत अच्छा सुनाती। धर्म-ध्यान की ज्योत से स्वयं ज्योतिर्मय थीं। श्रावक-श्राविका समाज को धर्म की बात बताती। यथा नाम तथा गुण उनके कण-कण में नजर आता।
वे एक गायिका थीं। लेखन भाषण में दक्ष थीं। उनकी आवाज मधुर थी। पर असाता वेदनीय कर्म का उदय ज्यादा था पर समता के द्वारा वे कृतकर्मों को कृश करती रही। शासनश्री साध्वी पानकुमारी जी ‘प्रथम’ के पावन सान्निध्य में वे कई बार रही। तब मुझे भी उनके साथ रहने का स्वर्णिम अवसर मिला। उनके गुणों का जितना गुणानुवाद करें उतना कम है। साध्वी धर्मयशा जी की दिवंगत आत्मा के भावी आत्मिक विकास की मंगलकामना।।