आत्मशुद्धि का सुगम उपाय है जप: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आत्मशुद्धि का सुगम उपाय है जप: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 29 अगस्त, 2022
वर्तमान के वर्धमान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पर्यषण महापर्व की आराधना के अवसर पर फरमाया कि आज का दिन जप दिवस के रूप में प्रतिष्ठित है। जप एक अध्यात्म का प्रयोग है। जप का गलत प्रयोग न हो। वृद्ध साधु-साध्वियों एवं श्रावक-श्राविकाओं को एक जगह स्थिर रहकर साधना के रूप में जप करें। आत्म शुद्धि का सुगम उपाय हैµजप करना। णमो सिद्धाणं का जप करें। वृद्धों के लिए रामबाण-कर्मबाण औषध है। जब तक लाभ मिले शरीर का उपयोग करें। अंत समय में संलेखना-संथारे की ओर आगे बढ़ें। धर्माराधना में आत्मलरन रहें। अखंड जप की ध्वनि भी हमारे कानों में पड़ती रहती है। प्रभु महावीर की अध्यात्म की यात्रा का विवेचन करते हुए फरमाया कि भगवान महावीर के सत्ताईस भवों में अट्ठारहवाँ भव त्रिपृष्ठ वासुदेव का। त्रिपृष्ठ एक समस्या सिंह का संहार कर एक धाति को प्राप्त किया।
अश्वग्रीव को सूचना मिली कि शेर की समस्या समाप्त हो गई। उसने सोचा कि दोनों लक्षण मिल गए हैं। ज्योतिषी के अनुसार ये त्रिपृष्ठ मेरा काल है। इसका वध मैं करा दूँ। प्रजापति के पास अश्वग्रीव के पास संदेश पहुँचा कि हमारे यहाँ तुम्हारे दोनों पुत्रों का सम्मान करना चाहते हैं। त्रिपृष्ठ को पता चला उसने संदेश का जवाब दिया कि अश्वग्रीव को समाचार मिल जाए कि जो राजा एक शेर की समस्या को समाहित नहीं कर सका, ऐसे कमजोर बुजदिल राजा के हाथ से हम सम्मान नहीं लेना चाहते। ये बात सुनकर अश्वग्रीव तिलमिला उठा कि ये तो मेरा अपमान है। अश्वग्रीव चतुरंगिनी सेना के साथ युद्ध में आ डटा। इधर त्रिपृष्ठ भी आ डटा। युद्ध चला। लक्ष्य बढ़िया होता है, पर उसके लिए कभी-कभी लड़ाई करनी पड़ सकती है। देश रक्षा के लिए हिंसा भी करना पड़ सकती है। हिंसा-हिंसा के परिणामों में अंतर रह सकता है।
आरंभजा हिंसा तो करनी पड़ सकती है, पर तुच्छ लाभ के लिए संकल्पजा हिंसा नहीं करनी चाहिए। युद्ध में कोई डटकर भाग जाए वो भी अच्छी बात नहीं। धर्मशास्त्र में आत्म युद्ध की बात उठती है। अपनी आत्मा के साथ युद्ध करो, कर्मों को काटो, यह धर्म-युद्ध-आत्मयुद्ध है। त्रिपृष्ठ ने सुदर्शन चक्र के द्वारा अश्वग्रीव को मार डाला और त्रिपृष्ठ वासुदेव बन गया। वासुदेव प्रतिवासुदेव को मारकर सत्ता में आता है। त्रिपृष्ठ इस अवसर्पिणी काल का प्रथम वासुदेव बना, अंचल बलदेव बना। पोतनपुर में एक बार ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयांस कुमार का पदार्पण होता है। दोनों भाइयों ने भगवान का प्रवचन सुना और फिर सम्यक्त्व की प्राप्ति हुई। राज्याधिकार में आकर जो राजा प्रजा की सेवा न करे तो उसका राज्याधिकार बेकार है। जैसे बकरी के गले का स्तन। लोकतंत्र में भी सरकार प्रजा का ध्यान दे। राजनीति भी एक सेवा कार्य है।
कुछ समय बाद त्रिपृष्ठ का वह सम्यक्त्व रूपी प्रकाश चला गया। एक बार वे रात्रि में संगीत के प्रोग्राम में आनंद ले रहा था। वासुदेव ने सेवक से कहा कि मुझे नींद आने लग जाए तो प्रोग्राम बंद करा देना। वासुदेव को नींद आ गई पर सेवक ने प्रोग्राम बंद नहीं करवाया। त्रिपृष्ठ ने सेवक के कानों में गरम-गरम शीशा डलवा दिया। सेवक तड़प-तड़पकर मर गया। इसी कारण भगवान के भव में उनके कानों में कीलें ठोकी गई। वहाँ से प्रभु की आत्मा आयुष्य पूर्ण कर सातवें नरक में गई। 33 सागरोपम का आयुष्य पूर्ण कर बीसवें भव में सिंह की योनि में उत्पन्न हुए। सिंह का आयुष्य पूर्ण कर फिर चौथी नरक में पैदा हुए। वहाँ से निकलकर बावीसवें भव में मनुष्य भव में पैदा होते हैं। रथपुर नगर में राजकुमार विमल के रूप में पैदा होते हैं।
राजकुमार विमल राजा बन जाता है, वह बड़ा करुणावान-सरल स्वभावी राजा था। एक बार जंगल में एक शिकारी ने जाल लगाकर के निरपराध हिरण-हिरणियों को पकड़ रखा था। राजा विमल का हृदय करुणा से भर उठा और शिकारी को समझाकर उन पशुओं को मुक्त कराकर शिकारी को शिकार का त्याग करवाया। अंत में राजा विमल चारित्र ग्रहण कर कल्याण की दिशा में आगे बढ़े, फिर वहाँ का आयुष्य पूर्ण कर तेवीसवें भव में भगवान की आत्मा प्रियमित्र के रूप में चक्रवर्तित्व को प्राप्त हो जाती है। आखिर में मुनि दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं। यहाँ का आयुष्य पूर्ण कर वे सातवें देवलोक में उत्पन्न होते हैं। पच्चीसवें भव में वे क्षत्रा नाम की नगरी में महाराजा मिल शत्रु व महाराणी भद्रा की कुक्षी से राजकुमार नंदन के रूप में पैदा होते हैं।
जीत शत्रु अपना राज्य नंदन को सौंपकर दीक्षित हो जाते हैं। राजा नंदन का 84 लाख वर्ष का आयुष्य है। 83 लाख वर्ष राजा की सेवा कर दीक्षा ग्रहण करते हैं। राजा से राजर्षि बन गए। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि अध्यात्म विद्या का एक महत्त्वपूर्ण आयाम हैµजप या मंत्र चिकित्सा। इसके द्वारा हम मंजिल के निकट पहुँच सकते हैं। इसके द्वारा हम अनेक प्रकार की कठिनाइयों को पार कर सकते हैं। मंत्र या जप से असाध्य कार्य साध्य हो सकते हैं। असाध्य बीमारियाँ साध्य बन सकती हैं। असंभव कार्य भी संभव हो सकता है। मुख्य महावीर कुमारजी ने कहा कि तप वह है जो हमारी आठ प्रकार की ग्रंथियों को तपाता है। पूर्व गृहीत कर्मों का क्षय करने का आधार तप है। शुभ योग तप है। तपस्या को एक प्रकार का धन कहा गया है। इसका अर्जन मिथ्यात्वी हो या सम्यक्त्वी कोई भी कर सकता है। तपस्या के धन से कर्मों के ऋण को चुका सकते हैं।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने कहा कि सामायिक में प्रवचन सुनने से दो-दो लाभ हो रहे हैंµसंवर की साधना और तप की आराधना। ‘पर्युषण महापर्व का’ गीत के सुमधुर संगान से इस बात को समझाया। मुनि नम्रकुमार जी, मुनि सत्य कुमार जी, मुनि विवेक कुमार जी, साध्वी समताश्री जी ने प्रेरणादायी भाव अभिव्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।