व्यक्‍ति को प्रयत्न में प्रमाद नहीं करना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

व्यक्‍ति को प्रयत्न में प्रमाद नहीं करना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 29 जुलाई, 2021
धर्म ज्ञाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि ठाणं आगम के आठवें अध्याय के 111वें सूत्र में शास्त्रकार ने 8 बातें बताई हैं। इन आठ बातों में अभ्युत्थान करना चाहिए। प्रयत्न और पराक्रम करना चाहिए और इन आगे वाली 8 बातों में प्रमाद नहीं करना चाहिए। प्रयत्न में प्रमाद नहीं करना चाहिए, जागरूक रहना चाहिए।
वे आठ बातें हैंपहली बात अश्रुत धर्मों को सम्यक् प्रकार से सुनने के लिए जागरूक रहे। जिन बातों को हमने सुना नहीं है, समझा या जाना नहीं है, उनको सुनने का प्रयास करें। नया कुछ ज्ञान प्राप्त करें। ज्ञान प्राप्ति के लिए दो इंद्रियाँ सशक्‍त साधना हैश्रोतेन्द्रिय और चक्षुइंद्रिय। जिस आदमी के पास श्रवण व दर्शन शक्‍ति नहीं है, उसके तो बाह्य साधन अनुपलब्ध होते हैं।
सुनते-सुनते कितना ज्ञान हो सकता है। दूसरी बातसुने हुए धर्मों के मानसिक ग्रहण और उनकी स्थिर स्मृति के लिए जागरूक रहे। जो ग्रहण किया है, उसको चितारते रहो। सुने हुए को सुरक्षित व अवधारित करने के लिए जागरूक रहे। तीसरी बातसंयम के द्वारा नए कर्मों का निरोध करने के लिए जागरूक रहे। आहार के समय साधु को ज्यादा नहीं बोलना चाहिए। आहार करते समय हँसी-मजाक भी न हो।
चौथी बाततपस्या के द्वारा पुराने कर्मों का विवेचन-पृथक्‍करण और विशोधन करने के लिए जागरूक रहें। साधु को जितनी हो सके तपस्या करनी चाहिए। तप के और भी प्रकार हैं। शुभ योग सारा तप है। पाँचवीं बातअसंगृहीत परिजनों-शिष्यों को आश्रय देने के लिए जागरूक रहें। शिष्यों की चित्त समाधि व विकास के प्रति जागरूक रहें।
छठी बात हैशैक्ष-नव-दीक्षित मुनि को आचार-गोचर का सम्यग् बोध कराने के लिए जागरूक रहें। शुरू में अच्छी बातें सीख ली तो जीवन की एक संपत्ति हो जाती हैं। सातवीं बातग्लान की अग्लान भाव से वैयावृत्य करने के लिए जागरूक रहें। बीमार साधु से घृणा न करें, अच्छी सेवा करनी चाहिए। वृद्धों को यथावश्यक साता पहुँचाएँ।
आठवीं बातसाधर्मिकों में परस्पर कलह उत्पन्‍न हो जाए। तो मध्यस्थ भाव से उसका निपटारा करने का प्रयास हो। सब शांत-सौहार्द भाव से रहें। निष्पक्ष भाव से समाधान करना चाहिए। इन बातों के प्रति जागरूक रहकर प्रयत्न करना चाहिए। इसमें प्रमाद न हो। यह हमारी खुद की आत्मा के लिए भी भला और सामुदायिक जीवन में भी अच्छापन रह सकता है।
परम पावन ने माणक-महिमा के प्रसंगों को समझाते हुए बताया कि लाला लिछमणदास जी मुंबई-सूरत जाते तो अपने व्यापारी मित्रों को सिद्धांतों एवं आचार्य भिक्षु की बातों को गाकर समझाते। लाडनूं में चौथे आरे के साधुओं को देख सकते हो। उन्होंने आनंद भाई जवेरी को लाडनूं जाने का रास्ता व ठिकाना बताया। तेरापंथ का परिचय दिया।
आनंद भाई आदि चार श्रावक लाडनूं पहुँचे और वहाँ का द‍ृश्य देखकर हर्षित हो गए। इतने साधु एक आचार्य की सेवा में है। उन्होंने वहाँ गुरु धारणा व बारह व्रत स्वीकार किए और पुन: वापस मुंबई आ गए। उन्होंने कई श्रावकों को तेरापंथ की धारणा करवाई।
वि0सं0 1928 का चतुर्मास जयाचार्य का जयपुर था। उसी चतुर्मास में बालक माणक जयाचार्य के संपर्क में आए थे और उनमें वैराग्य भावना जागृत हो जाती है। युवाचार्य मघवा की वाणी सुनकर बालक माणक का वैराग्य का बीज प्रस्फुटित हो रहा है। पूज्यप्रवर ने तपस्या के पच्चक्खाण करवाए।
मुख्य नियोजिका जी ने अतिमुक्‍त मुनि की घटना को समझाया। जीवों के अलग-अलग वर्गों के बारे में समझाया।
मुनि पारस कुमार जी ने अपनी भावना पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में अभिव्यक्‍त की। मुनि पृथ्वीराज जी के जीवन-प्रसंग बताए।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि तपस्या और सेवा निर्जरा के दो प्रमुख साधन हैं। मुनि पारस जी, मुनि पृथ्वीराज जी के साथ लंबे काल तक रहे। उससे पहले मुनि बुद्धमल जी स्वामी के पास रहे थे। अच्छे ढंग से तपस्या-सेवा, कषाय की मंदता चलती रहे। अच्छा क्रम होता रहे।
पूज्यप्रवर के सान्‍निध्य में समण संस्कृति संकाय व अभातेयुप के तत्त्वावधान में एक अगस्त से आयोजित होने वाली जैन विद्या कार्यशाला जो पूज्यप्रवर की कृति ‘तीन बातें ज्ञान की’ पर आधारित है उसके बैनर का अनावरण हुआ।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि ये तीन बातें ज्ञान की हमारी पुस्तक है, इससे अच्छा ज्ञान का विकास हो। टीपीएफ अच्छा काम करती रहे।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में टीपीएफ से नवीन पारख, कमल दुगड़, भगवती चपलोत, अनिल चोरड़िया, अपेक्षा पामेचा, कवीश आच्छा, अभिनव चोरड़िया ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।