जैन शासन की सेवा के लिए आचार्यप्रवर की महत्त्वपूर्ण उद्घोषणा

गुरुवाणी/ केन्द्र

जैन शासन की सेवा के लिए आचार्यप्रवर की महत्त्वपूर्ण उद्घोषणा

                                                जैनम् जयतु शासनम्

तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने संपूर्ण जैन शासन की सेवा के लिए महत्त्वपूर्ण उपक्रम जैनम् जयतु शासनम् की घोषणा की। आचार्यप्रवर ने भगवान महावीर का स्मरण करते हुए फरमाया कि हम जैन शासन के अंतर्गत साधना कर रहे हैं। जैन शासन में विभिन्‍न संप्रदाय हैं, हम संपूर्ण जैन शासन की सेवा करें।
आचार्यप्रवर ने फरमाया कि कल्याण परिषद की गोष्ठी में चिंतन किया गया कि जैन धर्म की द‍ृष्टि से क्या कोई उपक्रम या कार्य हाथ में लिया जा सकता है? समुचित चिंतन करने के पश्‍चात यह निर्णय लिया गया कि किसी माध्यम से नितांत जैन शासन की सेवा के लिए प्रयत्न किया जाना चाहिए। उपक्रम के नामकरण के संदर्भ में चिंतनपूर्वक निर्णय लिया गया और इस उपक्रम का नाम ‘जैनम् जयतु शासनम्’ घोषित किया। आचार्यप्रवर ने फरमाया कि भविष्य में अगर कोई अच्छा सुझाव आए तो नाम में भी परिवर्तन किया जा सकता है। नाम केवल माध्यम है, मूल तो काम है। कार्य की पहचान के लिए नाम की अपेक्षा होती है। अपेक्षा अनुसार इसमें परिवर्तन किया जा सकता है, इसकी विधा में भी परिवर्तन किया जा सकता है परंतु कार्य अच्छा होना चाहिए, जिन शासन की प्रभावना होनी चाहिए। आचार्यप्रवर ने जैनम् जयतु शासनम् के उद्घोष लगवाते हुए भगवान महावीर, तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु, आचार्य तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ जी का भी स्मरण किया।
आचार्यप्रवर ने फरमाया कि इस उपक्रम के साथ आध्यात्मिक संदर्भ में जैन आचार्य, उपाध्याय व साधु भी जुड़ें। जैन समाज के श्रावक भी इस संगठन की विधा एवं व्यवस्था के अनुसार जुड़ें। इसके विधान में सामायिक रूप से समय अनुसार संशोधन भी किया जा सकता है। आचार्यप्रवर ने फरमाया कि इससे हमें भी लाभ मिले और हमारे द्वारा जिन शासन की सेवा होती रहे तो यह हमारा सौभाग्य होगा और आत्म संतोष की बात होगी। इस उद्घोषणा के समय तेरापंथ धर्मसंघ के संत और धर्मसंघ की विभिन्‍न केंद्रीय संस्थाओं के अध्यक्ष-मंत्री उपस्थित रहें। इस घोषणा से संपूर्ण जैन समाज में हर्ष की लहर व्याप्त हो गई।