श्रमणों की उपासना करने वाला होता है श्रमणोपासक: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

श्रमणों की उपासना करने वाला होता है श्रमणोपासक: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 22 अगस्त, 2022
अध्यात्म के अलौकिक पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन आगम वाचना करते हुए फरमाया कि भगवान महावीर साधना कर तीर्थ की स्थापना कर तीर्थंकर के रूप में स्थापित हुए। उनके अनेक साधु-साध्वियाँ और श्रावक-श्राविकाएँ हुए। धर्म का प्रचार हुआ। विभिन्न क्षेत्रों में धर्म को पालने वाले लोग रहते थे। उस तुंगिका नगरी की विशेषता थी कि वहाँ अनेक श्रमणोपासक रहते थे। श्रमणों की उपासना करने वाला श्रमणोपासक होता है। आज कहीं-कहीं श्रावक तो है, पर साधु नहीं पहुँच पाते हैं, वहाँ समणियाँ, मुमुक्षु बहनें व उपासक श्रेणी जाती हैं। उपासक-उपासिकाएँ जितने क्षेत्रों की पर्युषणाराधनाएँ करते हैं, कराते हैं, उनके सामने तो साधु-साध्वियों, समणियों, मुमुक्षु बहनों की संख्या कम होती है।
संयम की साधना करने वालों को नौ तत्त्व की जानकारी होनी चाहिए। दीक्षा लेने वालों के लिए पारमार्थिक शिक्षण संस्था एक ट्रेनिंग सेंटर है। तुंगिया नगरी के श्रावकों ने तत्त्व ज्ञान को आत्मसात किया था। ज्ञानवत्ता उनमें थी। उनका जीवन श्रद्धायुक्त था। उनकी श्रद्धा असहज थी। निर्ग्रन्थ प्रवचन में अटूट श्रद्धा थी। देवता भी उनको श्रद्धा से विचलित नहीं कर सकते थे। वीतराग प्रवचन सार्थ है। इतनी श्रद्धा होना धन्य है। वे घर के दरवाजे खुले रखते थे कि जब साधु गोचरी के लिए आ जाए। वो धर्म-निर्ग्रन्थ प्रवचन के प्रति अनुराग भाव रखने वाले थे। श्रावक कैसा होना चाहिए पर तुंगिया नगरी के श्रावकों से सीखना चाहिए। वे आदर्श श्रावक थे।
पूज्यप्रवर का आज केशलोचन हुआ है। साधु-साध्वियाँ एवं श्रावक-श्राविकाएँ पूज्यप्रवर की निर्जरा में सम्मिलित होते हुए पूज्यप्रवर को वंदना की। पूज्यप्रवर ने भी रत्नाधिक मुनि धर्मरुचि जी को वंदना की। पूज्यप्रवर ने अपनी लोच के बारे में विशेष जानकारी प्रदान की। लोच करना शूरवीरता-शौर्य का काम है। लोच में झपकी आ जाए तो लोच सफल है। पूज्य गुरुदेव तुलसी को नींद आ जाती थी। यह गोल्ड मेडल जैसी बात हो जाती है। संवत्सरी से पहले-पहले बाल हटने चाहिए। बाल एक तरह का शृंगार है। साधु के विभूषा न हो। जीव उत्पन्न होने से हिंसा भी हो सकती है। मेरी लोच की दृष्टि से निर्जरा रूप में साधु-साध्वियों व समणियों को एक-एक घंटा आगम स्वाध्याय कर सकते हैं। मुमुक्षु बाइयाँ व श्रावक-श्राविकाएँ चाहें तो सात-सात सामायिक रोजमर्रा से अलग कर सकते हैं।
हमारे यहाँ कई-कई लोच करने वाले ख्यातनामा हैं। लोच करना भी एक सेवा है। सबमें लोच करने की दक्षता रहे। अगवानी विशेष ध्यान रखें। लोच सारे कर सकें वो कला उनमें हो। हमारे सामने पर्युषण महापर्व का प्रसंग है। 24 अगस्त से महापर्व का शुभारंभ होने जा रहा है। कार्यक्रम की प्रेरणा दी। करणीय कार्य की जानकारी दी। साधु-साध्वियों को द्रव्य सीमा की प्रेरणा दी। पर्युषण यहाँ व बाहर सभी मनाएँ, तपाराधना होती रहे। मुनि दिनेश कुमार जी ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए तपस्या एवं जप की प्रेरणा दी। प्रज्ञा भूतोड़िया ने गीत की प्रस्तुति दी।