इंद्रियों का उपयोग भोग में नहीं अपितु ज्ञान साधना में करना चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

इंद्रियों का उपयोग भोग में नहीं अपितु ज्ञान साधना में करना चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 21 अगस्त, 2022
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि भंते! इंद्रियाँ कितनी प्रज्ञप्त हैं। गौतम के नाम उत्तर कि इंद्रियाँ पाँच प्रज्ञप्त हैं। जैसे श्रोतेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय। आदमी के शरीर में पाँच इंद्रियाँ होती हैं और भी अनेक प्राणियों के शरीर में ये पाँचों इंद्रियाँ होती हैं। कुछ प्राणियों के चार, तीन, दो या एक इंद्रिय होती हैं। एक इंद्रिय वाले तो अनंत प्राणी होते हैं। जिनके सिर्फ स्पर्शनेन्द्रिय ही होती हैं। पाँचों स्थावर काय के प्राणी एकेन्द्रिय ही होती है। मनुष्य, तिर्यन्च पंचेन्द्रिय, मत्स्य, देव जगत एव नारकीय जीवों के पाँच इंद्रियाँ होती हैं। ये पाँच इंद्रियाँ ज्ञान की साधना बनती है। आदमी सुनकर बहुत कुछ जान लेता है। देखकर या अन्य इंद्रियों से बहुत कुछ जान लेता है। पर दो इंद्रियाँ श्रोतेन्द्रिय और चक्षुरिन्द्रिय ज्यादा ज्ञान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होती है।
सुनने से आदमी को कितनी जानकारियाँ मिल जाती हैं। ये श्रोत-कर्ण हमारे ज्ञान का बड़ा साधन बनता है। चक्षु के द्वारा देखकर भी हम बहुत सी जानकारियाँ जान लेते हैं। कई बातें सुन लेते हैं, पर आँख से जब उनको देख लेते हैं, तो तब कन्फर्म हो जाती है। तीर्थंकर या केवलज्ञानी से कोई बात सुन ली फिर देव सहयोग से उस चीज को देख लेते हैं, तो ज्ञान स्पष्ट हो जाता है। हमारे जीवन में ये दो इंद्रियाँ श्रोत और चक्षु ज्ञानवर्धन में बहुत काम आती है। आदमी को अच्छा श्रोता भी बनना चाहिए। उपयोगी या आत्मकल्याण की कोई बात कोई कहता है, तो हम सुनने का प्रयास करें। दुःखी आदमी के दुःख को भी सुनना चाहिए। उससे उसे सांत्वना मिल सकती है। सुनने के बाद उस बात पर मनन करें।
सुनते-सुनते प्रवचन देने की कला भी आ सकती है। जिनके पास श्रवण शक्ति है, उसका वो अच्छा उपयोग करें। श्रवण शक्ति का दुरुपयोग न हो। एक प्रसंग से समझाया कि पाँच कारणों से आदमी मूर्ख होता है-जो चलता-चलता खाए, जो बात बोलते-बोलते हँसे, बीती बात के बारे में सोचना, किसी पर उपकार करके उसको गिनाना, दो व्यक्ति बात करें और तीसरा बीच में चला जाए वो मूर्ख होता है। इसी तरह आँख का भी बढ़िया उपयोग करें। आगम-शास्त्रों को हम पढ़ें। आँखों से महात्मा-चारित्रवान संत के दर्शन करें। इर्या समिति में आँखों का उपयोग रखें तो अहिंसा की साधना हो सकती है। चक्षु से अनिमेष अनुप्रेक्षा की जा सकती है। एक बिंदु पर दृष्टि को एकाग्र रखना। आँखों का सदुपयोग हो इसके प्रति जागरूक रहें।
इन इंद्रियों को ज्ञानेंद्रियाँ कहा जाता है, पर ये भोगेन्द्रियाँ भी बन सकती हैं। श्रोत और चक्षु कामी इंद्रियाँ हैं, शेष तीन भोगी इंद्रियाँ हैं। जहाँ इंद्रियाँ ज्ञान का माध्यम बनती है, तो भोग का माध्यम भी ये बन सकती है। हम इंद्रियों का संयम करने का यथोचित्य प्रयास करना चाहिए। आत्मानुशासन को सिद्ध करने के लिए मन पर भी अनुशासन अपेक्षित है, तो वाणी, शरीर और इंद्रियों पर भी अनुशासन अपेक्षित है। पर्युषण महापर्व भी निकट आ रहा है। जैन श्वेतांबर में इस पर्युषण का बड़ा महत्त्व है। संयम की साधना का महत्त्वपूर्ण अवसर है। यह हमारा आध्यात्मिक पर्व है। त्याग-तपस्या संयम के द्वारा इसकी आराधना करें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि जो व्यक्ति अपने जीवन में संयम, सत्य, सदाचार और करुणा-दया का अभ्यास करता है, वह व्यक्ति भाव-शुद्धि की दिशा में प्रस्थान करता है। भाव-शुद्धि का एक माध्यम है-तपस्या। वह तपस्या है-शुभ योगः तपः। मन, वचन, काया की शुभ प्रवृत्ति करना सबसे बड़ा तप है। जैन साधना पद्धति में सबसे बड़ा है-भाव शुद्धि। हमारा सकारात्मक चिंतन हो गया तो हम साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं। आचार्यप्रवर का आभामंडल शुभ भावों का संचरण कर रहा है। पूज्यप्रवर के पास बैठने से शांति का अनुभव होता है। साध्वी सुषमा कुमारी जी ने तपस्या की प्रेरणा दी। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष विजय सांखला पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ पधारे। उन्होंने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। व्यवस्था समिति द्वारा उनका सम्मान किया गया। दिल्ली का बड़ा संघ श्रीचरणों में प्रस्तुत हुआ। दिल्ली संघ का मंचीय कार्यक्रम आयोजित हुआ। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।