ज्ञानशाला में ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार देने का प्रयास हो: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

ज्ञानशाला में ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार देने का प्रयास हो: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 18 अगस्त, 2022
युगप्रधान आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित राष्ट्रीय ज्ञानशाला प्रशिक्षक सम्मेलन-2022 के त्रिदिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन आचार्यश्री ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में ज्ञानशालाएँ संचालित होती हैं और क्षेत्रीय स्तर पर सभाएँ उनके संचालन का कार्य देखती हैं। ज्ञानशाला के संचालन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है-ज्ञानशाला में ज्ञानार्थियों को प्रशिक्षण देना। ज्ञानशाला के प्रशिक्षक-प्रशिक्षिकाएँ यह ध्यान दें कि बच्चों में कैसे अच्छे संस्कार और ज्ञान का विकास हो सके। इसके लिए बच्चों को जो भी बताएँ, उसके उच्चारण की शुद्धता का ध्यान दिया जाए। मात्रात्मक शुद्धि का भी प्रयास हो। आचार्यश्री ने प्रशिक्षिकाओं का मानो परीक्षण लेते हुए लोगस्स का उच्चारण करने को कहा। प्रशिक्षिकाओं को आचार्यश्री ने उच्चारण शुद्धि का प्रशिक्षण देते हुए कहा कि बच्चों को अच्छी सीख देने के साथ अच्छे संस्कार भी देने का प्रयास हो और प्रशिक्षिकाएँ उपासिकाएँ बनने का भी प्रयास करें, तो अच्छा हो सकता है। निरंतर ज्ञान के अर्जन का प्रयास होता रहे। ज्ञानशाला प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक सोहनराज चोपड़ा ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं द्वारा गीत का संगान हुआ। मुंबई ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि किमंजला नगरी के बाहर भगवान महावीर आए हुए हैं। स्कंधक के मन में संकल्प जागा कि मैं भी भगवान महावीर के पास जाऊँ, कुछ प्रश्न भी उनसे पूछूँ। उनसे मिलना मेरे लिए हितकर होगा, इसलिए मैं वहाँ जाऊँ। उधर भगवान महावीर ने अपने प्रमुख शिष्य भगवान गौतम से कहा कि तुम अपने पूर्व मित्र को देखोगे। गौतम ने पूछा-भगवान! कौन से मित्र को देखूँगा? उत्तर मिला कि तुम स्कंधक को देखोगे। गौतम ने भगवान को वंदन कर पूछा कि भगवान! एक जिज्ञासा है कि स्कंधक आने वाला है, वो आपके पास साधु बनने में समर्थ है क्या? उत्तर दिया गया हाँ वो मेरे पास साधु बनने में समर्थ है। वार्तालाप चल रहा था कि स्कंधक एकदम निकट आ गया। गौतम स्वामी उठकर स्कंधक की अगवानी में जाते हैं। पास जाकर बोलते हैं कि स्कंधक तुम्हारा सुस्वागत है। मैंने सुना है कि तिंगल नाम के व्यक्ति ने तुम्हें प्रश्न पूछे थे। यह बात सही है क्या?
स्कंधक बोला-बात तो सही है। पर ये बात तो मेरे साथ उसकी व्यक्तिगत बात हुई थी, आपको इसका पता कैसे चल गया। कौन ऐसे ज्ञानी-तपस्वी हैं, जिसने इस रहस्य को जान लिया और आपको बता दिया। गौतम बोले-मेरे धर्माचार्य भगवान महावीर हैं। वे तो सर्वज्ञ हैं। वे अतीत, वर्तमान और भविष्य के विज्ञाता हैं। उन्होंने मुझे सारी बात बताई है। इसलिए मैं जानता हूँ। स्कंधक बोला कि तुम्हारे गुरु ज्ञानी हैं, तो मैं उनसे मिलना चाहूँगा और उन्हें वंदना कर उनका सत्कार-सम्मान करना चाहूँगा। गौतम बोले-जैसे आपको सुख उपजे। भगवान को वंदन कर स्कंधक उनकी पर्युपासना में स्थित हो जाता है। भगवान बोले-स्कंधक! तिंगल ने तुमको कुछ प्रश्न पूछे थे। ये बात ठीक है ना। उन प्रश्नों के उत्तर हैं कि मैंने लोक चार प्रकार का बताया है-द्रव्यतः, क्षेत्रतः कालतः और भावतः। द्रव्यतः सारा लोक एक ही है, इसलिए वह शांत है। क्षेत्र से लोक असंख्य कोटा-कोटि योजन लंबा-चौड़ा और असंख्य योजन परिधि वाला है। इसलिए क्षेत्रतः भी वह शांत है। एक सीमा के बाद उसका समापन है, इसलिए वह अनंत नहीं है।
कालतः लोक अनंत है। हमेशा था और हमेशा रहेगा। यह नित्य, शाश्वत और अवस्थित है, इसका कहीं अंत नहीं है। भावतः लोक में अनंत वर्ण पर्यव, अनंत गंध पर्यव, अनंत रस पर्यव, अनंत स्पर्श पर्यव, अनंत संस्थान पर्यव, अनंत गुरु-लघु पर्यव, अनंत अगुरु-लघु पर्यव है, उन पर्यवों का कोई अंत नहीं है। पर्याय अनंत है, इसलिए भावतः लोक अनंत है। दो दृष्टियों से लोक शांत है और दो दृष्टियों से लोक अनंत है। इस तरह लोक के बारे में भगवान ने स्कंधक को जानकारी दी। दूसरे प्रश्न के उत्तर में भगवान ने बताया कि लोक की तरह ही जीव हैं। द्रव्यतः जीव एक है, इसलिए वो शांत हो गया। क्षेत्रतः जीव असंख्येय प्रदेशों वाला है, आकाश के असंख्य प्रदेशों का अवगहन करके रहता है, असंख्य है, अनंत तो है नहीं इसलिए क्षेत्रतः जीव शांत है। कालतः जीव अनंत है, जीव हमेशा था, है और हमेशा रहेगा। वह ध्रुव है, नित्य है, शाश्वत है। भावतः देखें तो एक जीव में अनंत ज्ञान पर्यव है, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र, अनंत और पर्यव है। इसलिए जीव भावतः अनंत है।
तीसरे प्रश्न का उत्तर है कि सिद्धि एक ही है। सिद्धशिला एक ही है। इसलिए वह द्रव्यतः एक है। क्षेत्रतः 45 लाख योजन लंबी-चौड़ी सिद्ध शिला है। वह एक परिधि की सीमा में है, इसलिए वह शांत है। कालतः वह अनंत है। वह हमेशा थी और हमेशा रहेगी। भावतः भी सिद्धशिला में अनंत वर्ण आदि है, इसलिए भावतः भी सिद्धि अनंत है। चौथे प्रश्न का उत्तर है कि द्रव्यतः एक सिद्ध एक ही है, इसलिए वो शांत भी है। क्षेत्रतः सिद्ध के असंख्येय प्रदेश है, इसलिए वह शांत है। कालतः सिद्ध का कभी अंत नहीं होता यह अनंत काल तक रहेगा, इसलिए वह अनंत है। पर वह आदि भी है, कभी तो वह सिद्ध बना था। भावतः भी वह अनंत होता है। पाँचवें प्रश्न के उत्तर में भगवान ने बताया कि दो प्रकार के मरण होते हैं-बाल मरण और पंडित मरण। बाल और पंडित मरण के संदर्भ जीव का संसार में बढ़ना घटना होता है। असंयम जीवन में मरना होता है। अनेक तरह से मौत हो सकती है, बाल मरण वाले का संसार बढ़ता है। जो पंडित मरण से मरता है, उसकी संसार परंपरा कम होती है।
पंडित मरण-अनशन भी दो प्रकार का होता है। स्कंधक को अपने प्रश्नों का समाधान मिल गया। स्कंधक बोलता है-भगवान मैं आपसे प्रभावित हूँ। मैं केवली प्रज्ञप्त धर्म आपसे सुनना चाहता हूँ। भगवान विशाल परिषद में स्कंधक को धर्म बताते हैं। स्कंधक बड़ा खुश होकर भगवान को वंदन कर बोलता है कि मैं निर्गन्थ प्रवचन में श्रद्धा, प्रतीती और अभ्युथान करता हूँ। आप जो कह रहे हैं, वो सही है। भगवान यह संसार जल रहा है। इस संसार में दुःख है, बुढ़ापा है, मौत है। स्कंधक बोला भगवान मैं आपके संघ में दीक्षा लेना चाहता हूँ। भगवान उसे दीक्षा प्रदान कराते हैं। उसे शिक्षा प्रदान कराते हैं। उसके मन में तपस्या की भावना भी जागृत होती है। यह भगवती सूत्र में आया है कि किस तरह अन्य परंपरा का संन्यासी भगवान के पास साधु बन गया।
पूज्यप्रवर ने कालू यशोविलास का विवेचन करते हुए फरमाया कि हरियाणा में सैकड़ों लोग गुरुदेव के साथ हैं। लोगों में धर्म की भावना जागृत हो रही है। अनेक गाँवों का प्रवास करवाया है। मानो हरि हरियाणा में पधार गए हैं। लोग दर्शन कर रुपया-नारियल धाम रहे हैं। गुरुदेव हरियाणा की धर्म की दृष्टि से हराभरा बना रहे हैं। हरियाणा तेरापंथ की राजधानी हांसी पधार जाते हैं।साध्वीवर्या जी ने कहा कि जीवन मूल्यवान है। हमें मानव जीवन प्राप्त हुआ है। हम मूल्यवान जीवन को अच्छा बनाएँ। शरीर इसका माध्यम होता है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने तीन प्रकार के शरीर बताए हैं-स्थूल शरीर, यश शरीर और धर्म शरीर। धर्म शरीर का पोषण करना सर्वाधिक आवश्यक है। उसके लिए कषायों का उपशमन करें। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।