साँसों का इकतारा

साँसों का इकतारा

साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा

(82)

नहीं भुजाओं से तर सकती संदेहों का पारावार।
नाव सत्य की पास तुम्हारे पहुँचा दो नाविक! उस पार।।

‘समयं गोयम! मा पमायए’ महावीर का मंत्र महान
सिखलाते रहते निष्ठा से उपकृत है यह सकल जहान
समय नियोजन कला विलक्षण प्रतिबिंबित है कण-कण में
नहीं कहीं ठहराव रवानी हर गतिविधि में हर क्षण में
मिलती रही प्रेरणा पल-पल खुले प्रगति के अभिनव द्वार।।

‘जाए सद्धाए निक्खंतो’ महावीर का यह संकेत
तुमने ही समझाया उनको बने हुए हैं जो अनिकेत
प्रतिस्रोत में बढ़ते जाएँ जीवनधारा रहे पुनीत
रहे गूँजता साँस-साँस में आत्मा का मधुरिम संगीत
सत्य-शोध की जगे चेतना यही साधना का आधार।।

‘अरइं आउट्टे से मेहावी’ महावीर का यह उद्घोष
जब-जब भी सुनते हैं तुमसे मिल जाता पूरा परितोष
महाप्राण! तुम भरते जाओ मेरे प्राणों में उच्छ्वास
दो आशीर्वर ऐसा अनुपम सार्थक कर पाऊँ विश्वास
सोच सकारात्मक हो मेरी सृजन चेतना का विस्तार।।

(83)

छवि अलौकिक आर्यवर! सचमुच तुम्हारी
मुग्ध दुनिया देख नयनों का नजारा
पुजारी पुरुषार्थ के अप्रतिम हो तुम
भाग्य कितनों का प्रभो! तुमने संवारा।।

हो महादानी प्रभो! इस विश्व में तुम
दे सकूँ तुमको कहाँ औकात मेरी
सत्य का आलोक सबको बाँटते तुम
दिग्दिगंतों में बजी है सुयश भेरी
है नहीं अब चाह कोई भी अधूरी
रहे मिलता सुखद सन्निधि में उजारा।।

प्यास कोई जिंदगी में क्यों सताए
सुभाषित-पीयूष जी-भर पी रही हूँ
भरोसा तुमने दिया है जो अयाचित
उसी के आधार पर अब जी रही हूँ
निरंतर गतिशील निज पथ पर रहूँगी
रहो देते हर कठिन पल में सहारा।।

शांत और सुरम्य जिन परमाणुओं से
हुई निर्मित सहज ही अद्भुत तुम्हारी
विश्व में परमाणु वैसे हैं नहीं अब
खोज ली अन्वेषकों ने धरा सारी
हो गए अभिभूत वे सुर मनुज सारे
निकटता से जब कभी तुमको निहारा।।

(क्रमशः)