व्यक्ति अनावश्यक पानी का व्यय न करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

व्यक्ति अनावश्यक पानी का व्यय न करें: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 2 अगस्त, 2022
हमारी आस्था के अनन्य केंद्र आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आगम वाणी पर मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि भंते! सूक्ष्म स्नेहकाय सदा संगठित रूप में गिरता है। उत्तर दिया गया-हाँ गिरता है। जैन वाङ्मय और जैन आचार व्यवस्था में एक जल की बात आती है कि पानी ऊपर से सूक्ष्म रूप से गिरता रहता है। उसको आगम की भाषा में सूक्ष्म स्नेहकाय कहा गया है। प्रश्न किया गया कि गिरता है, तो क्या वह ऊँचे लोक में, नीचे लोक में और तिरछे लोक में गिरता है। गौतम-वह तीनों लोक में गिरता है। प्रश्न किया गया कि जैसे बादल का स्थूल जल जैसे गिरता है, तो वह इकट्ठा होकर लंबे समय तक रह जाता है। वैसे ही यह सूक्ष्म जल जो गिरता है, वह इकट्ठा होकर कहीं रहता है, क्या? उत्तर दिया कि गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। वह सूक्ष्म काय जल जो गिरता है, वो शीघ्र ही विध्वंस को प्राप्त हो जाता है, टिकता नहीं है।
छः जीव निकायों में एक अपकाय है। अपकाय में अनेक रूपों में जल होता है। औस, हिम कुहासा, ओला आदि। सूक्ष्म स्नेह काय औस से भी सूक्ष्म जल होता है। वह निरंतर गिरता है। साधु रात को बाहर काम से जाते हैं, तो माथा ढककर चलते हैं, वो सूक्ष्म स्नेह काय गिरने के कारण करते हैं। अंदाज लगाया गया है कि सूक्ष्म स्नेह काय गिरता है, वो तमस्स काय से गिरता है। और पूरे वातावरण में व्याप्त हो जाता है। इस जल के प्रति भी अहिंसा की बात होती है। श्रावकों को भी रात में सामायिक-पौषध में खुले में नहीं जाना चाहिए। अपकाय की हिंसा से बचने की हमारी एक परंपरा स्थापित है। जैन वाङ्मय में जल को सचित माना गया है। पानी स्वयं जीव है। यह स्थावर काय का जीव है। पानी ही उसका शरीर है। पानी की एक बूँद में असंख्य जीव होते हैं। इसलिए पानी का व्यय जहाँ तक हो कम करना चाहिए।
कुछ प्राचीन काल में तो पानी को लेकर कठिनाई हो जाती है कि पानी नहीं मिल रहा है। पानी की सीमा रखें, संयम रखें। उपलब्ध होने पर भी पानी का संयम रखें, यह एक प्रसंग से समझाया। इस तरह सूक्ष्म स्नेहकाय गिरने की बात बताई गई है। हमारे द्वारा उन जीवों की हिंसा न हो यह ध्यान रखें। कालूयशोविलास की विवेचना करते हुए परमपूज्य ने फरमाया कि कालूगणी यात्रा कर रहे हैं, संघ का विकास कर रहे हैं। दीक्षाएँ प्रदान करवा रहे हैं। न्यारा में भी दीक्षा हो रही है। वि0सं0 1967 का चतुर्मास करने सरदारशहर पधार रहे हैं। इस चौमासे में कालूगणी ने मुनि मगनलाल जी को विशेष बख्शीष करवाई है। मुनि राजकुमार जी ने तपस्या की जानकारी दी। सुमन दुधेड़िया ने 11 की तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। मुनि दिनेश कमार जी ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए समझाया कि बच्चे जैसी सरलता हमारे में होगी तो हम प्रभु को पा सकते हैं।