गर्भस्थ शिशु को सद्संस्कार देना होता है माता का दायित्व: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

गर्भस्थ शिशु को सद्संस्कार देना होता है माता का दायित्व: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 4 अगस्त, 2022
सद्गुण रत्नाकर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र की विवेचना करते हुए फरमाया कि प्रश्नोत्तर किया गया है कि गर्भस्थ बच्चा है, वो गर्भकाल के दौरान ही मर जाए तो क्या वह अजन्मा बच्चा नरक में जा सकता है क्या? उत्तर दिया गया कि गौतम! कोई-कोई नरक में पैदा हो सकता है, कोई-कोई नहीं भी होता है। पुनः प्रश्न किया गया कि यह किस अपेक्षा से कहा गया है? उत्तर दिया गया कि कोई-कोई गर्भस्थ बच्चा जो संज्ञी पंचेंद्रिय तो है ही। उसके पास कोई वैक्रिय लब्धि है। ऐसी साधना या पिछले जन्म का योग है। वीर्य लब्धि भी उसके पास होती है, ऐसा गर्भस्थ बच्चा है, उसने सुन लिया या जान लिया कि शत्रु सेना आ रही है। वो जानकर यह सोचता है कि मैं शत्रु सेना से मुकाबला करूँ। मुकाबला करने के लिए वो अपने आत्म-प्रदेश को गर्भ से बाहर निकालता है और वैक्रिय समुद्घात से समबहत होता है। अपनी शक्ति से बहुरंगीणी सेना का निर्माण कर लेता है। निर्माण करके वो शत्रु सेना के साथ युद्ध शुरू कर देता है।
गर्भस्थ शिशु के उस समय हिंसा का भाव रहता है, सोचता है, मैं जीत जाऊँ, वह राज्य का आकांक्षी आदि अशुभ भाव होते हैं, उन भावों में वह इतना गहराई से चला जाता है। सारे अध्यवसाय, परिणाम, लेश्याएँ आदि अशुभ भावों में जुड़ गए हैं। इस बीच में वो शिशु मर जाता है। ऐसी भावना में मरा है, वो नरक में पैदा हो सकता है। फिर प्रश्न किया गया कि भंते! क्या कोई गर्भस्थ शिशु मृत्यु को प्राप्त हो क्या वह देवलोक में पैदा हो सकता है? उत्तर दिया कि कोई-कोई गर्भस्थ शिशु मर करके देवलोक में पैदा हो सकता है।, कोई पैदा नहीं भी हो सकता है। यह कैसे? वो जो गर्भस्थ शिशु है, पर्याप्त हो गया है, संज्ञी है और उसको किसी साधु का प्रवचन-वचन सुनने का मौका मिल गया, धार्मिक प्रवचन सुनने से धर्म के प्रति अनुराग हो जाता है। उसमें धर्म करने की भावना, मोक्ष की कामना, स्वर्ग की कामना हो जाती है। शुभ भाव उसमें आ जाते हैं। धर्म के भावों को गर्भस्थ शिशु आयुष्य पूरा कर देता है, तो वह मरकर के देवलोक में भी पैदा हो सकता है।
गर्भस्थ विज्ञान का सिद्धांत है कि गर्भज शिशु को भी पाप लग सकता है और पुण्य भी हो सकता है। गर्भस्थ शिशु के विकास, क्षमता और व्यवहार पर आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में भी अनुसंधान हुआ है कि गर्भस्थ शिशु गीतों को सुन लेता है, आवाजों को सुन लेता है, उनको वह जन्म के बाद भी पहचान लेता है। गर्भस्थ शिशु सपने भी देखता है। 28 सप्ताह का गर्भस्थ शिशु संगीत की थाप पर नाच भी सकता है। चरक संहिता में भी गर्भस्थ शिशु के विकास की बातें कही गई हैं। गर्भस्थ का कितना विकास हो सकता है, यह भगवती सूत्र में विशेषतया बताया गया है। गर्भस्थ को अच्छे संस्कार देने की बात हमारे आगम से भी सिद्ध होती है। जन्म के बाद भी छोटे बच्चों में अच्छे संस्कार माता-पिता व ज्ञानशाला के द्वारा दिए जा सकते हैं। ज्ञानशाला संस्कार देने वाली, तात्त्विक-धार्मिक ज्ञान देने वाली सिद्ध हो रही है। स्कूल शिक्षा के अलावा ज्ञानशाला की शिक्षा भी उसे दी जाए तो अच्छे धार्मिक संस्कार बच्चे को मिल सकते हैं। साधु-साध्वियों के पास आने पर भी अच्छे संस्कार मिल सकते हैं।
मंत्र दीक्षा से संकल्प दिलाकर धार्मिक संस्कार दिए जा सकते हैं। जीवन-विज्ञान से भी अच्छे संस्कार मिल सकते हैं। बाल पीढ़ी को अच्छे संस्कार मिलने से वो आगे जाकर अच्छे नागरिक बन सकते हैं। विद्या-संस्थानों से भी अच्छे संस्कार दिए जाएँ। विनम्रता, अहिंसा, ईमानदारी से संस्कार दिए जाएँ। माता गर्भकाल में जागरूक रहकर शिशु को अच्छे संस्कार दे। भगवती सूत्र में यह भी बताया गया है कि जो संतान होती है, उसको तीन मातृ अंग प्राप्त होते हैंµमांसा, शोणित और मस्तिस्क की मज्जा। पितृ अंग के रूप में भी तीन चीजें प्राप्त होती हैं, अस्थि, मज्जा, केश, रोम नख आदि संतान को प्राप्त होता है। इस तरह शरीर विज्ञान की बातें बताई गई हैं। भगवती सूत्र में अनेक विषयों का वर्णन दिया गया है, इनको पढ़कर जानकारियाँ की जा सकती हैं। वैराग्य वृत्ति और धर्म की प्रेरणा भी प्राप्त की जा सकती है।
कालू यशोविलास को व्याख्यायित करते हुए महातपस्वी ने फरमाया कि पूज्य कालूगणी छापर से सुजानगढ़ पधारते हैं, वहाँ छः दीक्षाएँ होती हैं। वि0सं0 1968 का मर्यादा महोत्सव लाडनूं में भी दीक्षाएँ हो रही हैं। वहाँ से रतनगढ़ होकर वि0सं0 1969 का चतुर्मास करने चूरू पधारते हैं। वहाँ भी दीक्षाएँ हुई। वहाँ से सरदारशहर होते हुए बीदासर मर्यादा महोत्सव हो रहा है। 1970 का चतुर्मास ठा0 आनंद सिंह जी की अर्ज पर लाडनूं हो रहा है। जगह-जगह दीक्षाएँ हो रही हैं। जन कल्याण और आत्मकल्याण कर रहे हैं।
जर्मनी के वयोवृद्ध विद्वान जैकोवी जिन्होंने तीन आगमों का अंग्रेेजी भाषा में अनुवाद किया था। वे 18 भाषाओं के जानकार भी थे, वे भारत आए। भारतीय धर्मों की जानकारी कर रहे हैं। श्रावक समाज भी उनसे मिलकर पूज्य कालूगणी से संपर्क करवाने का प्रयास कर रहे हैं। तेरापंथ महिला मंडल, छापर ने त्याग का गुलदस्ता-संकल्पों की आध्यात्मिक भेंट श्रीचरणों में अर्पित किया। पूज्यप्रवर ने आशीर्वाद देकर संकल्प करवाए। दीक्षा प्रदाता ने 8 दिसंबर सिरियारी में मुमुक्षु दक्ष जो सरदारशहर से है तथा पूज्यप्रवर की संसारपक्षीय बहन का पौत्र है को दीक्षा प्रदान करने की घोषणा करवाई। जसोदा देवी चौपड़ा पचपदरा निवासी जिनकी एक पुत्री तो दीक्षित है और दो पुत्रियाँ संस्था में अध्ययरत हैं, ने 23 की तपस्या के प्रत्याख्यान पूज्यप्रवर से ग्रहण किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।