साध्वीप्रमुखाश्री जी के प्रति

साध्वीप्रमुखाश्री जी के प्रति

यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत।
एवं पुरुषकारेण विना दैवं न सिध्यति।

जैसे रथ एक पटिये से नहीं चल सकता, वैसे ही बिना परिश्रम के भाग्य फल नहीं सकता। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी का जीवन भाग्य और पुरुषार्थ का समन्वित रूप है। आप तेरापंथ की साध्वीप्रमुखा परंपरा में नवमें पद पर सुशोभित है, इसमें आपके संचित प्रबल पुण्याई की अहम् भूमिका है, लेकिन आपके अहर्निश पुरुषार्थी जीवन के आपके व्यक्तित्व को माँजकर, सजा-संवारकर संघ के सम्मुख प्रस्तुत किया है। मैं आपके इस प्रेरणादायी व्यक्तित्व को नमन करती हूँ। परम पूज्य गुरुदेव के विश्वास को आप शतगुणित बनाते हुए हम सबके मार्ग को प्रशस्त करती रहें।