जीव परस्पर एक-दूसरे पर उपकार करने वाले होते हैं: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीव परस्पर एक-दूसरे पर उपकार करने वाले होते हैं: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 27 जुलाई, 2022
अहिंसा की प्रतिमूर्ति आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र आगम की विवेचना करते हुए फरमाया कि यहाँ एक बात बताई गई है, जो प्रश्नोत्तर के रूप में है कि परमाणु है, वह परमाणु अतीत में अनंत काल में था, अनंत भविष्य काल में भी रहेगा, वर्तमान में भी है, ऐसा कहा जा सकता है क्या? उत्तर दिया गया कि हाँ गौतम! कहा जा सकता है। आगे जीव और स्कंध के बारे में भी प्रश्न है और यही उत्तर है कि यह अनंत अतीत में था। अनंत अनागत में रहेगा और वर्तमान में भी स्थित है।
कुल मिलाकर पुद्गल और जीव इन दो के बारे में प्रस्तुत प्रकरण में बताया गया है। उसका निष्कर्ष है कि पुद्गल त्रेकालिक है। आत्मा-जीव भी त्रेकालिक है। यह त्रेकालिकता अनंत अतीत और अनंत भविष्य से जुड़ी हुई है। ये दोनों शाश्वत त्रेकालिक है। द्रव्य होता है, वह त्रेकालिक होता है। पर्याय स्वल्पकालिक होती है। इसलिए द्रव्य निर्पेक्ष सत्य है और पर्याय एक सापेक्ष सत्य होता है।
हमारी सृष्टि में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय है, आकाश भी है, पर हमें जो दिखने वाले हैं, वो पुद्गल और जीव स्पष्ट दिखते हैं, हमारे काम आते हैं। ये सृष्टि के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैंµपुद्गल और जीव। जीव के पुद्गल काम आते हैं। जीव और पुद्गल पर धर्मास्तिकाय का उपग्रह है। वे गति में सहायक है। अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय का भी है वे स्थिति और स्थान देने में सहायक है। ये सारे दूसरों पर उपकार करने वाले हैं।
सेवा कई रूप में हो सकती है। गुरुदेव तुलसी ने धर्मसंघ की कितनी सेवा की थी। कितना आगम, अणुव्रत, जीवन-विज्ञान, प्रेक्षाध्यान का कार्य किया था। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने भी आगम संपादन व ज्ञान के क्षेत्र में कितना योगदान दिया था। कितना उनका साहित्य है। योग्यतानुसार सेवा में शक्ति का नियोजन करें। उपासक- उपासिकाएँ भी सेवा दे रहे हैं। हम सभी सेवा देते रहें।
हमारी सृष्टि में कई शाश्वत तत्त्व है। ध्रौव्य शाश्वत है, पर्याय अशाश्वत है। हम जीव और पुद्गल में इसको देख सकते हैं। सेवा के द्वारा आदमी अपने आपको एक रूप में कृतार्थ कर सकता है। सेवा जो अंतर्मन से करता है, उसका फल अवश्य आएगा।
आज चतुदर्शी है। पूज्यप्रवर ने हाजरी का वाचन किया। नवदीक्षित व छोटी सात साध्वियों ने लेख पत्र का वाचन किया। पूज्यप्रवर ने नव दीक्षित साध्वी को पाँच कल्याणक व बाकी साध्वियों को दो-दो कल्याणक बख्शाए। सभी साधु-साध्वियों ने लेख-पत्र का वाचन किया। पूज्यप्रवर ने प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। पूज्यप्रवर ने साध्वी चांदकुमारीजी लाडनूं का दीक्षा पर्याय का 75वाँ वर्ष एक दिन मनाने का फरमाया। साध्वी चांदकुमारी जी रतननगर का भी दीक्षा दिन मनाने का फरमाया। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं, जो हमें ऐसे गुरु मिले हैं। गुरु हमारा पल-पल ध्यान रखते हैं। तेरापंथ धर्मसंघ शक्तिसंपन्न है। हमारे गुरु शक्ति संपन्न होते हैं। हम गुरु से शक्ति प्राप्त कर अपनी मंजिल को प्राप्त करने का प्रयास करें।
साध्वीवर्या जी ने कहा कि सिद्धों का कितना महत्त्व है। उन्होंने सिद्धों के स्वरूप को समझाते हुए कहा कि उनमें केवल ज्ञान-केवल दर्शन होता है। वे आठों कर्मों का क्षय कर देते हैं। इससे उन्हें आठ गुण प्राप्त हो जाते हैं। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।