मोक्ष प्राप्ति के लिए वीतरागता और केवलज्ञान आवश्यक: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मोक्ष प्राप्ति के लिए वीतरागता और केवलज्ञान आवश्यक: आचार्यश्री महाश्रमण

ताल छापर, 28 जुलाई, 2022
आगम व्याख्याता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि भगवती सूत्र में एक प्रश्न उठाया गया है कि भंते! कोई छद्मस्थ मनुष्य है, वह केवल संयम के आधार पर, केवल संवर के आधार पर, ब्रह्मचर्यवास है, प्रवचनमालाएँ हैं, केवल इनके आधार पर कोई मुक्त हो सकता है क्या? आज तक मुक्त हुआ है क्या? वर्तमान में होता है क्या? भविष्य में होगा क्या? तीनों कालों में हो सकता है क्या? इस संदर्भ में उत्तर दिया गया कि गौतम! ऐसा नहीं हो सकता। मनुष्य दो प्रकार के होते हैंµछद्मस्थ और केवली। छद्मस्थ वह होता है, जिसके ज्ञान पर आवरण विद्यमान है। जिसके ज्ञान पर बिलकुल आवरण नहीं रहा वह केवली हो जाता है। छद्मस्थ मुक्त हो नहीं सकता, केवली ही मुक्त हो सकता है।
अनेक दर्शन हैं, छः दर्शन के नाम आते हैं। बौद्ध, नैयायिक, सांख्य, जैन, वैशेषिक और जेमनीय दर्शन। चारवाक दर्शन भी है। सांख्य और बौद्ध दर्शन में सिद्धांत है कि मुक्त होने के लिए ज्ञान की अर्हता का कोई नियम नहीं। ज्ञान के बिना आत्मा मुक्ति में जा सकती है। जिसके क्लेश, आश्रव समाप्त या क्षीण हो गए हैं, ऐसा मनुष्य केवली बने बिना भी मुक्ति को प्राप्त कर सकता है। इस सिद्धांत के संदर्भ में ही गौतम ने प्रश्न किया है।
बारहवें गुणस्थान में मनुष्य वीतराग तो बन जाता है। ग्याहरवें गुणस्थान का भी वीतराग कहलाता है, पर बड़ा अंतर है। ग्यारहवें गुणस्थान वाला वर्तमान में तो वीतराग है, पर वह बाद में जरूर सराग बनने वाला है। बारहवें गुणस्थान वाला सराग बनेगा ही नहीं, वीतराग ही रहेगा। उसी जीवन के बाद अवश्यमेव मोक्ष को भी प्राप्त करेगा। बारहवें गुणस्थान वाले को तेरहवें, चौदहवें गुणस्थान में जाना ही होगा, केवलज्ञान, केवल दर्शन को प्राप्त करना ही होगा। उसके बाद ही मुक्ति मिल सकती है।
कालूयशोविलास का विवेचन करते हुए परम पावन ने फरमाया कि पूज्य डालगणी ने साधु-साध्वियों एवं श्रावकों की बात को महत्त्व देते हुए आगामी व्यवस्था करने का चिंतन किया, लेखन सामग्री मँगवाई। रूपचंद सेठिया को वहीं बैठकर सेवा का निर्देश दिया और पत्र लिखकर जेठांजी को पत्र सुखाने का निर्देश दिया। मुनि मगन जी को सुखने के बाद वो पत्र लाकर देने का निर्देश दिया। पत्र को लिफाफे में बंद कर पुट्ठे में रख दिया। सांयकालीन गोष्ठी में सब संतों को इसकी जानकारी दी। नाम का पता अवसर आने पर लग जाएगा। यहाँ जो राज में संत हैं, उनमें से ही एक नाम है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।