अर्हम्

अर्हम्

समणी शुभप्रभा

श्रम की तस्वीर हो तुम, हम सबकी तकदीर हो तुम।
वीर के पथ पर बढ़े हमे, ऐसा सुंदर पथ दिखलाना।।

आगम में नित गोत खा, जीवन के अमूल्य सूत्र सुनाती,
व्यवहार की धरा पे चलना हम सबको सदा सिखाती।
चले तेरे इशारों पर निरंतर, मंजिल अगर पाना।।

जुनून हो मन में अगर तो, क्या नहीं कर सकते हैं हम,
भर दो ऐसा संकल्प हममें, मनोबल न हो हमारा कम।
करे दृढ़-संकल्प हम, अहर्निश आत्म दीप जलाना।।

समण श्रेणी की नींव बन, सतत साधना के पथ खोले,
‘कहं चरे कहं चिट्ठे’ आगम वाणी से स्वयं स्वयं को तोले।
समय-समय पर पुनः हममें ये शुभ संस्कार भरना।।