अर्हम्

अर्हम्

समणी विपुलप्रज्ञा

साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी खुली किताब है।
देदीप्यमान चेहरे पर महकते गुलाब सी आब है।।
पैनी दृष्टि, प्रखर प्रवक्ता सहज समर्पण अद्भुत भाषा।
एक शब्द में कहूँ तो आपश्री के जीवन की हर क्रिया लाजवाब है।।

साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी सचमुच परम भाग्यशाली व पुण्यशाली हैं क्योंकि आपने पूज्यप्रवरों के दिल में अपना स्थान बनाया है। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी की असीम अनुकंपा व कृपा का सुपरिणाम है कि आज आप ‘साध्वीप्रमुखा’ के पद को सुशोभित कर रही हो। त्याग, तप व संयम की साधना के कारण आपश्री का उपादान कारण आत्मबल से युक्त है। आपश्री गुणवत्ता दिन-प्रतिदिन कुंदन की तरह निखर रही है। आपश्री का स्वास्थ्य सदा निरामय रहे। आप दीर्घायु, चिरायु बनें। आपश्री की अनुशासना में हमारी आत्मसाधना निर्बाध चलती रहे।