अर्हम्

अर्हम्

समणी मननप्रज्ञा

जब मैं समण श्रेणी में दीक्षित हुई, उस समय समण श्रेणी की सार-संभाल साध्वी विश्रुतविभाजी करते थे। दीक्षा के तीन महीने बाद मेरे असातवेदनीय का उदय हुआ और मेरे हाथ फफोलों से भर गए। बीदासर आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का चातुर्मास था। मैं गुरुदेव के गई। साध्वी विश्रुतविभाजी ने सारी स्थिति गुरुदेव को निवेदन की। गुरुदेव ने मुझे चिकित्सा हेतु दक्षिण भेजा। तीन वर्ष तक निरंतर दक्षिण में ईलाज चला। डॉक्टर का कहना था जीवन भर सर्फ-साबुन में हाथ नहीं डाल सकोगी। डॉक्टरी दवा में भी काम किया किंतु साध्वी विश्रुतविभाजी ने आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी को निवेदन कर मुझे मंत्र के प्रयोग भी दिए। गुरुदेव के आशीर्वाद से आज मेरे हाथ एकदक ठीक हैं।
साध्वी विश्रुतविभाजी ने मेरा बहुत ध्यान रखा। जब मैं यात्रा में जाती। मेरी हर निर्देशिका को मेरा ध्यान रखने का निर्देश देते। उनके इस वात्सल्य को मैं कभी नहीं भूल सकती। उन्होंने मेरा जो ध्यान रखा उसक प्रति में श्रद्धाप्रणत हूँ। आज साध्वीप्रमुखाश्री जी के रूप में आपकी वर्धापना करते हैं।