अर्हम्

अर्हम्

समणी सुमनप्रज्ञा

विभाजी का जीवन हीरे के समान है। जिस प्रकार से खादान से निकला हीरा एक पत्थर ही हुआ करता है। जौहरी उस पत्थर को परखता है, यह कोई सामान्य पत्थर नहीं अपितु हीरा है, उसे तराशा है, तराशने के लिए कितनी ही बार विविध प्रकार की परिक्षाओं से गुजरने के बाद कौड़ी जितनी कीमत वाला पत्थर करोड़ों की कीमत वाला बन जाता है। वैसे ही आपश्री को गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी ने आपके जीवन को परखा, आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने तराशा व युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अनेक परिक्षाओं के बाद करोड़ों की कीमत वाला हीरा जिसे साध्वीप्रमुखा पद पर नियोजित कर मूल्यवान बना दिया।
हीरे की परख के तीन घटक
- कलर, कटिंग, कैरेट।
उसी प्रकार आपकी साधना के मुख्य तीन घटक
- समता, सजगता, शालीनता।
समता: पेन को चलाने के लिए पेपर चाहिए पत्थर नहीं। ट्रेन को चलने के लिए पटरी चाहिए सड़क नहीं। वैसे ही आपश्री का जीवन सकारात्मक चिंतन की नींव पर समता का वटवृक्ष लेकर खड़ा है व समता की लेखनी से नव इतिहास को रचा है। सजगता: अप्रमत्तावस्था/भारुण्ड पक्षी की तरह आपश्री के जीवन का मूल मंत्र सजगता ही जीवन है। स्वाध्याय के प्रति, तप-जप के प्रति, नीति नियमों के प्रति सजग रहते हैं व हम सबको प्रेरणा देते रहते हैं। जैसे (परीक्षण, परीक्षण करना, परीक्षार्थी) कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं हो रही। धर्मसंघ के नियम विरुद्ध कोई बात तो नहीं हो रही है आपश्री के गुण गुरु के प्रति समर्पण भाव से प्रकट हुआ, सैनिक की तरह आपकी आत्मा के प्रति व संघ के सदस्य के प्रति सजगता रखवाते हैं। शालीनता: शाली यानी चावल जैसे चावल निर्मल, धवल, सौम्य व भीतर बाहर एक जैसा होता है, वैसे ही आपश्री का जीवन स्फटिकमय शाली की तरह निर्मल व सौम्य, भीतर बाहर एक जैसा है।
अभ्यर्थना के इन स्वरों में---
समता, सजगता, शालीनता की अप्रतिम प्रतिमा को वंदन है।
दिव्य कोहिनूर सतीशिरोमणी सतिशेखरे वर्धापन है।।