अर्हम्

अर्हम्

समणी मधुरप्रज्ञा

तप, जप, ध्यान, पुरुषार्थ, भाग्य, सकारात्मक सोच, अंतर्मुखी दृष्टिकोण, सृजनशील चेतना, गुरु कृपा और गुरुदृष्टि आराधन का समन्वित रूप है साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा। आप भाग्य साथ लेकर आई तो पुरुषार्थ की लौ को भी सतत प्रज्वलित रखा। अप्रमत्तता आपका उत्कृष्ट आभूषण है। तप को जीवन का शृंगार बनाया तो जप भी आपका सतत आधार रहा एवं ध्यान द्वारा वृत्तियों को ऊर्ध्वमुखी बनाया। जीवन में उतार-चढ़ाव के क्षणों में सकारात्मक सोच आपके अंतर्मुखी दृष्टिकोण का प्रतीक है। सकारात्मक सोच के प्रवर्धमान निर्मलता, पवित्रता ने जीवन में उन्नति के द्वार उद्घाटित किए हैं। तेरापंथ संघ में प्रविष्टि के साथ अपने व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व से क्रमशः नेतृत्व की ऊँचाईयों को हासिल किया है। उसका मूर्त रूप हमारे सामने है मुमुक्षु सविता से साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी तक का सफर।
आपने अपने जीवन में प्रायः समय का सदुपयोग किया है। आगम कार्य में संपृक्तता और आचार्य महापज्ञ साहित्य संपादन व ट्रांसलेशन में सतत संलग्न रहना या व्यवस्था द्वारा दूसरों को भी इस कार्य में योजित कर साहित्य के दुरुह कार्य को निष्ठा तक पहुँचाया है। जीवन की इस ऊर्ध्वगामी यात्रा में गुरु कृपा का प्रसाद आपके जीवन की बहुत बड़ी ख्यात है। तीन-तीन आचार्यों का अनुग्रह भाग्य का प्रतीक है। सचमुच इस मायने में आप भाग्यशाली रहे हैं। परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी न आपको कसौटी पर कसके ‘साध्वीप्रमुखा’ जैसे महनीय पद पर स्थापित किया है। आपके कुशल व मंगल नेतृत्व के प्रति हार्दिक शुभकामना।