अर्हम्

अर्हम्

समणी कमलप्रज्ञा

गुरु दृष्टि व गुरु सृष्टि का अभिनंदन है,
गुरु भक्ति व गुरु शक्ति का अभिनंदन है,
समण श्रेणी की नींव से निकला यह पत्थर,
(जिसे) सुसंस्कृत, सुसज्जित व प्रतिष्ठित करने वाले,
महान कलाकार का अभिनंदन है---।।

धन्य हुआ वह पल, जिस समय युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने नवम साध्वीप्रमुखा पद के लिए आदरणीया मुख्य नियोजिका साध्वीश्री विश्रुतविभाजी का नाम अपने श्रीमुख से उच्चारित किया। अतः आज हम उस पल का अभिनंदन करते हैं, वंदन करते हैं।
धन्य हुई वह पावन धरा, जहाँ पर नवम प्रमुखा पद का नव्य प्रभात प्रस्फुटित हुआ अतः आज हम इस वंदनीय प्रभात का अभिनंदन करते हैं। वंदन करते हैं। तथा धन्य हुए हम सभी जो कि इस दुर्लभतम परम आह्लादकारी, मनहारी दृश्य के प्रत्यक्ष साक्षी बन पाए, अतः आज हम उस आह्लादकारी दृश्य के सृष्टा पुरुष का दृढ़तम श्रद्धाभाव से अीिानंदन करते हैं, वंदन करते हैं।
हे नवम साध्सवीप्रमुखे! आपश्री की अप्रतिम प्रतिभा, अतुलनीय बौद्धिकता, अमाप्य आध्यात्मिकता, पंचाचार निष्ठा, संघनिष्ठा, गुरुभक्ति की पराकाष्ठा की तो हम प्रारंभ से ही कायल तो थीं ही पर अब आपश्री की अनुत्तर संयम साधना तथा तपस्या के अकंप भाव से हम सभी बहुत प्रभावित हैं।
आपश्री के जीवन प्रेरणा से हम सतत प्रेरित होती रहें, यही अभिकांक्षा है। वर्धापन के इस पावन प्रसंग पर विनत भाव से यही प्रार्थना करती है किµ
रख दो सिर पर हाथ महासतीवरं,
तब ऊर्जा से प्राणवान बन जाए।
रखना महर दृष्टि हरपल जिससे,
राह हमारी निश्काटक, निर्बाध बन जाए।।